अब क्या होनी चाहिए यूपी की प्राथमिकताएँ?

1 कानून और सुव्यवस्था.
2 गुंडागर्दी, दबंगों की कमर तोड़ना.
3 भ्रष्टाचार पर रोक – विनाश असंभव है.
4 विकास.
5 राम मंदिर.

तर्क से बात रख रहा हूँ. विकास तब ही हो पाएगा जब माहौल सुरक्षा का होगा. विकास के लिए निवेश चाहिए और वो भी निजी क्षेत्र से. बिज़नस चलाना सरकार का काम नहीं.

बिज़नस में निवेश तब ही होगा जब निवेशक को प्रदेश में स्थैर्य का अहसास होगा. इसके लिए अनिवार्य है कि कानून की धाक हो.

यह तब ही हो सकता है जब गुंडागर्दी और दबंगई की कमर तोड़ी जाये. रंगदारी-फिरौती-वसूली, करियर ऑप्शन नहीं हो सकता, व्यक्ति किसी भी समाज से क्यों न हो.

भ्रष्टाचार पर रोक लगे. भ्रष्टाचार का उन्मूलन असंभव है. इस पर कई बार यह उदाहरण दे चुका हूँ कि जब तक लोग अपने दामाद उनकी ऊपरी कमाई से तय करेंगे, तब तक भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा.

बेहतर यही होगा… क्योंकि उद्योग और निवेशकों में भय उत्पन्न करे इतना भ्रष्टाचार विकास होने नहीं देगा. विकास के लिए आया धन भी बालू में लघुशंका जैसे गिरते ही अदृश्य हो जाएगा.

अगर गुंडा-दबंग को तोड़ने के हिम्मत प्रशासन में भर दी जाये तो कानून और सुव्यवस्था आते बहुत देर नहीं लगेगी. कल्याण सिंह यह कर पाये थे तो अब जो आएंगे वे क्यों नहीं कर पाएंगे?

लेकिन इतना होते-होते ही दो साल बीत जाएँगे, यूपी को सड़ाने का काम जो पिता-पुत्र ने किया है उससे उबरने इतना समय तो लगेगा ही.

बीच-बीच में ‘उनके’ द्वारा अपनी दहशत बनाए रखने के ‘शांतिपूर्ण’ प्रयास भी किए जाएँगे. वे भी उनके जितनी ही शिद्दत से निपटाए गए तो अगले पाँच साल में विकास के लिए बाधा नहीं बनेंगे.

प्राथमिकता संख्या 1, 2, 3 पर अगर काम किया गया तो 2018 के अंत तक विकास का रास्ता खुल सकता है. तब तक अगर पैसे लगाने ही हैं तो उद्रेकों के प्रशमनों में और सुरक्षा दलों की स्थिति सुधार में लगें.

नहीं तो पूरी आशंका है कि ठेकेदार ही मलाई उड़ाएंगे. पैराशूटियों को इसकी आदत है और वे अपने चुनाव क्षेत्र में विकास के नाम पर धन लाने की जोरदार मांग करेंगे.

कुल मिलाकर 2018 तक अगर बीजेपी को कानून और व्यवस्था तथा गुंडा-दबंग पर टाइट पकड़ जमाने दी गई तो विकास की शुरुआत होने लगेगी.

मंदिर तथा गोरक्षा को लेकर मामला ठंडा न पड़े, लेकिन इतना भी उबाल नहीं चाहिए कि श्रीराम को हाथ पकड़कर साइकिल पर बैठा लें. कानून और दबंग का मसला न रहा तो यह मुद्दा निपटाया भी जा सकता है.

वैसे मेरे लिए राम मंदिर का मुद्दा ऐसा है जैसे माँ या पत्नी के गिरवी रखे गहने छुड़ाकर लाने हो. लेकिन परिस्थिति का आंकलन करते, सबूरी मजबूरी है.

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