आम तौर पर तंत्र-विद्या को आध्यात्मिक मार्ग से हमेशा दूर रखा गया है. जब कभी आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे किसी साधक ने तंत्र-मंत्र की ओर जरा-सा भी रुझान दिखाया, उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए गए ताकि वे दोबारा ऐसा न करें. इसकी एक बड़ी मिसाल हैं गोरखनाथ. गोरखनाथ असीम क्षमताओं वाले बहुत उग्र योगी थे. गुजरात में एक पर्वत चोटी का नाम उनके नाम पर रखा गया है, क्योंकि वे आम इंसानों के बीच एक ऊंचे पहाड़ जैसे थे. आज भी उनके अनुयायी- जिन्हें गोरखनाथी नाम से जाना जाता है, योगिक परंपरा के बहुत बड़े संप्रदायों में से एक है. वे लोग बहुत तीव्र और प्रखर होते हैं.
गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ
गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ थे. मत्स्येंद्रनाथ इतने ज्यादा योग्य थे कि लोग उनको शिव से कम नहीं मानते थे. उनको लोग इंसान नहीं मानते थे, क्योंकि उनमें इंसानों जैसी बात बहुत कम ही थी. उनकी लगभग हर बात जीवन के किसी दूसरे आयाम की ही थी. कहते हैं कि वे अपने नश्वर शरीर में 600 साल तक रहे. आम तौर पर वे समाज से दूर ही रहते थे. उनके कुछ थोड़े-से प्रचंड और तीव्र शिष्य ही उनसे संपर्क कर पाते थे. गोरखनाथ उन्हीं में से एक थे.
मत्स्येंद्रनाथ ने देखा कि गोरखनाथ संसार के लिए एक जबरदस्त संभावना हैं, लेकिन अपने गुरु के प्रति बहुत ज्यादा आसक्त हो रहे हैं. इसलिए उन्होंने उनको चौदह साल के लिए यह कर दूर भेज दिया कि ‘जाओ किसी दूसरे पर्वत पर जाकर वहीं अपनी साधना करो. चौदह साल के बाद वापस आओ’. गोरखनाथ चले गए और गहन साधना करने लगे – लेकिन साथ ही वे दिन गिन रहे थे कि दोबारा कब अपने गुरु के दर्शन कर पाएंगे. ठीक चौदह साल बाद वे वहां लौटे, जहां उन्हें अपने गुरु के होने की उम्मीद थी. वहां उन्होंने एक शिष्य को द्वार की रक्षा करते देखा.
तंत्र-मंत्र योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं. वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते. गोरखनाथ ने उनसे कहा कि वे मत्स्येंद्रनाथ से मिलने आए हैं. शिष्य ने कहा, “नहीं, आप अंदर नहीं जा सकते.”
गोरखनाथ तुरंत गुस्से से भड़कते हुए बोले, “आप मुझे कैसे रोक सकते हैं? मैं चौदह साल से उनसे मिलने का इंतजार कर रहा हूं. मुझे रोकने वाले आप कौन होते हैं?” शिष्य ने कहा, “मैं कौन हूं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, आप अंदर नहीं जा सकते.”
गोरखनाथ ने उस व्यक्ति को दबोच कर नीचे पटक दिया और उस गुफा के अंदर चले गए, जिसमें गुरु के होने की उम्मीद थी. पर अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि गुफा खाली है. वे रोते हुए बाहर आए और अपने गुरु के बारे में पूछा कि वे कहां हैं? शिष्य बोला, “मैं आपको नहीं बताने वाला. आप बहुत असभ्य हैं.”
गोरखनाथ उसके सामने बहुत गिड़गिड़ाए, मगर कोई लाभ नहीं हुआ. तब अपनी तांत्रिक शक्तियों का इस्तेमाल कर गोरखनाथ ने दूसरे योगी के मन की बात पढ़ कर पता कर लिया कि उनके गुरु कहां हैं और सीधे वहीं चले गए.
वे जैसे ही वहां पहुंचे, मत्स्येंद्रनाथ ने जान लिया कि उन्होंने उनके बारे में किस तरह से मालूम किया था. मत्स्येंद्रनाथ उनसे बोले, “मेरी दी हुई तंत्र साधना का तुमने दुरुपयोग किया है. तुमने अपने दूसरे योगी भाई के मन के अंदर देखने के लिए इसका दुरुपयोग किया. तुम्हें उसके मन की बात पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी. तुमने मेरी दी हुई योग शक्ति का सबसे निचला रूप पाया है.”
गोरखनाथ साधना
तंत्र विद्या योग का सबसे निम्न रूप है, लेकिन लोग सबसे पहले यही करना चाहते हैं. वे कुछ ऐसा देखना या करना चाहते हैं, जो दूसरे नहीं कर सकते. योग के शब्दों में इसका मतलब है कि उन्होंने खुद को मूलाधार से व्यक्त किया. इसलिए मत्स्येंद्रनाथ ने गोरखनाथ से कहा, “जाओ, अपने मूलाधार को बंद कर के फिर से चौदह साल तक बैठो.” गोरखनाथ लौट गए और उस आसन में बैठ गए जो आज गोरखनाथ आसन के नाम से प्रसिद्ध है. मूलाधार को बंद किए हुए वे इस अत्यंत दुखदाई आसन में बैठे रहे, तकि दोबारा कभी वे इस सबसे निचले रास्ते से खुद को अभिव्यक्त न कर पाएं.
