कृष्ण से अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है हमें

रणनीति एक उद्देश्य के लिये बनाई जाती है. उद्देश्य जब पवित्र हो तो उसे प्राप्त करने का रास्ता नैतिक-अनैतिक के पैमाने से परे होता है.

इस बात को समझने के लिये एक कड़वा उदाहरण बताता हूँ.

महाभारत में घटोत्कच नाम का एक पात्र है. जो भीम और एक राक्षसी हिडिम्बा का पुत्र होता है. लाक्षागृह से बच निकलने के बाद जब पांडव वन को चले जाते हैं उस दौरान वन में उनका सामना एक राक्षस हिडिम्ब और उसकी बहन हिडिम्बा से होता है. दोनों नरभक्षी होते हैं.

भीम मल्लयुद्ध में हिडिम्ब का वध कर देतें हैं. हिडिम्बा अब तक हिडिम्ब की गुलामी में रही होती है. भीम के शौर्य को देखकर उन पर रीझ जाती है और उनसे प्रणय निवेदन करती है.

काफी मान-मनौव्वल के बाद भीम राजी हो जाते है. फिर पांडव अपने रास्ते निकल लेते हैं और हिडिम्बा को बेटा पैदा होता है. हिडिम्बा उसका नाम घटोत्कच रखती है. उसी वन में उसका पालन पोषण होता है.

पांडवों की मुलाकात घटोत्कच से उस समय होती है जब अर्जुन इंद्र से देवास्त्रों और दिव्यास्त्रों की प्राप्ति कर लौट रहे होते हैं. तब तक घटोत्कच युवा हो चुका होता है.

महाभारत के युद्ध के दौरान घटोत्कच अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करता है. एक बार जब कर्ण युद्ध के दौरान अर्जुन को लक्ष्य करके अति प्रचण्ड हो उठता है तब श्रीकृष्ण अर्जुन को वहां से हटाकर, कर्ण की अर्जुन-वध के लिये बचाकर रखी गयी शक्ति घटोत्कच पर खर्चने के लिये उसे मोर्चे पर आगे कर देते हैं.

घटोत्कच मारा जाता है. ये देखकर अर्जुन विचलित हो उठते हैं. तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, पार्थ एक पापी राक्षस की मृत्यु पर दुःखी क्यों होते हो? इस नीच नराधम को उसके कर्मों के अनुसार मुक्ति बहुत श्रेष्ठ मिली है, ये तो प्रसन्नता का विषय है.

यहाँ बहुत समझने वाली बात है. घटोत्कच वैसे तो एक आज्ञाकारी पुत्र और पांडवों का बहुत ही प्रिय था लेकिन उसके व्यक्तिगत कर्म बहुत पतित थे.

लेकिन इस वजह से कृष्ण ने शरूआत में ही उसका तिरस्कार ना कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक उसका उतना इस्तेमाल किया जितना सम्भव था… फिर उसे गर्व की मृत्यु प्राप्त हो जाने दिया.

आप हिंदुत्व का समर्थन करते है… भाजपा और संघ का समर्थन करते हैं… लेकिन जब-तब इसके कुछ छुटभैय्ये, मुंहफट, बददिमाग नेता रह-रह कर ऐसी बयानबाजियां कर देते हैं कि खुद का मन घृणा से भर जाता है.

लेकिन इस घृणा को छुपाकर रखिये… लक्ष्य प्राप्त करने के लिये घृणा की नहीं, नीति की जरूरत है… ऐसे लोग बहुत जरूरी होते हैं…

एक हद तक ये बहुत काम आते हैं, फिर खुद ही अपनी राजनैतिक मौत मर जाते हैं. इनका विरोध करने के लिये विरोधी पहले ही बहुत हैं, आप जहमत ना उठायें. इससे आपका ही नुकसान होगा.

इसी तरह गुलमेहर कौर वाले मुद्दे पर कुछ लोग उसके साथ हुई गाली गलौज की वजह से उससे सहानुभूति दिखा रहे हैं.

आप गाली गलौज नहीं करते, लेकिन जो कर रहे हैं उन्हें टारगेट मत करिये, उसके लिये वामपंथी जरूरत से ज्यादा काफी हैं.

आप अपना काम कीजिये, अकाट्य तर्क दीजिये, गाली बकने वालों को अपना काम करने दीजिये बाकी वामपंथी अपने काम में ढीले नहीं पड़ते.

ये और बता दूं कि मैं वामपंथ के प्रति कभी सहिष्णु, निष्पक्ष, नैतिक कभी नहीं रह सकता. साम, दाम, दंड, भेद, सही, गलत, कैसे भी हो, इनका अंत जरूरी है.

कृष्ण से अभी हमें बहुत कुछ सीखना बाकी है.

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