जीवन के रंगमंच से : जिन्हें अग्नि देवता का आशीर्वाद प्राप्त हो उन्हें जलाने की कोशिश भस्म कर सकती है तुम्हें

ma jivan shaifaly daughters

बात 2008 के पहले की है, जब नियति ने स्वामी ध्यान विनय से मुलाक़ात नहीं करवाई थी और मैं इंदौर में एक स्कूल में Personality Development Faculty के रूप में कार्यरत थी.

स्कूल की ओर से educational tour पर बच्चों के साथ हम टीचर्स खजियार (हिमाचल) जा रहे  थे. बस के सफ़र पर ड्राईवर के अलावा दो-तीन सहायक बच्चों की देखरेख के लिए ड्राईवर के पास वाले सीट पर बैठे थे.

कुछ टीचर्स अपने छोटे-छोटे बच्चों को साथ लेकर आई थीं जिनमें से कुछ बच्चे उत्सुकतावश ड्राईवर की बाजू वाली सीट पर बैठ गए. उनमें दो छोटी लड़कियां भी थी…

खिड़की के बाहर के नज़ारे दिखाने के बहाने उन आदमियों में से एक ने दोनों लड़कियों को अपनी गोद में बिठा लिया… मैं ड्राईवर की बिलकुल पीछे वाली पहली सीट पर बैठी थी और मेरी नज़रें पूरी तरह से उन बच्चों की निगरानी कर रही थी, क्योंकि हमेशा की तरह मुझे पूर्वाभास हो गया था कि यहाँ कुछ गड़बड़ है.

और मेरा intuition सही भी निकला, उन आदमियों में से एक की ऊंगलियों को मैंने बच्ची के शरीर पर हरकत करते हुए देखा…. इस पर मैं तुरंत अपनी सीट से उठी और सब बच्चों को अपनी अपनी सीट पर लौट जाने की हिदायत दी और उस आदमी की तरफ तो नहीं, लेकिन उसकी उंगलियों को मैंने इस तरह से घूर कर देखा कि उसने मुट्ठी भींच ली…

वो कुछ समझ पाता इसके पहले ही ड्राईवर ने बस रोक दी और सबको आसपास के गन्ने के घने खेत दिखाने लगा.. तब तक मैं अपनी सीट पर लौट चुकी थी और वो आदमी खेत से गन्ने काटने के लिए हंसिया लिए बस से उतर गया…

अचानक बस के बाहर से सबके चीखने की आवाज़ आई … गन्ना काटते हुए उस आदमी की दो उंगलियां पूरी तरह से कटकर हथेली से झूल रही थी… किसी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या किया जाए… मैंने जल्दी से उसकी उँगलियों को दोबारा उसकी जगह पर फिक्स करते हुए कस के एक कपड़ा बाँध दिया और ड्राईवर से कहा जल्दी से नज़दीकी गाँव की ओर बस दौड़ाए और जो पहला क्लिनिक दिखे वहीं गाड़ी रोक दे…

डॉक्टर ने उंगलियाँ देखकर पहले तो केस लेने से मना कर दिया कि उसके पास ऐसे उपकरण और सुविधा नहीं है कि वो सर्जरी कर सके… फिर मेरे समझाने पर जैसे तैसे उसने उपलब्ध साधनों से और बिना एनेस्थीसिया दिए उसकी उँगलियों में टाँके लगाकर ड्रेसिंग कर दी और कुछ दवाइयां भी दे दी.

पूरी यात्रा के दौरान वो दर्द से कराहता हुआ काम करता रहा… मैं बार-बार जाकर उसका हालचाल लेती रही और दवाई समय पर लेने की हिदायत देती रही… उसे तो पता भी नहीं था कि उसकी उँगलियों की एक ज़रा सी गलत हरकत ने मुझे कितना क्रोध दिला दिया था… माफ़ कर देने की आदत और इन्सानियत के कारण उसकी तीमारदारी भी कर दी…

बस वाली घटना का ज़िक्र पिछले वर्ष किया था जब किसी की उँगलियों ने मेरे फेसबुक अकाउंट के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की थी. वैसे ये घटना मुझे अक्सर याद आती है जब मेरे या मोदीजी के अतीत और वैवाहिक जीवन पर कोई कुंठावश अश्लील टिप्पणी कर जाता है. आप सोच रहे होंगे यहाँ भी मोदीजी बीच में आ गए. लेकिन आगे आप समझ जाएंगे क्यों.

