आप सभी इन दिनों मोदी जी का भाषण रोज़ सुन रहे हैं…. क्या भूतकाल, क्या वर्तमान काल… अन्य नेताओं से मोदी जी में क्या अंतर पाते हैं?
मोदी जी का भाषण अगर दोपहर 12.00 है तो वो 11.57 मिनट पर स्टेज पर चढ़ते हुए पाये जाते हैं. ठीक 12.00 बजे भाइयों और बहनों के कानों तक उनकी आवाज़ पहुच जाती है.
इसे कहते हैं अनुशासन. युद्ध केवल वीरता से नहीं जीते जाते, वीरता के साथ अनुशासित रहना विजय का मुख्य कारण बनता है.
इस देश की सैकड़ों साल की गुलामी के पीछे कहीं न कहीं अनुशासनहीनता छुपी हुई है, ऐसा नहीं था कि हम किसी से कम वीर थे, ऐसा नहीं था कि हमारे पास तीर भाला नहीं था.
सब होते हुए भी हम हारे…. कारण हम अनुशासित नहीं थे. कमांडर कहता था, लेफ्ट जाओ तो हम राईट चले जाते थे. कमांडर कहता था यहाँ रुकना है, तो हम अति वीरता की नुमाइश करने आगे बढ़ जाते थे और परिणाम पराजय के रूप में मिलता था.
कई बार हमसे कमज़ोर दुश्मन अनुशासित होने के कारण हमें पराजित करके चला गया.
मैं ऐसे ही मोदी जी का मुरीद नहीं हूँ. बहुत कुछ सीखा जा सकता है उनसे, उनके अनुशासित जीवन से.
जिन भक्तों के पास इतना बलशाली, इतना अनुशासित कमांडर हो उसे कौन पराजित कर सकता है?
देखा जाए तो कोई नहीं…
पर मोदी की जीत में हमारा अनुशासन भी सम्मिलित होना चाहिए तभी मोदी अजेय रहेंगे. हमें अपने कमांडर का इशारा समझना होगा.
बात-बात पर व्याकुलता, बात-बात पर जोश, बात-बात पर हताशा, यह कमज़ोरी की निशानी है. हमें संयम से, हर परिस्थिति में अपने कमांडर के पीछे खड़े रहना है.
मेरी बात नोट कर लीजिए, जिस दिन हम अनुशासित हो गए उस दिन वामियों, कामियों की खड़े-खड़े मौत हो जायेगी. अब तक उनका जो भी उत्पात है, उसमें हमारी अनुशासनहीनता का बहुत बड़ा हाथ है.
वो अपने कमांडर का इशारा हमसे बेहतर समझते हैं. हमने किरण रिजिजू के बयान से क्या सबक लिया? अब क्या वो ये कहे कि देशद्रोहियों को पटक-पटक कर मारो?
संवैधानिक पदों की अपनी जिम्मेदारी होती है. वो आकर हमारा काम नहीं करेंगे. हमें अपना काम करते रहना है, लेकिन फिर वही लौट कर आता हूँ.
अनुशासन… हमें संगठित रहना है… हमें अनुशासित रहना है.
जय श्री राम