काफी साधना करने के बाद गोरखनाथ को परमानंद की अनुभूति हुई. ये परंपराएं साधना की तीव्रता पर जोर देती हैं. उन लोगों ने इंसान के मनोवैज्ञानिक पहलू की बिल्कुल चिंता नहीं की, क्योंकि उनका मानना था कि मनोवैज्ञानिक पहलू इंसान का बेहद सूक्ष्म और दुर्बल हिस्सा है. उनका पूरा काम एक अलग स्तर पर है. वे जीवन-ऊर्जा को पूरी तरह से अलग आयाम में ले जाते हैं. इन परंपराओं में इस बात की कभी परवाह नहीं की गई कि इंसान को खुशहाल और प्रेममय कैसे बनाया जाए.
गोरखनाथ – गहरी समाधि की स्थिति में
हालांकि गोरखनाथ बेहद प्रचंड किस्म के योगी थे, लेकिन मत्स्येंद्रनाथ ने हमेशा उनकी देखभाल ऐसे की, जैसे वह एक छोटे बच्चे हों. एक बार गोरखनाथ गंगा के किनारे ध्यान की ऐसी गहन अवस्था में बैठे कि उन्हें समय का कोई ध्यान ही नहीं रहा. कुछ समय के बाद गंगा के बहाव में बदलाव आ गया, जिससे रेत खिसक गई और गोरखनाथ के ऊपर जमा होने लगी. लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ. वे ध्यान में डूबे रहे. धीरे-धीरे उन पर इतनी रेत और मिट्टी जमा हो गई कि वे जमीन के भीतर दब गए. जमीन के नीचे वह अट्ठारह महीने से भी ज्यादा समय तक दबे रहे.
समय बीतता गया. एक दिन कुछ किसानों ने गंगा किनारे की इस उपजाऊ जमीन को जोतने का फैसला किया. जमीन जोतने के दौरान एक दिन उन्होंने देखा कि जमीन में से खून निकल रहा है.
जब उन्होंने मिट्टी हटा कर देखा तो पता चला कि एक योगी वहां बिलकुल अचल-स्थिर बैठा है. जमीन जोतने के दौरान गलती से हल उनके सिर से टकरा गया था, जिसकी वजह से सिर से खून बहने लगा था. लेकिन गोरखनाथ को इसका जरा भी अहसास नहीं हुआ. वे बस ध्यान में बैठे रहे. गांव वालों ने उन्हें रेत से बाहर निकाला. जैसे ही यह बात फैली, हजारों लोग ध्यान में डूबे इस योगी को देखने के लिए वहां जमा हो गए. गोरखनाथ के चारों ओर लोगों का मेला लग गया, लेकिन ध्यान में डूबे गोरखनाथ इस सबसे बेखबर थे.
इस भीड़ में से एक शख्स ने गोरखनाथ को पहचान लिया. उसने मत्स्येंद्रनाथ के पास जाकर पूरी बात बता दी. मत्स्येंद्रनाथ बोले, ‘ओह, वह बेवकूफ है. उसके सिर पर हल का कुछ असर नहीं होगा. मुझे ही उसे जगाना होगा.’ यह कह कर मत्स्येंद्रनाथ ने चुटकी बजाई और उसी पल गोरखनाथ ने आंखें खोल दीं. उन्होंने आसपास देखा तो वहां लोगों की भीड़ इकट्ठी थी और उनके सिर में चोट से दर्द हो रहा था. वे गुस्से में उठ खड़े हुए और वहां से चल दिए.
गोरखनाथ : गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के प्रति गुरु भक्ति
एक बार की बात है, मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के साथ कहीं जा रहे थे. उन्होंने एक छोटी-सी नदी पार की. मत्स्येंद्रनाथ एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले, ‘मेरे लिए पानी ले आओ.’ गोरखनाथ तो एक सिपाही की तरह थे. उनके गुरु ने पानी मांगा था और वह तुरंत इस काम को पूरा कर देना चाहते थे. पानी लाने के लिए वह नदी की ओर चल दिए. उन्होंने देखा कि उस छोटी-सी नदी से उसी समय कुछ बैलगाडिय़ां होकर गुजरी हैं, जिसकी वजह से उसका पानी गंदा हो चुका था. वह दौड़ते हुए अपने गुरु के पास आए और बोले, ‘गुरुजी, यहां का पानी गंदा है. यहां से थोड़ी ही दूरी पर एक और नदी है. मैं वहां जाकर आपके लिए पानी ले आता हूं.’
मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘नहीं, नहीं. मेरे लिए इसी नदी से पानी लेकर आओ.’ गोरखनाथ बोले, ‘लेकिन वहां का पानी गंदा है.’ मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘मुझे उसी नदी का और उसी स्थान का पानी चाहिए. मुझे बहुत प्यास लगी है.’ गोरखनाथ फिर से नदी की ओर दौड़े, लेकिन पानी अभी भी बहुत गंदा था. उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें. वे लौट कर फिर गुरु के पास आए. मत्स्येंद्रनाथ ने फिर वही कहा, ‘मैं प्यासा हूं. मेरे लिए पानी लाओ.’ गोरखनाथ बुरी तरह उलझन में फंस गए. वह यहां से वहां यह सोचते हुए दौड़ते रहे कि आखिर क्या किया जाए. वे फिर से गुरु के पास आए और प्रार्थना की, ‘यहां का पानी गंदा है. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए. मैं आपको दूसरी नदी से साफ पानी लाकर देता हूं.’ गुरु बोले, ‘नहीं, मुझे तो इसी नदी का पानी चाहिए.’
उलझन में डूबे गोरखनाथ वापस नदी पर गए. उन्होंने देखा कि अब नदी का पानी कुछ स्थिर हो गया है और पहले के मुकाबले थोड़ा साफ है. उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया. कुछ देर में पानी पूरी तरह साफ हो गया. गोरखनाथ आनन्द विभोर होकर पानी लिए गुरु के पास पहुंचे और मत्स्येंद्रनाथ को पानी दिया. मत्स्येंद्रनाथ ने पानी एक तरफ रख दिया, क्योंकि वे वास्तव में प्यासे नहीं थे.
दरअसल, वह इस तरह गोरखनाथ को एक संदेश दे रहे थे. गोरखनाथ एक ऐसे इंसान थे जो गुरु की कही बात हर हाल में पूरी करते. अगर उनसे एक मंत्र का दस बार जाप करने को कहा जाता, तो वह उसका दस हजार बार जाप करते. वह हमेशा गुरु की आज्ञा पूरी करने को तैयार रहते. जो उनसे कहा जाता, उसे बड़ी श्रद्धा और लगन के साथ पूरा करते थे. यह उनका महान गुण था, लेकिन अब वक्त आ गया था कि वे दूसरे आयाम में भी आगे बढ़ें, इसलिए मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें समझाया- यहां-वहां भाग-दौड़ करके और मेहनत करके तुमने अच्छा काम किया है, लेकिन अब वक्त आ गया है, जब तुम्हें बस इंतजार करना है, और तुम्हारा मन बिलकुल शांत और साफ हो जाएगा.
गोरखनाथ आश्रम – नाथ परंपरा के योगियों के समाधि स्थल
गोरखनाथ को भारत में एक महान योगी का दर्जा प्राप्त है. महाराष्ट्र के दक्षिण में स्थित पश्चिम घाट में एक पूरी पर्वत श्रृंखला उनके नाम पर है, क्योंकि इंसानों के बीच वे एक पर्वत की तरह हैं. पूरे उपमहाद्वीप में उन्होंने असाधारण काम किया और आज भी उनके अनुयायियों को, जो बड़े प्रचंड और तीव्र लोग होते हैं, गोरखनाथी कहा जाता है. आज एक हजार साल बाद भी योगिक परंपराओं में गोरखनाथियों को सबसे बड़े संप्रदायों में से एक माना जाता है. आज गोरखनाथ आश्रम में सौ से ज्यादा समाधियां हैं, जो इस संप्रदाय से जुड़े उन लोगों की हैं जिन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई. वैसे तो इस संप्रदाय के बहुत सारे योगियों को परम मुक्ति की प्राप्ति हुई, लेकिन जिन लोगों ने आश्रम में रह कर आत्मज्ञान हासिल किया, उनकी समाधियां यहां बनाई गईं. बहुत सारे लोग ऐसे भी थे, जिन्हें जंगलों और पर्वतों में आत्मज्ञान मिला. उन्हें किसी निशानी की जरूरत नहीं है.
तंत्र-मंत्र को इतना बुरा माना जाता है कि उसके पास फटकने से भी मना किया जाता है. यह हमेशा बुरा नहीं होता, लेकिन बदकिस्मती से इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर इसी तरह से किया गया है. कोई भी विज्ञान या टेक्नालॉजी बुरी नहीं होती. लेकिन अगर हम टेक्नालाजी का इस्तेमाल लोगों की जान लेने और उनको यातना देने के लिए करते हैं, तो कुछ समय बाद लगेगा कि टेक्नालाजी बुरी चीज है. तंत्र-मंत्र के साथ यही हुआ है, क्योंकि बहुत ज्यादा लोगों ने अपने निजी फायदे के लिए इसका गलत इस्तेमाल किया. इसलिए आम तौर पर तंत्र-मंत्र को आध्यात्मिक मार्ग से दूर ही रखा जाता है.
– सद्गुरु (ईशा फाउंडेशन से साभार)