हम होली क्यों मनाते हैं?
बच्चों के लिए इसका उत्तर है… किसी काल में कहीं एक हिरण्यकश्यपु राजा हुआ था जो अहंकारी और क्रूर और ईश्वर-द्रोही था… भगवान विष्णु ने उसका वध करने के लिए नरसिंह अवतार लिया था और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी…
अब यह सब किसी पुराण में लिखा है, जिसे पिछली कई पीढ़ी से किसी ने पढ़ा नहीं है… तो नयी पीढ़ी क्या जाने भगवान नरसिंह को, क्या समझे हिरण्यकश्यपु की प्रासंगिकता…
पर हम होली सचमुच में क्यों मनाते हैं?
सरल जवाब… आनंद आता है, इसलिए… हमारे बचपन और युवा जीवन की यादें जुड़ी हैं, इसलिए…
कैसे महीने भर से होली का इंतज़ार करते थे, लकड़ियाँ और झाड़ जमा करते थे होलिका दहन के लिए… रात भर रोमांच में सो नहीं पाते थे कि कल होली है…
सुबह-सुबह रंग और पिचकारी लेकर भाग जाते थे, इसके पहले कि माँ पकड़ कर दो पूए खिला दे… और शाम को जब होली ख़त्म हो जाती थी और घर वापस लौटने का समय होता था तो किसी पुलिया पर उदास होकर बैठ जाते थे कि होली एक साल तक नहीं आएगी…
त्योहारों से धीरे-धीरे रंग फीका पड़ रहा है… माँ बाप व्यस्त हो रहे हैं, बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों से मिस की सलाह लेकर घर लौट रहे हैं कि बिना रंगों की होली, बिना पटाखों की दीवाली मनाएं…
यहाँ लंदन में कुछ लोग पिछले 10-15 सालों से रह रहे हैं… आज तक होली नहीं मनायी…. ज़ाहिर है उनके बच्चों के पास अपने बचपन की होली की यादें नहीं होंगी.
वे क्रिसमस मनाते हैं… तो उनके पास क्रिसमस की ही यादें होंगी. तो उनकी अगली पीढ़ी तो होली को जानेगी भी नहीं. बिना कन्वर्ट हुए भी आपकी अगली पीढ़ी अपने हज़ारों साल के संस्कार से कट जायेगी…
आप कहेंगे, क्या फर्क पड़ जाएगा…
तो पहला प्रश्न है, हमारे हिन्दू होने से क्या फर्क पड़ गया? हिन्दू होकर हमें क्या मिल गया जो हम अपनी अगली पीढ़ी को नहीं दे रहे…
ब्रिटेन में जितने भी हिन्दू हैं, लगभग सभी सामान्यतः संपन्न हैं… पढ़े-लिखे हैं, अच्छी जॉब या बिज़नस में हैं. सभी के परिवार सही सलामत हैं… टूटे हुए परिवार हिंदुओं में शायद ही मिलें.
इतने सालों में मैंने हस्पताल की इमरजेंसी में किसी हिन्दू को शराब के नशे में या इसकी लत से जूझते शायद ही देखा हो… तो यह सब जो मिला है, यह क्या हर बन्दे का अपना बनाया हुआ है?
हम डॉक्टर, आईटी प्रोफेशनल, फार्मासिस्ट हो गए सिर्फ अपने ही दम पर?… नहीं… इसलिए कि हमारे पास माँ-पिता थे, जिन्होंने हमारी शिक्षा और संस्कारों में अपना समय, साधन, प्रयास इन्वेस्ट किया… जिसके संस्कार उन्हें अपने पूर्वजों से मिले थे…
गरीब से गरीब हिन्दू के पास और कुछ हो या ना हो, एक माँ और एक बाप जरूर होता है…
विदेश में बसे अपने भाइयों, मित्रों से पूछना चाहता हूँ… आपको होली-दीवाली मनाने में आलस्य लगता है… पर उन्हें फुटबॉल की कोचिंग या पियानो के लेसन में भेजने का समय निकल आता है…
आप क्या खो रहे हैं, उन्हें किस कल्चरल एडवांटेज से वंचित कर रहे हैं, यह सोचा है?
यह जो आपने पाया है, आपका अपना नहीं है. हज़ारों सालों की सभ्यता का संचित धन है… इसे यूँ ही मत खो जाने दीजिए… अपने बच्चों तक पहुंचाइये, उन्हें रास्ता खोने से बचाइए…