अक्सर लोग ये इल्जाम लगाते हैं कि मैं मोदी का समर्थक हूँ, जो एक लेखक को नहीं होना चाहिए!
उनके लिए यह जवाब है कि हर लेखक एक व्यक्ति होता है और हरेक व्यक्ति का कहीं ना कहीं राजनैतिक झुकाव स्वाभाविक है. क्या मैं एक लेखक से पहले एक व्यक्ति नहीं?
और फिर जब अधिकांश दूसरे लेखक वामपंथ या कांग्रेस के समर्थक होते हैं तो ये इल्जाम उन पर क्यों नहीं लगता?
एक परिवार विशेष का पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम होने से क्या ये अच्छा नहीं है? इसमें कम से कम ये गुंजाइश तो है कि हमारा पसन्दीदा नेता मोदी के पहले कोई और था, और मोदी के बाद कोई और नेता होगा.
जहां तक वामपंथ की बात तो एक तरफ वामपंथी इतिहास देख लें, विश्व का और भारत का भी, क्या इससे भयंकर तानाशाही और आतंकी सरकार किसी और की हो सकती है? शायद नहीं.
जो भी इसके समर्थक हैं जब उन्हें इसका खुल कर बौद्धिक समर्थन करने से हिचक नहीं तो फिर मैं अगर हिन्दू विचारधारा को समर्थन करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ?
क्या कोई इस बात से इनकार कर सकता है कि हिन्दू जैसी सहिष्णु और सकारात्मक विचारधारा कम से कम मानवीय इतिहास में दूसरी नहीं.
इसका यह मतलब नहीं निकाला जाए कि हिन्दू जीवन शैली में कोई कमी नहीं. हैं, मगर उसमें ये सामर्थ्य है कि वो अपनी हर कमजोरी को स्वीकार करती है और उसे ठीक करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहती है.
सच कहूँ तो मैं मोदी का उतना बड़ा समर्थक नहीं जितना अन्य सभी नेताओं का बड़ा विरोधी हूँ.
आज की तारीख में हिंदुस्तान के हर नेता का नाम एक-एक करके देख लें. उन सबका नाम भी मैं यहां नहीं लिखना चाहता.
अगर आप को कोई नेता बेहतर नजर आता हो तो यहां बिन्दुवार बहस की जा सकती है. बात लेकिन तर्कपूर्ण तथ्यों के साथ हो तब ही सही निष्कर्ष निकल पायेगा.
अंत में एक बात और, जिस दिन मोदी से बेहतर नेता मिल जाएगा हम मोदी की कमियां भी खुले में लिखने लगेंगे.
फिलहाल जो सर्वोत्तम उपलब्ध है हमें उसके काम में बेवजह रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए. लंबे समय के बाद देश को कम से कम कोई ऐसा नेता तो मिला है जो कुछ करने का प्रयास तो कर रहा है.