तो पिछले हफ्ते ऐसी ही एक टिप्पणी एक वामपंथी ने मेरे उस लेख पर की जहां मैंने गुरमेहर को वामपंथियों के मायाजाल का शिकार बताया था.(गुरमेहर पर लेख यहाँ पढ़ें)


पहली बात यह कि वो जनाब कदाचित Making India को मोदीजी का Make In India समझ मुझे उसका एक कर्मचारी समझ रहे थे, तो इसलिए भी इस लेख में मोदीजी का ज़िक्र आना लाज़िमी है.

और दूसरी बात, अपने अतीत का एक एक पन्ना खुली किताब की तरह मैंने सोशल मीडिया पर खुला रख छोड़ा है. क्या ज़रूरत थी मुझे अतीत सबको बताने की? स्वामी ध्यान विनय से मिलने के बाद का जीवन ही काफी था मेरे लिए आप सबके दिलों तक की राह खोजने के लिए.

लेकिन नहीं, जब तक मैं खुद पारदर्शी नहीं होऊंगी, तब तक मेरा जीवन आपको दिखाई नहीं देगा, मुझसे पार मेरा जीवन देखने के लिए मेरे लिए मेरे अतीत का पर्दा हटाना आवश्यक था… और मैंने हटाया भी…

बहुत सारे नए लोग जो मुझसे बाद में जुड़े उनको ज़रूर ये बात अचंभित करेगी कि वो जो दो छोटी लड़कियाँ ड्राईवर की सीट के बाजू में बैठी थीं, वो मेरी ही बेटियाँ थीं, जो फिलहाल अपने पिता के साथ सुखपूर्वक रहती हैं.

बेटियों से अलगाव का सामाजिक उत्तरदायित्व लेते हुए अपनी आध्यात्मिक यात्रा के लिए आवश्यक योजनाओं के बारे में कई बार बता चुकी हूँ. मेरे और स्वामी ध्यान विनय का मिलना ब्रह्माण्ड की किसी सुनियोजित योजना के फलस्वरूप है, जिसके लिए हमने कई सामाजिक लांछन सहना होंगे हम जानते हैं. हम सह भी रहे हैं.

लेकिन अपनी कुंठा की अग्नि से यदि कोई हमारे अतीत को जलाने की कोशिश करेगा तो मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मैंने अग्नि को हमेशा देवता के रूप में पूजा है. इसलिए उसका विशेष आशीर्वाद प्राप्त है, ऐसे में जलाने वाला खुद भी भस्म हो सकता है. बिलकुल वैसे ही जैसे कुछ साल पहले शिमला में मोदीजी से सम्बंधित एक वीडियो वायरल हुआ था कि कुछ लोग मोदीजी का पुतला जलाने की कोशिश में खुद को ही जला बैठे थे.

Congressi workers Burn Badly Trying to Set Modi’s Effigy on Fire in Shimla

 
तो सामान्यत: मोदीजी ही की तरह मुझे भी क्रोध नहीं आता… लेकिन क्रोध आ गया तो तुम्हारी उंगलियाँ तुम्हारी हथेली पर नहीं होगी…. हाँ, तीमारदारी करने ज़रूर पहुँच जाऊँगी.

और हाँ मेरे पाठकों के लिए विशेष रूप से कहना चाहूंगी चित्र में दिखाई दे रहे अहा ज़िंदगी में प्रकाशित लेख के पीछे की जादुई कहानी अगली कड़ी में अवश्य बताऊँगी.

– माँ जीवन शैफाली

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