गुलाबी बातें गुलाबी गालों की विरासत होती हैं..
जिन गालों पर उदासी का पीलापन चढ़ जाता है उनके हिस्से में आती है दुनिया की रवायतें, ज़िंदगी की रुसवाइयां, इंतज़ार की पहाड़ियां और आंसुओं की नदियाँ…
लेकिन इन चार बातों को रुबाई बनाकर जब कोई दरवेश अपनी आवाज़ में उतारता है तो गुलाबी गालों पर भी एक पीली सी लकीर खिंच जाती है…
उसी पीली लकीर को पगडंडी बनाकर वो गुलाबी राजमार्ग के घने यातायात से उतर आई है- ये लोग कह रहे हैं… और ये ‘उतरना’ शब्द उसे समाज की चरित्र की भाषा के पैरों तले घसीट लाती है…
कभी कोई उन पगडंडियों पर दूर तक उसका पीछा करता है…
आख़िरी बार उसे किसी पहाड़ पर नंगे बदन चढ़ते देखा गया… लेकिन उसकी नग्नता में भी एक दिव्य अनुभूति थी… सफ़ेद झक्क बर्फीले पहाड़ों पर चढ़ते हुए जिसने उस झक्की को देखा वो उसे उस पहाड़ के श्वेत पैरहन से अलग नहीं कर सका….
हाँ वो नग्न है क्योंकि उसने समाज का चोला उतार दिया है… कहते हैं आसमान रोज़ दो बार उसके माथे पर चुनर ओढ़ाता है …
एक बार केसरिया चुनर में सूरज को टांक कर वो सबको आशीर्वाद देने पहाड़ों से नीचे उतरती है….
दूसरी बार काली चुनर में शक्ति कणों को समेटने पहाड़ों के रहस्यमयी अंधेरों में गुम हो जाती है…
वो कहाँ जाती है ये धरती का रहस्य है जिसे केवल वही जान सकता है जिसमें दिगम्बर (आसमान जिसका पैरहन हो) कहलवाने का साहस हो….