पिछले लेख में बताया कि किस तरह ईसाई मिशनरियों ने हिन्दू भगवानों और हिन्दू ग्रंथो को बाइबिल के अनुसार अनुवादित किया, जिसके लिए उन्होंने कई संस्थाएं खोली जो हिन्दुओं के ग्रंथों को अपने मनवांछित तरीके से अनुवादित करती थी. इन संस्थाओं में प्रमुख थीं –
1784 में एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता : जिसका प्रतिनिधित्व विलियम जोन्स करते थे. इनकी प्रमुख उपलब्धियों में से एक अशोक के ब्राह्मी शिलालेखों को सफलतापूर्वक पढ़ लेना था. इस सोसाइटी ने भारत में हिन्दू धर्म को तोड़ने के लिए सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था.
चूँकि अशोक भारत का बहुत ही प्रतापी शासक रहा है इसलिए उसे हिन्दू से निकाल कर बौद्ध में परिवर्तित करा देने से हिन्दू और बौद्धों में आपसी तकरार होगी जिसका परिणाम हिन्दू और बौद्धों को आसानी से ईसाइयत में लाया जा सकता है और इस तरह यह संस्था अपने उद्देश्य में पूर्ण भी हुई.
1800 में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता : ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने और भारतियों पर राज करने के गुण सिखाना.
1814 में फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज कॉलेज मद्रास : इसकी स्थापना उपनिवेशवादी प्रशासक फ्रांसिस वाइट एलिस द्वारा की गई थी. जिसका उद्देश्य तमिल और तेलगु को भारत की संस्कृति के विरुद्ध खड़ा करना था. यह कॉलेज तमिल और तेलगु पाण्डुलिपियों को एकत्रित कर उनका मनवांछित अनुवाद करता था.
1818 में सेरमपोर सेमिनरी कलकत्ता : यह मात्र भारतीयों को ईसाई मत के लिए प्रशिक्षित करने के लिए मिशनरियों द्वारा खोला गया था तथा इसका एक उद्देश्य भारतीय मिशनरी तैयार करना भी था.
1823 में रॉयल एशियाटिक सोसाईटी लंदन की शाखाएँ बम्बई और मद्रास : यह विलियन जोन्स की संस्था का प्रतिरूप मात्र था जिसका उद्देश्य भारतीय सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के विरुद्ध इस संस्कृति को ईसाइयत के अनुरूप बदलना था.
1827 में बोडेन चेयर, ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लैंड : यह संस्था कर्नल जोसेफ़ बोडेन से संबंधित थी. जोसेफ़ बोडेन ने अपनी वसीयत (15 अगस्त 1811) में बिलकुल साफ़-साफ़ लिखा था, भारत के संस्कृत के धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद का प्रोत्साहन भारतीयों को ईसाइयत में परिवर्तित करने की दिशा में मुख्य कारक होगा.
उनकी इस संस्था का मुख्य कार्य भारतीयों पर राज करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को भारतीय भाषाओं और संस्कृत में प्रशिक्षित करना था और भारतीय संस्कृत के ग्रंथों को मनवांछित तरीके से प्रस्तुत करना था.
1888 में इंडियन इंस्टिट्यूट, ऑक्सफ़ोर्ड : इसके संस्थापक मोनियर विलियम थे जिसका उद्देश्य भारत की सभी संस्थाओं को ईसाइयत में कन्वर्ट करना था जिसके लिए इन्होंने कई छोटी संस्थाएं बनाई.
मोनियर विलियम्स ने कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ भी लिखीं ‘जब ब्राह्मणवाद के सशक्त किले की दीवारों को घेर लिया जायेगा, तथा उसे तोड़कर दुर्बल कर दिया जायेगा तब सलीब के सिपाहियों द्वारा पूरी ताकत से धावा बोल दिया जायेगा. तब ईसाइयत की विजय पताका अवश्य ही लहरायेगी और हमारा अभियान पूरा होगा तथा भारत पूर्णतः ईसाई देश बनेगा.’
भारत की संस्कृति और ज्ञान को तोड़-मरोड़ के प्रस्तुत करने में इन संस्थाओं की भूमिका अहम रही है. इसके बाद और भी कई संस्थान खोले गए.
क्रमशः 3