अगर आपका किसी उर्दू वाले से पाला पड़ा है तो आपने पाया होगा कि उर्दू वाले का उच्चारण कुछ अजीब सा होता है. वो आधी ध्वनियों को पूरा बोलता है. क्लब को किलब, प्रचार को परचार, सरस्वती को सरसुती, प्रजातंत्र को परजा तंतर…
ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं. कभी इस्लाम के वामपंथी मुखौटे जावेद अख़्तर को, घनघोर मुल्ला ओवैसी भाइयों को टीवी पर बोलते सुनिये. आपको उच्चारण का यह बहुत भौंडा अंतर तुरन्त समझ आ जायेगा.
इसका कारण उर्दू वालों से पूछिये तो जवाब मिलता है कि उर्दू में आधे हर्फ़ नहीं लिखे जाते हैं अतः पढ़े-बोले भी नहीं जाते हैं.
यहाँ एक तार्किक बात सूझती है कि हर्फ़ को हरफ़ तो नहीं बोला जाता. उर्दू के दो अक्षर स्वाद और ज़्वाद, सवाद या सुवाद और ज़वाद नहीं बोले जाते.
यानी आधी ध्वनि लिख न पाने का बहाना झूठ है तो फिर क्या कारण है कि उर्दू वाले दूसरी भाषाओँ के उच्चारण बिगाड़ कर बोलते हैं ?
आपने कभी कुत्ता पाला है? न पाला हो तो किसी पालने वाले से पूछियेगा. जब भी कुत्ते को घुमाने ले जाया जाता है तो कुत्ता सारे रास्ते इधर-उधर सूंघता हुआ और सूंघे हुए स्थानों पर पेशाब करता हुआ चलता है.
स्वाभाविक है कि यह सूझे कि यदि कुत्ते को पेशाब आ रहा है तो एक बार में क्यों फ़ारिग़ नहीं होता, कहीं उसे पथरी तो हो नहीं गयी है? फिर हर कुत्ते को पथरी तो नहीं हो सकती तो उसका पल-पल धार मारने का क्या मतलब है?
मित्रो! कुत्ता वस्तुतः पेशाब करके अपना इलाक़ा चिन्हित करता है. यह उसका क्षेत्र पर अधिकार जताने का ढंग है. बताने का माध्यम है कि यह क्षेत्र मेरी सुरक्षा में है और इससे दूर रहो अन्यथा लड़ाई हो जाएगी.
उर्दू वालों का अन्य भाषाओँ के शब्दों को उनकी मूल ध्वनियों की जगह बिगाड़ कर बोलना कहीं उन भाषाओँ, उनके बोलने वालों में अपना इलाक़ा चिन्हित करना तो नहीं है?
ईसाई विश्व का एक समय सबसे प्रभावी नगर कांस्टेंटिनोपल था. 1453 में इस्लाम ने इस नगर को जीता और इसका नाम इस्ताम्बूल कर दिया. स्वाभाविक ही मन में प्रश्न उठेगा कि कांस्टेंटिनोपल में क्या तकलीफ़ थी जो उसे इस्ताम्बूल बनाया गया?
बंधुओ, यही इस्लाम है. सारे संसार को, संसार भर के हर विचार को, संसार भर की हर सभ्यता को, संसार भर की हर आस्था को… मार कर, तोड़ कर, फाड़ कर, छीन कर, जीत कर, नोच कर, खसोट कर… येन-केन-प्रकारेण इस्लामी बनाना ही इस्लाम का लक्ष्य है.
रामजन्मभूमि, काशी विश्वनाथ के मंदिरों पर इसी कारण मस्जिद बनाई जाती है. कृष्ण जन्मभूमि का मंदिर तोड़ कर वहां पर इसी कारण ईदगाह बनाई जाती है. पटना को जहानाबाद इसी कारण किया जाता है.
अलीगढ, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर और ऐसे ही सैकड़ों नगरों के नाम… वाराणसी, मथुरा, दिल्ली, अजमेर चंदौसी, उज्जैन जैसे सैकड़ों नगरों में छीन कर भ्रष्ट किये गए मंदिर इन इस्लामी करतूतों के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.
इस्लाम अपने अतिरिक्त हर विचार, जीवन शैली से इतनी घृणा करता है कि उसे नष्ट करता आ रहा है, नष्ट करना चाहता है. इसका इलाज ही यह है कि समय के पहिये को उल्टा घुमाया जाये. इन सारे चिन्हों को बीती बात कह कर नहीं छोड़ा जा सकता.
चूँकि इस्लामी लोग अभी भी उसी दिशा में काम कर रहे हैं. बामियान के बुद्ध, आई एस आई एस द्वारा सीरिया के प्राचीन स्मारकों को तोडा जाना आज भी चल रहा है. इस्लामियों के लिये उनका हत्यारा चिंतन अभी भी त्यागने योग्य नहीं हुआ है, अभी भी कालबाह्य नहीं हुआ है.
अतः ऐसी हर वस्तु, मंदिर, नगर हमें वापस चाहिये. राष्ट्रबन्धुओ! इसका दबाव बनाना प्रारम्भ कीजिये. सोशल मीडिया पर, निजी बातचीत में, समाचारपत्रों में जहाँ बने जैसे बने इस बात को उठाते रहिये. यह दबाव लगातार बना रहना चाहिए.
पेट तो रात-दिन सड़कों पर दुरदुराये जाते हुए पशु भी भर लेते हैं. मानव जीवन गौरव के साथ, सम्मान के साथ जीने का नाम है. हमारा सम्मान छीना गया था. समय आ रहा है, सम्मान वापस लेने की तैयारी कीजिये.