भारत के पांच राज्यों में हुए ताजा चुनावों के नतीजों ने अच्छे अच्छे चुनावी धुरन्धरों को ठन्डा पानी पिला दिया. जीतने वालों को यकीन नहीं हो रहा कि वह इतने भारी मतों से कैसे जीत गए, और हारने वालों की हवा खिसक गई और वह सोच भी नहीं पा रहे हैं कि उन्होने तो तुरूप के इक्के की चाल चली थी पर उनके पत्ते कैसे रफूचक्कर हो गए?
चुनाव विशेषज्ञों का गणित पूरी तरह फेल हो गया. एग्जिट पोल के नतीजे भी धरे के धरे रह गए. आखिर केजरीवाल से नहीं रहा गया उन्होने तो घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी को बेईमानी से हराया गया है.
बहिन जी मायावती ने एक कदम आगे बढकर चुनाव आयोग से चुनावों को रद्द करने की मांग कर डाली और कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से नहीं पुराने तरीके से पेटी में वोट डालकर फिर से चुनाव कराये जाएं.
उनका आरोप था कि वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ करके पार्टी विशेष को आपराधिक तरीके से जिताया गया है. इस सबंध में उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने 11 मार्च को चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करा कर उक्त मांगों को दुहराते हुए मांग की कि इन सभी मशीनों को सील करके भारत से बाहर के विशेषज्ञों से जांच कराई जाए कि छेड़छाड़ किस तरह की गई है.
चुनाव आयोग के अवर सचिव श्री मधुसूदन गुप्ता द्वारा पत्र क्रमांक 51/8/16/9/2017 -EMS दिनांक 11 मार्च 2017 को ही विस्तृत उत्तर देकर स्पष्ट कर दिया गया कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनें जिन्हें EVM भी कहा जाता है, किस प्रकार से पूरी तरह सुरक्षित हैं और उनमें ऐसी कहीं कोई गुंजाइश नहीं है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार से कोई छेड़छाड़ करके निर्वाचन के नतीजों मे फेर बदल या हस्तक्षेप कर सके. यह पूरी तरह असम्भव है. गुप्ता जी ने अपने उत्तर में यह अच्छी तरह समझा दिया कि मशीन की सुरक्षा के क्या क्या उपाय किये गये हैं और वोटिंग किस तरह से ईमानदारी से संचालित होता है.
पर…. चुनाव आयोग के इस उत्तर की पृष्टभूमि में BBC के साईन्स रिपोर्टर जूलियन सिड़ल के 18 मई 2010 के पुराने प्रसारण ने आग में घी के साथ साथ अविश्वास का जहर भी डाल दिया. इस प्रसारण में युनीवर्सिटी मिशीगन के प्रोफेसर J Alex Halderman का वीड़ियो बहुत ही खतरनाक भूमिका निभा रहा है, जिसमें उन्होंने प्रयोग करके यह बताया है कि अगर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के भीतर एक माइक्रोचिप और ब्लूटूथ को जोड दिया जाए तो मोबाईल द्वारा मतदान के वोटों में अफरा तफरी की जा सकती है. मन चाहे उम्मीदवार को जिताया जा सकता है. जिसे चाहे हराया जा सकता है.
अब अगर प्रो० हल्डरमेन के प्रयोग को सही मान लिया जाय तो क्या यह सम्भव है कि चुनावों के उपयोग में आ रही एक करोड़ छत्तीस लाख चौरासी हजार चार सौ तीस मशीनों में कोई एक साथ माईक्रोचिप्स और ब्लूटूथ लगवा सकता है? जी यह काम पूरी तरह से असम्भव और तर्कहीन है.
हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार VVPA अर्थात वोटर वेरीफाईड़ पेपर आडिट उपकरण की व्यवस्था भी चुनाव आयोग को भविष्य में करना होगी, जिससे मतदाता अपनी संतुष्टि कर सकें कि उन्होंने सच में उसी उम्मीदवार को वोट दिया है जिसे वह देना चाहता है. 2017 के चुनावो में इसकी व्यवस्था गोवा के चुनावों में की गई थी.
इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की खोज, आई आई टी बम्बई के वैज्ञानिक एम बी हनीफा ने की थी. इसका उत्पादन परिष्कृत रूप में भारत इलेक्ट्रिक्स लिमिटेड बंगलौर और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इन्डिया हैदराबाद द्वारा किया गया है. इस मशीन की कुल कीमत सिर्फ पांच हजार पांच सौ रूपए है. जबकि अमेरिका के चुनावों में जो मशीन इस्तेमाल होती हैं वह लगभग पचास हजार रूपयों की कीमत की होती हैं.
मुझे याद है मेरे बचपन में जब चुनाव होते थे तो सबसे पहले हर उम्मीदवार की एक एक पेटी होती थी. कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैल जोड़ी, हिन्दु महासभा का घुड़सवार आदि होते थे. फिर एक ही पेटी में सभी वोट अलग अलग उम्मीदवारों के चुनाव चिन्हों पर सील लगाकर डाले जाने लगे. उन दिनों पेटी में ताला लगाकर फिर चपड़ी से सील करके बाद में कपड़े की थैली में बन्द करके पेटी को जमा कराना होता था.
इसके बाद जो पेटियों की डिजाईन आई उसमें बीच में एक गोल छेद होता था इस छेद में तर्जनी ऊंगली भीतर डाल कर उंगली से लीवर खींचना होता था, तभी पेटी खुलती थी. वोटिंग के समय पेपर सील के नीचे पुट्ठे का आधार लगाकर चपडी से सील किया जाता था, उसी पेपर सील पर मतदान ऐजन्टों के दस्तखत भी कराये जाते थे. उनके सामने ही पेटी बन्द की जाती थी.
वोटिंग खत्म होने पर उम्मीदवारों के सामने छिद्र के ऊपर लगे लीवर से छेद बन्द करके तारों से कसकर सील ठप्पे लगाकर मतदान पेटी जमा कराई जाती थी. मुझे याद है एक बार मैं भी चुनाव में अधिकारी था, बात कोई 60-70 के दशक की है. इन्दौर में ही चुनाव अधिकारियों का प्रशिक्षण चल रहा था. सहायक रिटर्निंग आफीसर ए डी एम जैकब और उनके साथी समझा रहे थे कि मतदान पेटी कैसे बन्द की जाती है. कैसे सील की जाती है, फिर खोलते समय कैसे सील तोडकर भीतर ऊंगली डालकर लीवर को खींचकर पेटी खुल जावेगी.
मेरे दिमाग में बचपन से ही हमेशा ऐसी बातें आती जाती रहती है, जो साधारण तया कोई नहीं सोचता. मैंने ट्रेनिंग दे रहे साहेब को बताया कि आप कहें तो ‘मैं बिना कागज की सील तोड़े आपकी पेटी को खोल दूं.
‘पहिले तो साहेब चौंक गए फिर मुझे चुनौती देते हुए आमंत्रित किया आओ खोलकर दिखाओ. इसे बगैर सील तोड़े खोलना एकदम नामुमकिन है. मैं उनके पास गया पेन्ट की जेब से एक बार मेगनेट निकाला और सील बन्द मतदान पेटी के ऊपर भीतर लगे लीवर को छेद की दिशा में खींचते हुए बार बार मेगनेट को चलाया और झटके के साथ सील बन्द मतदान पेटी बिना पेपर सील को तोडे खुल गई.
पहले तो श्रीमान जैकब साहेब को पसीना आ गया , फिर उन्होने खुद करके देखा और ट्रेनिग बीच में रोककर सीधे कलेक्टर के पास ले गए. मुझे अच्छी खासी प्रशासकीय धौंस पिलाकर सख्त हिदायत दे दी गई, इसे किसी से नहीं कहना- नहीं तो जेल में ठूंस दिये जाओगे.
मैं भी घबरा गया अपना मुंह बन्द रखने का तौबा तौबा कर लिया. फिर पता नहीं ऊपरी लेवल पर क्या हुआ चुनाव आयोग से नोटिस आगया कि सीलबन्द मतदान पेटी को कपड़े की थैली में बन्द करके उसे ऊपर से भी सील किया जाय. तब से लेकर आज तक पेपर की वोटिंग के बाद मतदान की पेटियां मजबूत थैलों में बन्द करके मतदान केन्द्र से बाहर लाई जाने लगीं.
