इरोम जी, देश और भारतीय सेना सर्वोच्च है, राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर करिए राजनीति

इरोम शर्मिला को महज 90 वोट मिले. बहुत से दयावान लोगों की आँखों में इस वजह से कल से आंसू बह रहे हैं. लोकतंत्र की असलियत बेचारों की समझ में आ रही है.

इरोम ने पिछले साल अपना 16 साल का अनशन खत्म किया और राजनीति में आने का एलान किया. मुझे याद है तब ढेरो वामपंथियों ने इरोम के अनशन खत्म करने के फैसले का कटु विरोध किया था.

लेकिन कल यही वामपंथी, रविश कुमार और बुद्धिजीवी बनने की चाह रखने वाले आम जनमानस कल भारतीय लोकतंत्र के इस रूप पर आंसू बहा रहे थे कि 16 साल तक जनता के मुद्दों पर लड़ने वाली इरोम को महज 90 वोट मिले. नोटा से भी कम.

लेकिन क्या वाकई इरोम जनता के मुद्दों पर अनशन पर थीं?

इरोम अपने मुद्दों की वजह से नहीं अपने 16 साल के अनशन के चलते चर्चा में आयीं थीं. और ये अनशन इरोम ने मणिपुर से अफस्पा को हटाने के लिए, सेना को मणिपुर से हटाने के लिए किया था.

ऐसा आरोप था कि 16 साल पहले असम राइफल्स के जवानों ने 10 नागरिकों की एक फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी. इसके विरोध में अफस्पा को मणिपुर से ख़त्म करने के लिए इरोम ने अनशन शुरू किया.

अफस्पा और भारतीय सेना… ये दो मुद्दे आप जानते ही हैं किसके फेवरिट हैं.

वामपंथियों के लिए दो बातें बहुत जरूरी हैं. एक राष्ट्र की अवधारणा को कमजोर करना, दूसरा देश में ज्यादा से ज्यादा अशांति फैलाना. ये दोनों ही कारण उनके लिए उर्वरा जमीन का काम करते हैं.

और इरोम का अनशन ये दोनों ही कारणों को पूरा करता है. इसीलिए ये वामपंथी पहले इरोम के अनशन ख़त्म करने के फैसले के खिलाफ थे और आज इरोम को मात्र 90 वोट मिलने पर आंसू बहा रहे हैं.

लेकिन मणिपुर की जनता इनके नाटकों में नहीं फँसी. इरोम अपने देश की सेना के खिलाफ अनशन पर थीं. किसी सामाजिक, राजनैतिक मुद्दे पर नहीं.

स्वाभाविक बात है, वोट कोई देता ही क्यों.

सैद्धान्तिक रूप से इरोम जी से पूरी सहानुभूति है, लेकिन देश और भारतीय सेना सर्वोच्च हैं.

इरोम जी को राजनीति में प्रवेश राजनैतिक कारणों सामाजिक मुद्दों पर करना होगा.

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