बिंदियाँ घंटों आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारती रहती … पूरे घर में इतराती डोलती …कभी बिंदी से माथा सजा लेती तो कभी गुलाबी होंठों को लाली से लाल कर लेती ….
ये उम्र और सुंदरता दोनों का असर था … उसने ढेरों सपने जो पाल रखे थे …उन सपनों में उसका वो राजकुमार भी था जो एक दिन आएगा और उसके सामने बैठकर उसकी खूबसूरती को लफ्ज़ देगा …
मन ही मन बिटिया को नजर से बचाये रखने वाली दुआएँ मांगती उसकी अम्मा ऊपरी मन से अक्सर गुस्से में बोल देती ..
” तू पड़ोसियों की बातों को दिल से लगाकर खुद को हूर की परी ना समझ लड़की ”
ना जाने कितनी पड़ी होंगी तेरे जैसी …
“बिंदिया” जानती थी वो खूबसूरत थी … बेहद खूबसूरत …
उस दिन भी दोपहर को सज संवरकर घर से निकली बिंदिया यूँ पिघल कर वापस आएगी किसी ने नहीं सोचा था …
बीच सड़क पर उसके चेहरे की सफ़ेद खाल टपक कर जमीन पर गिर रही थी … और माथे से पिघली खाल ने पलक झपकते ही आँखों में समाकर रोशनी छीन ली …
दिमाग और शरीर दोनों सुन्न पड़ गए थे …
ये हुआ क्या था !! कुछ देर तक किसी को समझ नहीं आया …
फिर, पास पड़ी तेज़ाब की बोतल ने पूरी कहानी खुद ही बयाँ कर दी …
बिंदिया अपने दोनों हाथों को हवा में फैलाकर चीख रही थी … कुछ ही पलों में ये आवाज भी बंद हो गयी ,और वो जमीन पर बिछ गयी …
दिन के उजाले में बिंदिया का अँधेरा हो गया था….
ये अँधेरा ना जाने कितने शहरों की कितनी ही लड़कियों के जीवन में घर कर गया. और उन्हें एक नया नाम मिल गया ” एसिड विक्टिम ”
इन हमलों में ज्यादातर वो लड़कियाँ शामिल थी जिन्होंने “शादी” का प्रस्ताव ठुकरा दिया था …
तेज़ाब ने इन पर ऐसा कहर बरपाया कि ईश्वर की बनायी हुयी छवि भी अपना अस्तित्व नहीं बचा पायी …
कई लड़कियों को इन्साफ मिला … या यूँ कहिये … औपचारिकता भरा इन्साफ …
दोषीयों को सजा सुनाई गयी … पर जरा सोचिये … कारावास की सजा क्या तेज़ाब से धुले हुए चेहरे की जलन के अहसास के समानांतर है !!!
मेरा मन रोष से खौल जाता है और सवाल करता है-
क्या सालों की सजा काफी है ऐसे नर पिशाचों के लिए !!! जो एक ही पल में तेज़ाब डालकर लड़की की ज़िन्दगी तबाह कर देते हैं ..
माधुरी को भी अब जब भी खुद से मिलना होता है तो वो अपनी पुरानी तस्वीरें उठा कर देखती है … उसे कुछ भी पहले जैसा नहीं दिखता …आँख ,कान ,नाक, मुँह , कुछ भी ठीक सा नहीं बचा है उसके चेहरे में …
जैसे किसी मूर्तिकार की मूर्ति पर जानवर ने पंजा मारा हो …
यहाँ तो तेज़ाब से नहाई हर लड़की की अपनी अलग कहानी है …
किसी के प्रेमी ने चेहरा बिगाड़ा है तो किसी के पति ने … किसी को तेज़ाब पिला दिया जाता है …तो किसी की सौतेली माँ ने सोते हुए तेज़ाब डाल दिया …
इन अनगिनत कहानियों में रूह कंपा देने वाला दर्द छुपा है …इस दर्द को छुपाकर अपने लिए इंसाफ मांगती ये निर्दोष लड़कियाँ दर -दर भटक रहीं हैं … और कुछ बिगड़े चेहरे का दर्द लिए उपरवाले के पास जाकर दुनिया को अलविदा कह गयीं …
कभी-कभी जघन्य अपराधों को देखकर मुझे भी लड़की होना खलता है … बलात्कार की तरह ही हमारे क़ानून में एसिड फेंकने वाले अपराधियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है. और जो न्यायिक प्रक्रिया है भी वो इतनी लम्बी होती है कि फैसला आने तक अपराधी मौज उड़ाते हैं. और पीड़िता हर रोज जीने का नया तरीका ढूंढती है…
कई संगठन इन पीड़ित लड़कियों के लिए काम कर रहे हैं पर जानकार हैरानी होती है कि ऐसे संगठनों का साथ देने के लिए कई बार पढ़े लिखे लोग भी आगे नहीं आना चाहते.
एक संगठन ने जब एक कॉलेज में ” एसिड विक्टिम ” पर सेमीनार करने की इच्छा जाहिर की तो कॉलेज की प्रिंसिपल ने यह कह कर मना कर दिया कि एसिड विक्टिम का चेहरा देखकर छात्राएं डर जायेंगी.
ये कड़वा लेकिन शर्मनाक सच है जो कई बार इन लड़कियों को झेलना पड़ता है. लोग इनके चेहरों से डरते हैं और इनके पास तक नहीं आना चाहते. तो वहीँ दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन चेहरों को सहलाते और चूमते हुए भी नजर आते हैं. ताकि इन एसिड विक्टिम को एक नयी खूबसूरत ज़िन्दगी देने के लिए पहल की जा सके.
पिछले वर्ष इन एसिड विक्टिम का फोटोशूट भी किया गया. जहाँ कैमरे के सामने खूबसूरत मुस्कान बिखेरती ये लड़कियाँ ” फैशन आयकॉन ” भी बनीं …और उन्होंने उनसे डरने और घिन्न करने वाले लोगों को एक सबक दिया …हर हाल में ज़िन्दगी जीने का सबक.
साथ ही ‘शी-रोज हैंग आउट कैफे चेन’ एसिड अटैक विक्टिम्स ही मिलकर चला रही हैं. आगरा में इस कैफे चेन की शुरुआत एसीड अटैक विक्टिम नीतू की मदद के लिए की गई है. यहां उसके साथ एसिड अटैक की शिकार बनी अन्य लड़कियां भी काम कर रही हैं. आगरा के बाद यह कैफे चेन दिल्ली, लुधियाना, कानपुर और मेरठ में खोला जाना है. ताकि इन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जा सके…
इन लड़कियों के जज़्बे और ज़िन्दगी जीने की चाह को देखकर अब इन्हें “एसिड विक्टिम ” ना कहकर “एसिड फाइटर ” कहना ज्यादा उचित रहेगा…
– Pooja Vrat Gupta