योगी : ब्रह्माण्डीय हवन में राजनीतिक संकल्प की आहुति

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पिछले वर्ष खबर आई थी आज़म खान ने योगी आदित्यनाथ पर विवाह को लेकर कुछ तंज कसा है. कुछ बातें ऐसी होती है जिनका आपसे कोई लेना देना नहीं होता लेकिन वो आपको अन्दर तक उद्वेलित कर देती है. ऐसे में आज़म खान को योगी के लिए दिया बयान मुझे पता नहीं क्यों बहुत गहरे में चुभ गया.

तो सबसे पहला विचार आया था वो यह कि आज़म खान की जानकारी के लिए एक बात बता दूं, ये जो योगी के कान में कुण्डल दिखते हैं ना, वो केवल फैशन के तर्ज़ पर नहीं पहने गए हैं, ये नाथ परम्परा में गुरु अपने शिष्य को जब दीक्षा के साथ कुछ “विशेष संकल्प” दिलवाते हैं तब पहनाए जाते हैं.

इसलिए किसी योगी पर विवाह के लिए तंज कसने से पहले इस बात की जानकारी हासिल कर लेना चाहिए कि यह “विशेष संकल्प” है क्या और इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि कोई आप पर खतना की परंपरा को लेकर भी तंज कस सकता है. और इस बात पर भी सवाल उठा सकता हैं कि क्यों इस्लामिक आतंकवाद और Taharrush जैसी चीज़ें दुनिया के लिए खतरा बन गयी हैं.

लेकिन नहीं हम जिस धर्म के अंतर्गत जी रहे हैं वो हर पंथ, सम्प्रदाय और मज़हब के लिए सम्मान सिखाता है. तो उन दिनों मैंने योगी के बारे में इन्टरनेट पर जानकारी हासिल की, उसी से पता चला योगी गोरखनाथ परम्परा के हैं, चूंकि मेरे आध्यात्मिक गुरु मुमताज़ अली यानी ‘श्री एम’ भी उसी परम्परा के हैं तो गोरखनाथ के बारे में जानने की उत्सुकता प्रबल हुई और जानकारी हासिल करने के लिए फिर इन्टरनेट का सहारा लिया…

और जैसा कि आजकल कहती हूँ कि सद्गुरु जब तब मार्ग दर्शन देने चले आते हैं, तो सामने सबसे पहला लेख उन्हीं का पाया. गोरखनाथ परम्परा और बाबा गोरखनाथ पर बहुत रोचक बातें उन्होंने बताई. जिसे मैंने मेकिंग इंडिया पर भी प्रकाशित किया लेकिन जिस बात पर मैं अटक गयी वो यह है –

नाथ परंपरा साधना की तीव्रता पर जोर देती हैं. उन लोगों ने इंसान के मनोवैज्ञानिक पहलू की बिल्कुल चिंता नहीं की, क्योंकि उनका मानना था कि मनोवैज्ञानिक पहलू इंसान का बेहद सूक्ष्म और दुर्बल हिस्सा है. उनका पूरा काम एक अलग स्तर पर है. वे जीवन-ऊर्जा को पूरी तरह से अलग आयाम में ले जाते हैं. इन परंपराओं में इस बात की कभी परवाह नहीं की गई कि इंसान को खुशहाल और प्रेममय कैसे बनाया जाए.

बस यह पढ़ते ही जो सबसे पहला ख़याल आया वो मैंने स्वामी ध्यान विनय को कहा कि मुझे शक़ है कि आप भी ज़रूर योगी और श्री एम की तरह नाथ परम्परा के हैं… क्योंकि वो अक्सर कहते हैं – “मैं यहाँ किसी की अपेक्षा को पूरा करने नहीं आया हूँ… I am very difficult man to live with….

खैर यहाँ बात कर रही हूँ योगी आदित्यनाथ की तो, ये जान लीजिये योगी आप लोगों की अपेक्षाओं की पूर्ती के लिए नहीं चुने गए हैं, उनका पूरा काम एक अलग स्तर पर है. वे जीवन-ऊर्जा को पूरी तरह से अलग आयाम में ले जाते हैं. इन परंपराओं में इस बात की कभी परवाह नहीं की गई कि इंसान को खुशहाल और प्रेममय कैसे बनाया जाए. बल्कि इस बात की परवाह की जाती है कि कैसे खतरे के निशान की तरफ पहुँच रहे हमारे सनातन धर्म को सुरक्षित किया जाए.

इसलिए जब रजत शर्मा ने आपकी अदालत में योगी से सवाल किया कि सन्यासी तो शास्त्रों की बात करते हैं लेकिन आप शस्त्रों की बात क्यों करते हैं?

तो उन्होंने जवाब दिया था हमारी सनातन परंपरा हमें सिखाती है कि शास्त्र पढ़ने पढ़ानेवाले सन्यासी को भी उस वक्त शस्त्र उठा  लेना चाहिए जब बात भारत माता की रक्षा की आ जाए…

तो एक योगी का राजनीति में प्रवेश केवल यूं ही नहीं हो जाता, ये उस सर्वोच्च सत्ता की ब्रह्माण्डीय योजना होती है जैसे कि नि:शब्दता को जब शब्द पर सवार होने की आवश्यकता पड़ती है तो उसे किसी अघोरी की काया से भी गुज़रना पड़े तो हिचकता नहीं है…

रूपांतरण की चरम सीमा पर आकर नीरवता का आकाश छन्न से टूट कर धरती पर बिखर जाता है जिस पर चलकर कोई तपस्वी अपनी पूर्णता के साथ प्रकट होता है और आसमानी हवन के साथ शुरू होता है दुनियावी सत्संग ……

ऐसे ही किसी पल में जन्मों से सुषुप्त अवस्था में पड़े राष्ट्र पुरुष के चक्र अंगड़ाई लेकर जागृत होते हैं और संगीत, साहित्य ही नहीं कभी कभी राजनीति और राष्ट्रनीति की ऊंगली थामे चल पड़ते हैं अपनी संभावित यात्रा पर…

संन्यास के टीले पर एकाकीपन को टिकाकर फिर वह दबे पाँव आता है मैदानों में और भीड़ का चेहरा बन जाता है…

ये जो भीड़ की आग बड़ी बड़ी लपटों के बावजूद किसी योगी के अल्पविराम पर आकर रुक जाती है … यही वो समय होता है जब लौकिक जीवन की योजनाओं में दैवीय शक्तियां प्रकट होती है… और असुरी शक्तियां राष्ट्रीय यज्ञ के हवन कुण्ड में स्वाहा हो जाती है…

आइये इस वृहद यज्ञ में हम भी संकल्प की आहुति दें कि जब जब भारत माता को हमारी आवश्यकता होगी हम अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों को कुछ देर विराम देकर राष्ट्र की चिति और विराट की रक्षा, विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अंगारे को हाथ में रख लेने से भी नहीं डरेंगे.

– माँ जीवन शैफाली

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