चीनी अखबार ‘पीपुल्स डेली’ मे छपी खबर के अनुसार चीन की साम्यवादी सरकार ने दक्षिण कोरियाई मूल के 32 ईसाई मिशनरियो को देश से निकाल दिया है… ये सभी मिशनरी कोरिया के सीमावर्ती चीनी प्रांत ‘यांगजी’ मे ईसाई धर्म के प्रचार के बहाने चीनी नागरिको का धर्मांतरण कर रहे थे…
चीनी साम्यवादियों ने मिशनरियो की इस गतिविधि को देशविरोधी पाया… चीनी साम्यवादियो का मानना है कि धर्मांतरण से केवल पूजा पद्धति नहीं बदलती वरन् इससे राष्ट्रनिष्ठा बदल जाती है और राष्ट्र में अलगाववादी आंदोलन को बढ़ावा मिलता है…
अब चीनी साम्यवादियों की इस नीति की तुलना भारतीय वामपंथियो से करिये. सारे नक्सली संगठन और माओवादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिशनरियों को अपना आदर्श मानते हैं.
वैचारिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से वे मिशनरियो के ऐजेंडे का अनुसरण करते हैं. नक्सली क्षेत्रों से हिंदू साधु-संतो, प्रचारकों की हत्या… मंदिरो को ढहाना आम बात है… उड़ीसा से बस्तर और बंगाल से आंध्र तक नक्सलियो/माओवादियो ने केवल हिंदू धर्म को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है…
अभी पिछले माह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में “ढोलकल गणेश” की हजारों साल पुरानी प्रतिमा को नक्सलियों ने नष्ट कर दिया… नक्सलियो के संबध पाकिस्तानी चरमपंथी धार्मिक आतंकियो से भी है… माओवादी/नक्सली अपने प्रभाव क्षेत्र में सर्वप्रथम आम नागरिकों /वनवासियों को हिंदू प्रतीक चिन्हों को धारण करने पर रोक लगाते हैं.
धर्मांतरण के कारण बढ़ते अलगाव को रोकने के लिये धर्मांतरण विरोधी कानून का सबसे अधिक विरोध भारत के कम्युनिस्ट/वामपंथी दल ही करते हैं.. वे धर्मांतरण पर रोक को अमानवीय और मानव की स्वतंत्रता का हनन करने वाला मानते हैं.
वे धर्मांतरण को विचार अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकार से जोड़ते हैं. भारत में जहां जहां कम्युनिस्ट/वामपंथी सरकारे रही या प्रभाव रहा… उन्होंने मिशनरियों को प्रश्रय देकर जमकर धर्मांतरण कराया… केरल, बंगाल, त्रिपुरा, तमिलनाडू, बिहार और पूर्वोत्तर मे मिशनरियो के जाल को इन्ही कम्युनिस्ट/वामपंथियो ने फैलाया….
कार्ल मार्क्स ने ये जरूर कहा था कि “धर्म अफीम के समान है.” पर ये उसने सभी धर्मो के लिये कहा था… किंतु भारत के नकली/पाखंडी/राष्ट्रद्रोही वामपंथी केवल सनातन/हिंदू धर्म के ऊपर ही मार्क्स की इस परिभाषा को फिट करते हैं … बाकी धर्मों को वे इसकी परिधि में लाने की हिम्मत सपने में भी नहीं कर सकते….
भारतीय मार्क्सवादियो को कम्युनिस्ट या वामपंथी कहना मार्क्स के दर्शन का अपमान है… वास्तव में मार्क्सवाद/कम्युनिज्म की आड़ में भारत में इस विचारधारा के मुखौटे के पीछे भारत/हिंदू विरोधी छिपे हुऐ हैं… जिनका उद्देश्य केवल पाकपरस्ती और देश कोे विघटन की ओर ले जाना मात्र है.