सुबह आँख खुलने से पहले मिर्ज़ा आये गुनगुनाते हुए….
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
और वो दो काजल भरी आँखें याद आ गयी जो तीन दिन मेरे घर में मेरी कोख का रास्ता खोजती रही… कहती है तुम्हीं से जन्मूँ तो शायद मुझे पनाह मिले….
और मैं उसे शुरू से कहती रही सिर्फ नौ महीने कोख में रखने और उसे जन्मने की पीड़ा के अलावा तुम्हारी सारी पीड़ा मेरे सर….
वो कुछ समझी शायद कुछ नहीं भी.. फिर भी उसे जैसे सब पता चल रहा था… इसलिए वो बार बार पूछती रही “माँ आप ठीक हो ना?”….. और फिर इन तीन दिनों में उसके सर की सारी अलाएं बलाएं एक एक कर मैंने अपने माथे ले ली….
हाँ अब ठीक है माँ…. क्योंकि एक नए रूप, नए रंग… नई नवेली बनाकर बेटी को विदा किया…. कहते हुए… ये दुनिया तेरे बाबुल का घर वो दुनिया ससुराल…. जब भी आओगी अपने घर आओगी…. गर्भनाल का रिश्ता सिर्फ गर्भ से जन्म देने से नहीं बनता…. तुम जिसका अंश हो उससे ही मेरा वंश है…
घर के आँगन में उगे टेसू के फूल तोड़ लाई थी वो साथ ले जाने के लिए… लेकिन वो फूल यहीं रह गए उसकी याद बनकर जो सूख जाने के बाद भी मेरे कम्प्युटर टेबल पर वैसे ही रखे हैं… वैसे ही जैसे जाने के बाद भी वो हमारे पास रह गयी… और मैं जानती हूँ… यादों के फूल कभी नहीं सूखते… इसलिए जब वो अपने दुनियावी ससुराल लौट गयी तब भी उसके बाबुल का यह घर महकता रहा उसकी कायनाती खुशबू से…
लेकिन कोई नहीं जानता वो मेरे दिल में कैसी अजीब सी ख़लिश छोड़कर गयी है…. कि उसके जाने के बाद मैं रात मिर्ज़ा के साथ बैठकर रोती रही…
यार बाबा उसने एक ही तो आशीर्वाद माँगा मुझसे कि उसका इश्क़ उसे नसीब हो… ध्यान बाबा कहते हैं… कायनाती योजना में हम अपने दृढ़ संकल्प से हस्तक्षेप कर सकते हैं लेकिन नियति को बदलना नामुमकिन सा होता है…
मैं नहीं जानती उसकी नियति क्या है… फिर भी मैंने अपने इश्क़ की बाजी लगाकर उसे उसके इश्क़ का आशीर्वाद दिया… लगा मेरी जादुई दुनिया का तिलिस्म जैसे भौतिक रवायतों में अपना वजूद खो रहा है…
कहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता…
स्वामी ध्यान विनय पूरे समय संभालते रहे… जगत जननी.. महामाया…. ये दुनिया, वो दुनिया, सब तुम्हारी ही रची हुई है…. हम सब तुम्हारे बच्चे हैं.. और पहली बार मुझे “तू” से संबोधित करते हुए कहते हैं… माँ तू टूट जाएगी तो हम सब कहाँ जाएंगे….
अभी तो पिछले जन्म के बहुत सारे रिश्ते… जो कभी बेटा, बेटी, पिता, माँ, दोस्त, दुश्मन रहे हैं वो इस जन्म में अपना हिस्सा मांगने आएँगे…. हर बार तुझे देना होगा…. तू माँ है…. हम सबकी… तू संभाल ले हम सबको…
अपने नाम ‘माँ जीवन शैफाली’ से चाहे ‘माँ’ हटा लीजिये, ‘शैफाली’ हटा लीजिये, लेकिन ‘जीवन’ कैसे हटा सकती हैं…. आपका जीवन आपका नहीं, हम सबका है….
हर बार अपनी मानस माँ अमृता प्रीतम और ओशो बब्बा की गोद में सर रखकर रोने वाली मैं…. कल रात सबको मैंने विदा कर दिया…. अपनी तलाश में निकल पड़ी… मेरा “मैं” अपने वजूद की लड़ाई लड़ता रहा…
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान ‘ग़ालिब’
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता…..
लेकिन सुबह सबने मिलकर मिर्ज़ा को मेरे पास भेज दिया… जा उसे साहिबां बना दे…. मेरा मन जैसे मिर्ज़ा हो गया और तन साहिबां… ध्यान और मैंने आसपास बैठकर चेहरे से चेहरा सटाकर यही रूप उसे दिखाया था जब वो घर में थी… अर्धनारीश्वर…. प्रेम का सर्वोच्च स्वरूप….
और मन से आशीर्वाद निकला…. यदि इस कायनात में कहीं भी ऐसा कोई तत्व है तो वो तुम पर इश्क बनकर बरसे….
तुम बाबा के कबीले की हो… बाबा ही की तरह जादुई… यह जन्म इस जादू को देख देख कर ही बिता लूंगी मैं…
ये न थी हमारी क़िस्मत, के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तिज़ार होता…..
लेकिन जिसे मैं एमी माँ और बब्बा की विदाई समझ रही थी… वो उनकी ही ममता थी तभी तो मन मिर्ज़ा तन साहिबां का ही ख़याल आया जो एमी माँ ने बब्बा पर लिखी है…..
कह रहे हैं दोनों… तुम छोड़ सकती हो हमें… इतनी स्वतंत्रता तो सबको होती ही है… हम कैसे छोड़ दें तुमको… इस कायनाती योजना में तुम्हारी नियति के सूत्रधार हैं हम…