राजनाथ को यूपी की गद्दी, केंद्र में विराजेंगे योगी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री के नाम पर मीडिया और सोशल मीडिया में अटकलें लगना शुरू हो गई हैं. जानकार अपने-अपने आंकलन के मुताबिक़ अलग-अलग नामों पर चर्चा कर रहे हैं.

हालांकि भाजपा ने इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोले हैं और ना ही चर्चा में आ रहे किसी नाम को नकारा है. सोशल मीडिया के अधिकतर नाम लोगों की व्यक्तिगत पसंद के आधार पर हैं, वहीं मेन स्ट्रीम मीडिया लोकप्रियता और जातीय समीकरणों के कारण कुछ नामों पर अटकलें लगा रहा है.

मेरी समझ के मुताबिक़ मुख्यमंत्री के नाम के बारे में भाजपा में कोई भ्रम नहीं है. और ये कोई चुनाव परिणाम आने के बाद की बात नहीं है. चुनाव में उतरने से पूर्व ही शीर्ष स्तर पर इसका फैसला हो चुका था.

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से दुरूह राज्य के लिए भाजपा नेतृत्व किसी लोकप्रिय लेकिन नए व्यक्ति के नाम का जोखिम नहीं ले सकती क्योंकि मसला उप्र के शासन संभालने से कहीं ज़्यादा 2019 के लोकसभा चुनाव का है.

ऐसे में पार्टी के शीर्ष स्तर पर बैठे केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बेहतर और कोई विकल्प है ही नहीं. राजनाथ न केवल अनुभवी राजनेता हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी साबित हुए हैं.

गृहमंत्री के तौर पर बीते पौने तीन साल में अनेक संवेदनशील मामलों, खासकर साम्प्रदायिक मुद्दों पर उनके निर्णय, उनकी प्रतिक्रियाएं, उनके बयान स्पष्ट कर देंगे कि उन्हें पहले दिन से ही जानकारी दे दी गई थी कि उन्हें उत्तर प्रदेश की कमान संभालना है.

हालांकि साम्प्रदायिक मुद्दों पर संतुलित राय और प्रतिक्रियाएं देने के कारण अक्सर उन्हें सोशल मीडिया पर कट्टर हिन्दूवादियों की कड़ी आलोचना झेलना पड़ी, पर भाजपा का लक्ष्य किसी सम्प्रदाय विशेष को संतुष्ट करना ना होकर, प्रधानमंत्री मोदी के ध्येय वाक्य ‘सबका साथ सबका विकास’ को चरितार्थ करना है.

मीडिया में चल रहे नामों में सबसे अधिक लोकप्रिय नाम गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का है. यहां एक बात समझने जैसी है, किसी संसदीय क्षेत्र का निर्विवाद नेता होना और प्रदेश का सर्वमान्य नेता होना, दो अलग-अलग बातें हैं.

योगी की कट्टर छवि का लाभ भाजपा को गोरखपुर और आसपास के इलाकों में मिलता रहा है, लेकिन प्रदेश की कमान उन्हें सौंपने से अल्पसंख्यकों और सेक्यूलर (मेन स्ट्रीम मीडिया) मीडिया में नकारात्मक प्रभाव पड़ता.

अब जब लोकसभा चुनाव बमुश्किल सवा दो साल दूर हैं, पार्टी जो भी निर्णय करेगी वह इन चुनावों को देखते हुए ही करेगी. पार्टी का पूरा जोर इसी बात पर रहेगा कि प्रदेश में 2014 का प्रदर्शन दोहराया जा सके.

योगी के समर्थकों को संतुष्ट करने के लिए उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलना भी तय समझना चाहिए. योगी भी इसे अखिल भारतीय स्तर पर अपनी छवि बनाने का अवसर जान सहर्ष स्वीकार करेंगे.

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