मैंने देखा है, वह देहानल
अनियंत्रित अग्नि
जो शून्य कर देता है चतुर्दिक खड़े लोगों का वजूद
धवल दंत पंक्ति ने दबाया रक्तिम होंठों को
फिर आँखों का कटाक्ष
दग्ध कर देती है यह अग्नि शिकार को
क्षार हो जाते हैं उसके मन के नियंत्रण
पावक में भस्म हो जाने के लिए चल देता है पतंगा !
मैंने देखी है, वह करुणा
हिलोरें मारता ममता का समुद्र
तैरना नहीं जानता है वह शिशु
पर सुरक्षित है इस विशाल उफनती जलराशि में
तुम्हारे करुणा के आलिंगन में
वरद मुद्रा में उठे हुए कोमल हाथों में !
मैंने देखा है, वह प्रचंड-क्रोध-ताप ज्वाल
जिसमें तुम्हारा रूप हो जाता है कराल
आततायी का मस्तक अपने हाथों में धर
पी जाती हो उसका रुधिर
हो जाता वह संज्ञा शून्य
समाप्त हो जाती उसकी विनाश लीला पल में !
मूढ़ हैं वो जो कहते हैं
तुम पुरुषों के बराबर हो जाओ
काल की पट्टिका पर तुम्हारा अस्तित्व
काफी आगे है पुरुषों से
खुद का अवमूल्यन मत करना
नर के बराबर कभी ना होना
यह तुम्हारी जीत नहीं हार होगी!
मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की
पृथ्वी के भार जितना बोझ दिल में लिए भी
इंसान देख लेता है हवा में उड़ता सफ़ेद रेशों वाला
वो परागकण, जो खोजता रहता है अपने जैसा कोई फूल…
आँधियों के थमने पर चिड़िया फिर निकल पड़ती है
हवाओं को चीरती किसी चिड़े की तलाश में…
बाढ़ में बिखर जाने के बाद भी
नदी नहीं छोड़ती सागर तक की अपनी राह….
और किताब में दबे एक गुलाब के सूख जाने के बाद भी
उसकी महक ज़िंदा रहती है बरसों…
सारी वर्जनाओं के बाद भी
आदम खा लेता है अदन के बाग़ का फल…
आसमानी हवन और ब्रह्माण्ड की सारी हलचल के बाद भी
गूंजता रहता है अंतरिक्ष में ओंकार…
जिस पर सवार होकर उतरती हैं कई अलौकिक कहानियां
इस लौकिक संसार में…..
दुनिया के इस कोने से उस कोने तक सारी कहानियां मेरी ही है
और उन सारी कहानियों की नायिका भी मैं हूँ
लेकिन बावजूद सारी संभावनाओं के
एक असंभव सा बयान आज मैं देती हूँ कि
तुम आग को रख लोगे सीने में,
तुम आँखों से पकड़ सकोगे पानी
हवा भी महकती रह सकती है तुम्हारी साँसों में
लेकिन तुम मुझे कैसे पाओगे
जब मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की…..
#InternationalWomensDay अलग से मनाने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि सब दिन हमारे हैं
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