इंसान कौन और पशु कौन?

आज बांकुड़ा के जंगलों में गया था, वहां आये दिन हाथियों का उत्पात होता रहता है. कई बार वहां के एकाध हाथी हिंसक भी हो उठते हैं और इंसानों पर हमला कर देते हैं. साल में औसतन लगभग 15 से 20 लोग इनके द्वारा मार दिये जाते हैं.

मैंने वहां के स्थानीय लोगों से पूछा कि उतने हाथियों के बीच ये कैसे पहचानते हो कि किस वाले हाथी ने इंसानों पर हमला किया है ? उन्होंने बताया कि उसके क़दमों के यूनिक निशान से.

इंसानों पर हमला करने वाले हाथियों को वन-विभाग द्वारा पकड़ने का तरीका बड़ा रोचक और हैरत भरा है. हाथी झुण्ड में चलते हैं, झुण्ड का कोई हाथी जब इंसानों पर हमलावर हो जाता है तो झुण्ड के बाकी हाथी उसे गलत काम करने वाले समझते हुए अपने से अलग निकाल देतें हैं, इसलिये ऐसे हाथी को पहचानने का दूसरा तरीका ये है कि वो हाथी झुण्ड से अलग कुछ किलोमीटर दूर चलता है.

एक बार जब उसकी निशानदेही हो जाये तो महावत किसी पालतू हाथी या हथिनी को (यदि नर हाथी हिसंक हो गया हो तो मादा हथिनी को और अगर मादा हथिनी हिंसक हो गई हो तो नर हाथी को) उस हिंसक हाथी के पाँव का निशान दिखा कर कुछ समझाकर जंगल में छोड़ देतें हैं, आम भाषा में कहें तो ये पालतू हाथी या हथिनी अपने महावत के निर्देशानुसार उन क़दमों की निशानदेही करते हुये जंगल में जाता है और उस हिंसक हो चुके उस हाथी या हथिनी को पटाकर जंगल से अपने घर ले आता है और फिर वन-विभाग द्वारा उसे पकड़ लिया जाता है.

इंसानों पर हमला करने के आदी हो चुके अपनी साथी को पहले अपने समूह से अलग करने और फिर उसे पकड़वाकर वन-विभाग को सौंप देने की हाथियों की इस प्रवृति से हम मनुष्य अपनी तुलना कर सकतें हैं.

अपने बीच से गलत को बहिष्कृत करने और फिर उसकी हिंसकता और पशुता का दंश किसी को न झेलना पड़े इसलिये उसे पकड़वाने की हाथियों के इस प्रवृति को जानने के बाद से यही सोच रहा हूँ कि इंसान कौन है और पशु कौन ?

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