यह काल का वो खंड है जहां आपका एक फेसबुक स्टेटस भी राष्ट्र के प्रति प्रेम और प्रतिबब्द्धता के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो रहा है.. एक अक्षर भी व्यर्थ न लिखे, हर बात महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण हो ताकि आपकी आनेवाली पीढ़ी इसे इलेक्ट्रॉनिक गार्बेज समझकर नकार न दे बल्कि परिवर्तन की लहर लाने वाली धरोहर के रूप में अपनी आनेवाली पीढ़ी को दिखाएं… कि देखो जिस धरती पर माथे पर तिलक लगाकर घूम पा रहे हो उसके लिए हमारे पूर्वजों ने कितना संघर्ष किया है… सोशल मीडिया को हलके में न ले…. ये एक हथियार के रूप में हमारे सामने आया है…. हर बार लड़ाई, संघर्ष और क्रान्ति तलवारों से नहीं होती..
मनुष्य निर्मित सभी “रिलिजन” और “मजहबों” को स्वीकार करने के साथ जो “धर्म” प्रकृति ने हमें दिया है उसी के अंतर्गत है सबकुछ. भविष्य किसी ने नहीं देखा लेकिन जो कुछ भी घटित हो रहा है वो अतीत के रूप में जमा होता जा रहा है.
इसलिए हम घटनाओं को कैसी प्रतिक्रया दे रहे हैं, ये हमारी बुद्धि का स्तर तय कर रही है. और मुझे विश्वास है कि हम सभी अपनी बुद्धि को राष्ट्र की शक्ति को बढ़ाने में लगा रहे हैं, ना कि सिर्फ उसकी नींव को कमज़ोर करने वाली घटनाओं को निपटाने में.
एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय जी ने दो बहुत अच्छे शब्द दिए हैं… राष्ट्र की चिति. जैसे मनुष्य के अन्दर आत्मा होती है वैसे ही राष्ट्र की आत्मा को “चिति” कहा जाता है. और जैसे किसी मनुष्य के अन्दर प्राण होते हैं उसे उन्होंने राष्ट्र का “विराट” कहा है.
तो जैसे मनुष्य अपने शरीर की भौतिक सुख सुविधाओं, रोटी, कपड़ा, मकान के संघर्षों के बीच भी अपनी प्राणशक्ति को बनाए रखते हुए अपनी आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी प्रयत्नशील रहता है उसी प्रकार हमें अपने राष्ट्र की भौतिक स्तर पर दिखनेवाली सुख सुविधाओं के अलावा उसकी प्राण शक्ति “विराट” और राष्ट्र की आत्मा “चिति” की आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी प्रयत्नशील रहना है.
और इन प्रयत्नों में वही सफल हो सकता है जो “धर्म” का वास्तविक अर्थ जानता हो. हमारा धर्म हमें सभी मज़हबों को सहन करना नहीं स्वीकार करना सिखाता है. किसी को कहीं खदेड़ना नहीं है… लेकिन जब तक “सहिष्णुता”शब्द रहेगा तब तक यह भाव रहेगा कि हम उन्हें मजबूरी में सहन कर रहे हैं… हमारा धर्म हमें स्वीकार करना सिखाता है… उन्हें स्वीकार करो…
लेकिन एक फिल्म का उदाहरण देकर मैं बात पूरी करूंगी कि क्यों हम भारत को माता कहते हैं, क्योंकि इस धरती पर जन्म लेने वाला हर शख्स जानता है कि हमारा धर्म भी उस माँ की तरह है जो सबको स्वीकार करती है, बेटा चाहे सुपुत्र हो या कुपुत्र. लेकिन जब कोई बेटा….. बहन, बेटी या माँ की लाज को दांव पर लगा देता है तो वो माँ खुद बन्दूक उठाकर उसका सीना छलनी कर देती है. मदर इंडिया याद है ना??
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