प्रिय गुरमेहर जी,
बहुत बुरा लगा ये देखकर कि आपको मीडिया ऐसे कवर कर रही है मानो आप कारगिल शहीद की पुत्री हैं तो आप जो भी कहेंगी वो सही हो जाएगा! इसलिए नहीं कि आप सिर्फ एक छात्रा हैं और आपकी अपनी पहचान है.
ये भी कमाल की बात है कि देश की रक्षा हेतु, जिसके कारण आपके पिता की शहादत हुई, आतंकियों का सफाया करना आपको ‘स्टेट स्पॉन्सर्ड टेररिज्म’ लगता है! लेकिन ये आपके विचार हैं जिनका मैं सम्मान करता हूँ.
मीडिया के हिसाब से आपकी पहचान अभी भी अपने पिता के कारण है, और मीडिया आपको भाव भी इसीलिए दे रहा है कि आप उनकी बेटी हैं. कम से कम हर चैनल और वेबसाइट पर चीखते हेडलाइन यही कह रहे हैं कि ‘कारगिल मार्ट्यर्स डॉटर्स फेसबुक पोस्ट कन्डेम्निंग एबीवीपी गोज़ वाइरल‘.
आपके इस पोस्ट को वाइरल करने का श्रेय भी उसी व्यक्ति को जाता है जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया. आप जो कह रही हैं वो आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन जिस तरह से मीडिया आपको इस्तेमाल कर रहा है, वो आपके पिता की शहादत को बेचने से ज्यादा कुछ भी नहीं है.
मैं ऐसे भी लोगों को जानता हूँ जिनके पिता, भाई, पति शहीद हुए हैं और उन्होंने भी स्टेटस लिखे हैं, पर वो वाइरल नहीं हुए. क्योंकि अभी मीडिया सिर्फ आपके पिता को बेचने में व्यस्त है. जिस दिन उन्हें लगेगा वो किसी और के पिता को बेचेंगे. यही हमारे धंधे का उसूल है जिसका मैं भी एक नुमाइंदा हूँ.
आप एक बेहतरीन कॉलेज की छात्रा हैं. आपसे ये उम्मीद थी कि आप अपनी अभिव्यक्ति जरूर रखें लेकिन एक पोस्ट इस पर भी लिखें कि आपने जो भी लिखा वो आपके, एक कॉलेज जाती छात्रा के, विचार हैं ना कि एक शहीद की बेटी के.
वस्तुतः, आप जिस कॉलेज से हैं वहाँ तो नारी स्वतंत्रता अपने चरम पर है. वहाँ तो उन्मुक्त लड़कियाँ पूरे देश को अपनी ‘इन्डिविडुएलिटी’ का परचम लहराते हुए लुभाती हैं. वहाँ तो आपके अपने विचारों की कद्र होती है.
फिर आप मीडिया की इस बेहूदी चतुराई को क्यों नहीं देख पा रहीं जो कि एक तरह से आपके वैयक्तिक विचारों का अपमान कर रही हैं और ऐसे दिखा रही हैं मानो आपके पिता के शहीद होने के कारण ही आपके विचारों का मान है.
मैं आपकी हर बात की कद्र करता हूँ. सम्मान करता हूँ कि आपने समय निकाल कर कुछ लिखा जो सही या गलत, दोनों ही, हो सकता है. मैं दाद देता हूँ कि आप आज के पितृसत्तात्मक दौर में अपनी आवाज़ मुखर करती नज़र आ रही हैं.
लेकिन मोहतरमा, मुझे इस बात का क्षोभ है कि आप को ऐसे दिखाया जा रहा है कि आप अपने स्वर्गीय पिता की अर्थी से बनी बैसाखियों पर चल रही हैं. आप इसे क्यों नहीं नकार रहीं?
ख़ैर, मैं ज्यादा लिखूँगा तो मुझे ‘शहीद की बेटी का अपमान करने वाला, ओछी सोच का मर्द’ बताकर मीडिया इस खबर को भी बेच लेगी. क्योंकि मीडिया का यही कर्म है.
सरबजीत सिंह-जसलीन कौर वाला काण्ड मुझे याद है. लेकिन आपके ही विश्वविद्यालय के बेहतरीन महाविद्यालयों में से एक, किरोड़ीमल, का छात्र होने के नाते मैं इतना लिखने से खुद को रोक नहीं पाया.
और हाँ, चूँकि मैंने आप पर, एक शहीद की बेटी पर, सवाल उठाए हैं तो सबसे कम समय में निकाला जाने वाला निष्कर्ष ये होगा कि मैं संघी हूँ. कुछ लोग मुझे एमसीपी बोलेंगे. कुछ कह देंगे ‘हाऊ डेयर यू इन्सल्ट अ मार्ट्यर्स डॉटर?’ कुछ लोग रेसिस्ट, मिसॉजनिस्ट, भक्त आदि भी कह देंगे. लेकिन मैं क्या हूँ, मैं ही जानता हूँ.
धन्यवाद सहित
भारत के एक गरीब किसान का बेटा
(हालाँकि ये कोई हृदयविदारक बात नहीं लगती, पर मुझे पता है कि मेरे पिता ने कितनी शहादतें दी हैं मुझे यहाँ तक पहुँचाने में.)