हिन्दू जीवन शैली : मातृशक्ति, मात्र शक्ति नहीं

जब हिन्दू जीवन शैली की मूलभूत बातों का ज़िक्र करते हैं तो आप चाहे बात कहीं से भी शुरू कीजिये चाहे परमात्मा से, धर्म से, राजनीति से या भारत माता की जय कहने से…. आपको घर, परिवार, त्यौहार, संस्कार, विद्या, परिधान सबको संदर्भित करना ही होगा.

जब हम हिन्दू त्योहारों की बातें करते हैं तो उन त्योहारों पर पहने जाने वाले विशेष परिधानों की भी बात करेंगे, जब हम परिधानों की बात करेंगे तो आपके संस्कारों का ज़िक्र आएगा, और जब संस्कारों का ज़िक्र आएगा तो घर और विद्यालयों में दी जाने वाले शिक्षा की बात निकलेगी. और इन सारी बातों की नींव कहाँ होती है? माँ के गर्भ में. जहां आनेवाली नस्ल तैयार हो रही होती हैं.

क्यों कहा जाता है कि गर्भावस्था में माँ को अच्छी अच्छी बातें बोलना और सुनना चाहिए, अच्छी किताबें, धार्मिक ग्रन्थ पढ़ना चाहिए. सात्विक भोजन करना चाहिए. अच्छा मधुर संगीत सुनना चाहिए.

यदि वामपंथियों की बात की जाए तो वो आत्मा जैसी चीज़ को स्वीकार नहीं करते.. जो कुछ भी है लौकिक है… सामने है… अब जो शिशु माँ के गर्भ में है वो तो उनके लिए बस मांस का एक पिंड है उसे क्या शिक्षा देना… लेकिन हमारी हिन्दू जीवन शैली माँ के गर्भ में पल रहे शिशु को भी परमात्मा के आशीर्वाद के रूप में देखते हैं और उसे वहीं से अच्छे संस्कार देने की शुरुआत कर देते है… और वहीं से हमारी माताओं के संस्कार काम करना शुरू कर देते हैं…

एक किस्सा ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु का बताती हूँ – जो कहते हैं जब वो किसी नई जगह जाते हैं तो वो वहां के लोगों से उस जगह के महत्त्व के बारे में नहीं पूछते वो वहां के किसी भी पत्थर को छूकर देखते हैं और उन्हें उस जगह की कहानी पता चल जाती है… यानी एक पत्थर में भी वैसी ही चेतना और याददाश्त होती है जैसे किसी जीव में होती है.

भारत को मात्र एक ज़मीन का टुकड़ा समझने वाले ये बताएं कि ये सिर्फ एक ज़मीन का टुकड़ा है तो फिर जो लोग किसी भी कारणवश भारत छोड़कर विदेश में जाकर रहने लगते हैं तो क्या वो इस मातृत्व से वंचित है?

नहीं, क्योंकि भारत माता को मात्र ज़मीन का टुकड़ा समझने वालों को पता नहीं है कि देशप्रेम से ओतप्रोत जनता जब अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी की जयजयकार के नारे लगा रही होती है, तो वो केवल इसलिए नहीं कि मोदीजी ने बहुत अच्छा भाषण दिया… बल्कि इसलिए कि हम कृतज्ञ हुए कि आप उस पुण्यभूमि के अग्रदूत बनकर आये हैं… उस पावन धरती से आए हैं, जिसके लिए प्रेम और सम्मान आज भी हमारे दिल में हिलोरे मारता है. आज हमारी भारत माता की बागडोर उसके ‘सुपुत्र’ के हाथ आ गयी है.. अब हम संतुष्ट हैं, हम भले अपनी भारत माता को छोड़ कर आ गए हैं लेकिन आप लौटकर उस माँ से कहना… तुम्हारा बेटा तुमसे दूर रहकर भी तुम्हारा सर गर्व से ऊंचा रखा हुआ है, तुम्हारे बच्चे तुम्हें आज भी याद करते हैं…

क्या केवल एक ज़मीन के टुकड़े के लिए कोई यह भाव रख सकता है? नहीं क्योंकि मातृशक्ति मात्र शक्ति नहीं…. एक ऊर्जा क्षेत्र है जो दुआ बनकर हमेशा अपने बच्चों के चारों ओर रहता है, उसे अपने आँचल से बांधे रखता है… तभी आपने देखा होगा कि जब कोई विदेशी भी आध्यात्मिक यात्रा पर निकलता है तो उसे भारत की पुण्य भूमि पर आना ही होता है… जब कई जन्मों के बाद भी वो अपनी वास्तविक माता को भुला नहीं पाता तो फिर ये तो भारत की ज़मीन से दूर गए लोग हैं…

मैंने कई लोगों को इस बात की हंसी उड़ाते हुए देखा है कि आज तुम लोग भारत को माता, नदी को माता कह रहे हो कल को पेड़ पौधों और सब्जी भाजी को भाई बहन बोलने को कहोगे… तो मैं उन लोगों को कह दूं… जिस दिन इतनी सी भी बात समझ आ गयी कि हाँ पेड़ पौधों में ही नहीं पत्थर में भी चेतना होती है उस दिन तुम लोग अपने आप हिन्दू हो जाओगे… तब भले अपनी हेकड़ी में इस बात को स्वीकार मत करना लेकिन कम से कम इतना तो स्वीकार कर ही लोगे कि विज्ञान ने भी पेड़ पौधों को LIVING कहा है NON-LIVING नहीं.

जय हिन्द जय भारत !

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