तुम्हारी यह मानसिकता क्या पैदा करती है, कॉमरेड? पता है न तुमको? यह एक दुर्निवार कीच और कालिख पैदा करती है, जो तुम्हारी ही एक साथी कॉमरेड पर अल-सुबह तुमको ब्रह्मपुत्र हॉस्टल में बलात्कार करवाती है.
वह साथी कॉमरेड कुछ दिनों (63 दिन, to be precise) तक सोशल मीडिया से दूर रहकर अपना ग़म ग़लत करती है, फिर वापसी करती है और लो… वह फिर से राष्ट्रवादियों को गरियाने और ‘फासीवाद से लड़ने’ के खिलाफ अपने मजबूत इरादों का मुजाहिरा करती है.
यह कीच है तुम्हारी घेट्टो मानसिकता की.
[‘घेट्टो’ मानसिकता से निकलेंगे, श्रीमन्- 2]
ऐ मोहम्मडन! तुम्हारी यही मानसिकता, पहले तो जर्मनी में तुमसे भीख मंगवाती है, फिर वहां कत्लोगारत करवाती है.
तुम्हारी यही मानसिकता पहले असम में बांगलादेशियों के रूप में तुमसे घुसपैठ करवाती है, फिर वही मानसिकता कांग्रेसियों से उसे एक उद्योग का दर्जा दिलवाती है.
[‘घेट्टो’ मानसिकता से निकलेंगे, श्रीमन्- 1]
और आखिर जब सरकार तुम जैसे ‘चोट्टों’ को निकालती है, तो तुम जज पर ही बम फेंक देते हो. यह है तु्म्हारी हिमाकत, यह है तुम्हारी सरकशी और यह है तुम्हारा दुस्साहस.
यही घेट्टो मानसिकता कश्मीर के पत्थरबाजों के पक्ष में तुमको खड़ा कर देती है, यही मानसिकता बर्मा/ म्यांमार में कुछ होने पर तुमको मुंबई के आज़ाद मैदान में जमा होकर हुड़दंग करने पर मजबूर करती है.
यही मानसिकता तुमको ‘शार्ली एब्दो’ में मुहम्मद का कार्टून छपने पर तुमको महाराष्ट्र में हंगामा बरपाने का हौसला देती है.
‘हमारा गुंडा’ गुंडा नहीं, हातिमताई वाली मानसिकता ही लतीफ को ‘रईस’ बनवाती है, दाउद जैसे छिछोरे को भाई बनाती है, उसकी बहन पर फिल्में बनवाती हैं और सलमान जैसे दारूबाज अभियुक्त को सल्लू भाई बना देती हैं.
यही घेट्टो मानसिकता कौमी-वामी हुड़दंगियों को केरल से कश्मीर तक अलगाववादियों के पक्ष में खड़ा करती है, जेएनयू में एक हरामखोर नौजवान- जो लड़की छेड़ने का आरोपित है- को हीरो बनाती है.
एक नकली ‘दलित’ की आत्महत्या को राष्ट्रीय मुद्दा बनाती है और यही मानसिकता तुम्हें डॉक्टर नारंग की हत्या करने का हौसला भी देती है.
यही मानसिकता तुमको आज तक भेड़ और बकरियों से आगे बढ़कर ‘इंसान’ बनने का हौसला नहीं देती है.
यही मानसिकता तुमको किसी भी चुनाव में एकतरफा वोटिंग करने को मजबूर करती है…..
और, यही मानसिकता… अफसोस है कि तुमको मोहम्मडन या वामी तो बनने देती है, इंसान नहीं रहने देती……
अफसोस…केवल अफसोस!