फरज़ाना बिटिया!
देश के भगवाकरण पर तुली सरकार वाली फिल्म सेंसर बोर्ड ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ को रिलीज नहीं होने दे रही जबकि फैशन के मुताबिक तो फिल्म टाइटल साउंड करता है कि इसका रंग हरा है!
तो क्या अब देश का इस्लामीकरण किया जा रहा है? सेंसर बोर्ड ने अश्लीलता आदि जैसी तमाम वजहों के साथ बुर्के शब्द पर भी आपत्ति जताई है.
फरज़ाना बेटी! क्या इस फिल्म पर बैन के लिए आपके कॉमरेड अंकल ने कोई जलसा सजाया?
क्या आपकी अम्मी और मेरी भाभीजान के किसी ममेरे-मौसेरे भाई ने कोई तमगा उर्फ़ अवॉर्ड वापस किया?
अभिव्यक्ति की आजादी के केक काटे किसी जमानती ज्युवेनाइल नारेबाज ने? पाव भर या सौ ग्राम भी सहिष्णुता-असहिष्णुता तौली गयी खबरों की मंडियों में?
कोई गिरोही पोस्टर-बैनर-फेसबुक पोस्ट, ट्वीट की नुमाइश? कोई नारी विमर्श? कोई रचनात्मक-सृजनात्मक काम पर आपातकाल के मुहरर्मी मरसिये? कोई कम ज्यादा पढ़ाई-लिखाई पर थूक भरी शायरी हुई?
बिटिया! वो लाल बड़ी टिकुली और मोमबत्ती-गिटार-खंजड़ी वाली नाराई नारीवादिनें कहाँ हैं? कहाँ है आज़ादी की वो कमसिन सोन चिरइया जो हर मौके-बेमौके फ्रीडम डाल पे फुर्र-फुर्र करती सहवास तक की आजादी चाहती रही है?
देखा फरज़ाना बिटिया! किसी ने भी बुर्के के भीतर सजते लिपस्टिक की रोक पर परवाह नहीं की. किसी को आपकी और भाभीजान की आज़ादी का ख्याल नहीं आया.
जबकि ग्लासगो फिल्म महोत्सव में लिपस्टिक अंडर माई बुर्का को स्कॉटरेल ऑडियंस अवार्ड दिया गया है.
बेटू! आज तुम्हे और भाभीजान दोनों को संतोष होना चाहिए कि तुमने तीन-तलाक जैसी बर्बर प्रथाओं के खिलाफ अपने प्रधानमंत्री का साथ दिया ही नहीं, मुखर होकर बताया है.
इस आगे बढ़ने के दौरान अगर चुनाव आये रास्ते में तो बूथ तक जाकर उंगलियों के जरिये समर्थन जताया भी है.
आओ हम-तुम और भाभीजान मिल कर इस पाबंदी और पाबंदी पर गिरोहों के चिंतन-बंदी की कड़ी निंदा करें, भर्त्सना करें, इन्हें जाहिल कहें, इन पर लानतें भेजें.