बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ अभियान में देश के वामपंथ का योगदान : मैं गुड्डी हूँ

विश्व महिला दिवस पर देश की महिलाओं को भारतीय वामपंथ की स्नेह सौगात, जिसकी सनद जरूरी है.

– संगीता उर्फ गुड्डी को 11 साल की उम्र में ही नक्सलियों के साथ कर दिया गया था. उसने आठ साल तक उनके साथ काम किया.

– 20 साल की उम्र होने पर उसने अपने सुनहरे भविष्य के सपने को साकार करने की कोशिश की और माओवादियों के कैम्प से भाग गई.

– वह छुपकर गुमला में रहने लगी. किराए का कमरा लिया और स्कूल में दाखिला लिया. हालांकि उसे इस बीच धमकियां भी मिलती रहीं.

– साल 2015 की 28 जुलाई को गुड्डी ने एक अखबार से बात की थी, तब उसने बताया था कि किस तरह उसकी जान को खतरा है.

– उसने कहा था कि चाहे जो हो जाए, मैं पढ़ाई जारी रखूंगी और किसी भी हाल में दोबारा नक्सलवाद की दुनिया में नहीं जाऊंगी.

– संगीता ने कहा था, मैं सरेंडर नहीं कर सकती, क्योंकि जैसे ही मेरे नेताओं को पता चलेगा, वे मेरे माता-पिता और भाई-बहन की हत्या कर देंगे.

– मैं तब तक पढ़ाई कर सकती हूं, जब तक कि मेरी असली पहचान उजागर नहीं हो जाती या जंगल में बैठे मेरे आका मुझे जबरन उठाकर नहीं ले जाते.

– मार्च 2016 में जब वह नक्सल प्रभावित सिबिल में अपने माता-पिता और भाई-बहन से मिलने पहुंची तो उसे अगुवा कर लिया गया.

– नक्सिलयों ने हाथ से लिखी एक चिट्ठी छोड़ी, जिसमें लिखा था कि गुड्डी को मरना होगा, क्योंकि कई बार की चेतावनी के बाद भी उसने अपना रास्ता नहीं बदला.

– बाद में उसकी लाश मिली, जिसे स्थानीय लोग अस्पताल लेकर आए.

– गुमला थाने के अधिकारी भीमसेन टुटी के मुताबिक, संगीता पुलिस की खुफिया नहीं थी. उसके खिलाफ किसी नक्सली केस की भी हमें जानकारी नहीं है.

– आज गुड्डी की हत्या को एक साल हो गए और लाल आतंक इन्ही तरीकों से आज भी देश की गुड्डियों को पढ़ा रहा है, बचा रहा है.

स्त्री देह से शुरू होते आये परंपरागत नारी विमर्श को नारी देह के लहू तक पहुँचाने पर कामरेडों को खूनी बधाई. बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के सामाजिक धर्म को अपने अंदाज़ और समझ से निभाने की बधाई.

गर हो सके तो एक लाल बलगम भरी खखार अपने चेहरे की तरफ उछालो साथी : कौन कहता है कि बलगम और खून से चेहरे नहीं धुला करते! क्यों?

Comments

comments

LEAVE A REPLY