दो दिन से दिल्ली में हूँ. पहली बार दिल्ली 1980 में आया था. ये वो दौर था जब अभी कोटा राजस्थान में जहां हम उन दिनों रहते थे, टेलीविज़न नहीं आया था.
यहाँ दिल्ली में आ के देखा कि हर छत पर एंटीना लगे हैं. मैंने अपनी cousin से पूछा कि ये क्या है?
उन्होंने समझाया कि टेलीविज़न का एंटीना…
उस दिन लगा दिल्ली तो एंटीना का शहर है. फिर मैं कुछ साल दिल्ली रहा. यहां पढ़ा भी…
उन दिनों ये पंजाबियों का शहर हुआ करता था, जहां मदन लाल खुराना और वी के मल्होत्रा जैसे पंजाबी नेता हुआ करते थे.
आज देखता हूँ कि दिल्ली बिहारियों-पुरबियों का शहर बन गया है. दिल्ली की सम्पूर्ण झुग्गी झोपडी, निम्न माध्यम वर्ग और माध्यम वर्ग पुरबिया है.
यही हाल कमोबेश हर शहर का है. उत्तर भारत का शायद ही कोई शहर होगा जहां 20 – 30 या 40 प्रतिशत आबादी पुरबियों की न हो.
और अब ये सिर्फ मजदूर नहीं रह गए हैं. इनमे से ज़्यादातर अब यहाँ सेटल हो रहे हैं. राशन कार्ड, आधार, वोटर लिस्ट में नाम सब यहीं है… अब ये यहां प्रॉपर्टी खरीद के बाकायदा घर बना रहे हैं.
एक मित्र की पोस्ट देखी कि पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां मत प्रतिशत 80 या 90 प्रतिशत है तो पश्चिमी यूपी में सिर्फ 64% और पूरब में सिर्फ 55 या 57% क्यों?
यूपी में वोट देगा कौन? आधा यूपी तो दिल्ली, मुम्बई, सूरत, लुधियाना में जी-खा रहा है?
कई मित्र पूछ रहे हैं कि वोटिंग सिर्फ 57% हुई है. क्या होगा?
मैंने सबको दिलासा दी कि 57 प्रतिशत हुई मने बंपर वोट पड़ा वरना इस इलाके में तो 48% या 50% वोट पड़ता था पहले.
यदि आप चाहते हैं कि यूपी में भी 90% वोट पड़े तो वोट को आधार कार्ड से जोड़ दीजिये. देखियेगा कि यहां 90 नहीं बल्कि 99% वोट पड़ गया.
सत्य ये है कि यूपी के लोग राजनैतिक रूप से सबसे ज़्यादा जागरूक हैं. वोट को आधार कार्ड से जोड़ो और देश में कहीं से भी बैठे वोट देने की सुविधा दो.