जब से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रचलन हुआ है, मतदान प्रक्रिया आसान और त्वरित हो गई है. कम खर्चीली भी है. मत गणना बहुत ही सहज और तत्काल हो गई है. पहले तो कागज के लगभग दस हजार टन अकेले मत पत्रों को छापने मे खर्च हो जाते थे, फिर हर वोट के ऊपर गिनती के समय तू तू में में हो जाती थी, यह वोट गलत है यह सही है.
फिर हारने वाला उम्मीदवार पुन:मतगणना कराकर परेशानी पैदा करता रहता था. अब सब कुछ सरल और आसान हो गया. यह पूरी तरह सत्य है कि इस मशीन को जब तक इन्टरनेट से सीधा न जोडा जाय या इसके भीतर ब्लू टूथ अलग से चिप के साथ न लगाया जाए तब तक इसमें किसी भी तरह की हेरफेर करना असम्भव है. इस मशीन के मदरबोर्ड में लगे सिलीकान क्रिस्टल को मशीन उत्पादन के समय ही बर्न कर दिया जाता है अत: अभी तक ऐसा कोई भी साफ्टवेअर बनाना सम्भव नहीं है जो इसके मदर बोर्ड की मेमोरी में अफरातफरी कर सके.
पर हिन्दुस्तानी दिमाग तो खुरापाती होता है, जब हमारे पूर्वज समुद्र का पेट चीरकर उस जमाने में पुल बना सकते थे, तो फिर आज के अक्लबन्द कैसे पीछे रह सकते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि अगर वोट डालते समय थर्मामीटर से निकले पारा मर्क्युरी की एक छोटी सी बूंद अगर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के बटन के पास ड़ाल दी जाय तो बह पारा बटन के नीचे पहुंचकर हमेशा के लिए उस बटन को ऑन करके रखेगा.
दूसरा मतदाता फिर किसी को वोट देने के लिए बटन दबाए पर अन्य सभी मतदाताओं के वोट पारा लगे उम्मीदवार के खाते मे जमा होते जाएंगे. तो क्या यह मान लिया जाय कि अमेरिका के बड़े वैज्ञानिक जिस नई खोज को करके भारत के चुनावों की मशीन को हेक करने के लिए करोड़ों डालर करके नई रिसर्च करते हैं; वही काम हमारा स्वदेशी देहाती दिमाग बिना कोई कोड़ी दाम खर्च किये सिर्फ एक टूटे हुए थर्मामीटर की एक बूंद मर्क्युरी से कर सकता है.
पर यह क्या सच में सम्भव है?
हकीकत में थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए कि ऐसा हुआ होगा तो भाई इतने बड़े पैमाने पर इसे करना असम्भव है. अगर मतदान मशीन से छेड़छाड़ करने का आपराधिक कृत्य कोई करने की कोशिश करता भी है तो जैसे ही मतदाता वोटिंग के लिए बूथ के भीतर जाता है पीठासीन अधिकारी कन्ट्रोल युनिट से सिर्फ एक वोट डालने के लिए वोटिंग मशीन खोलता है.
एक सेकन्ड़ के भीतर वोटिंग लाईन खुलने की तेज बीफ की आवाज आती है. दूसरी आवाज मतदाता के वोट डालने के वाद दो सेकन्ड के भीतर पुन: तेज बीप की आवाज के साथ सुनाई देती है . पर पारा डालने के बाद मशीन से हुई छेड़छाड के बाद दूसरी आवाज नहीं सुनाई देगी, जिसका पता तत्काल बाहर बैठे लोगों को चल जाएगा.
अत: एक बूंद पारे से पूरे चुनाव के परिणामों मे उलट फेर करने की कहानी कपोलकल्पित और शरारत भरी नजर आती है. फिर अगर ऐसी हरकत करके ही चुनाव जीतना था तो सत्तारूढ़ दल पंजाब में क्यों बुरी तरह हारता. अच्छा तो यही है कि जन मत का आदर करते हुए हारने वाले सभी लोगों को झूठे सच्चे बहाने आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय हकीकत को पहचान कर जनता के निर्णय को आदर पूर्वक स्वीकार कर लेना चाहिये.