अलादीन और जादुई चिराग की कहानी पढ़ी तो सब ने होगी इसलिए बस एक प्रसंग लेते हैं. जब अलादीन चिराग लेकर लौटता है तो अलादीन का चाचा बनकर आया जादूगर, उस से चिराग मांगता है.
अलादीन कहता है मुझे सुरंग से बाहर निकालो, चिराग आप को ही देना है. जादूगर नहीं मानता, कहता है चिराग दे दे.
हुज्जत हो जाती है दोनों में और वहाँ जादूगर की सत्यता प्रकट हो जाती है कि वो कोई चाचा नहीं और अलादीन को केवल इस्तेमाल ही कर रहा होता है चिराग लाने के लिए क्योंकि वो एक नापाक आदमी है जिसके लिए सुरंग में उतरकर चिराग तक पहुंचना मना है.
सुरंग में हाजिर चिराग के रक्षक उसे खत्म कर देंगे. इसके लिए उसे अलादीन जैसे भोले मासूम लड़के की तलाश होती है.
तो इस हुज्जत में जब अलादीन जिद पर आ जाता है कि बाहर निकालो तो ही चिराग दूँगा, ये नकली चाचा जादूगर फिर गुस्सा हो कर अलादीन को मरने के लिए सुरंग में छोड़ जाता है और सुरंग का ढक्कन भी बंद कर देता हैं ताकि कोई अलादीन की पुकार सुनकर उसे बाहर निकाल न पाये.
उसके बाद की कहानी आप को पता है. रोते हुए अलादीन के हाथ की अंगूठी घिसती है और एक जिन्न प्रकट होता है आदि आदि. आगे लंबी कहानी है, उसके प्रसंग, प्रसंगोपात पेश होंगे.
आज यह कहानी याद आई जब सोशल मीडिया में शांतिदूतों ने जमकर दलितों को गरियाया, वो भी यह कहकर कि उन्होंने कम्यूनल ताकतों का साथ दिया.
ये बेशर्म सीनाजोरी उनकी फितरत है, बचपन से ट्रेनिंग मिलती है. विरला होते हैं जमीर के मालिक जो उस से कंडीशन नहीं होते और यहाँ पाये जाते हैं, जिनकी मैं इज्जत करता हूँ.
बाकी हमारी ज़िम्मेदारी है अलादीन को सम्हालना. वापस आया था तो अपनी माँ के पास ही. अच्छा हुआ चाचा की असलियत जल्द समझ में आई.
आगे अलाभीम का भविष्य उज्ज्वल हो उसमें हमें भी योगदान देना है. अलाभीम नाम गलत नहीं लिखा है, आप समझदार हैं.