एक कहानी से बात शुरू करना चाहूंगी.. एक धोबी था और था उसका गधा.. अब कहानी में गधा आ गया तो कहानी में आज की राजनीति का परिदृश्य होगा ये तो आप समझ ही गए होंगे..
तो एक दिन धोबी का गधा और धोबी शाम को घर लौट रहे थे… अचानक किसी शिकारी के बनाए हुए गड्ढे में गधा गिर जाता है. धोबी के बहुत कोशिश करने पर भी जब गधा बाहर नहीं निकल पाता तो धोबी इसे उसकी किस्मत समझकर मरने के लिए छोड़ देता है…
लेकिन धोबी था तो बड़ा दयालु उसे लगा यहाँ गड्ढे में भूख प्यास से तड़प कर मरे इससे बेहतर यही है कि मैं उस पर मिट्टी डालकर उसे दफना दूं..
धोबी गधे पर आस पास की मिट्टी डालना शुरू करता है.. जब काफी सारी मिट्टी गड्ढे में भर जाती है तो गधा अपने पैरों से उस मिट्टी को गड्ढे में एक तरफ इकठ्ठा करना शुरू कर देता है और फिर उस मिट्टी के ढेर पर चढ़कर गड्ढे से निकलने की कोशिश करने लगता है…
जब धोबी यह सब देखता है तो वो भी गधे की इस तरकीब को समझ जाता है और फिर मिट्टी गधे पर डालने के बजाय मिट्टी के उस ढेर पर डालकर उसे और बड़ा करने लगता है…
अंतत: मिट्टी का ढेर इतना ऊंचा हो जाता है कि गधा उस पर चढ़कर बाहर निकल आता है… धोबी जो निराश हो चुका था और ये सोच रहा था कि उसने गधे को खो दिया वो उसे भरे ह्रदय और प्रेम से गले से लगा लेता है…
तो ये छोटी सी कहानी सिर्फ इसलिए सुनाई दोस्तों ताकि देश की जनता को ये सन्देश दे सकूं कि हम राष्ट्रवादी वो धोबी ही हैं जो मोदीजी के स्वच्छता अभियान रूपी गंगा के पवित्र पानी से भारत माँ के शुभ्र वस्त्रों पर लगे दाग़ धोने का प्रयास कर रहे हैं…
ये स्वच्छता अभियान केवल हाथ में झूठमूठ में झाडू लेकर फोटो खिंचवाने के लिए नहीं है. चाहे रोड की सफाई हो, काले धन की सफाई हो, cyber स्वच्छता अभियान हो, हमारे सनातनी परम्पराओं पर लगे दाग हो… हम सब मिलकर सच में इस अभियान को सफल बनाने में जी जान से मोदीजी के साथ लगे हैं…
ऐसे में यदि किसी गड्ढे में हमारा मेहनती गर्दभ दुर्घटनावश गिर भी जाए… मुस्लिम महिलाओं के वोट, तुष्टिकरण के उपाय के बाद भी यदि वो उस गड्ढे से बाहर न आ पाए तो हमें यह याद रखना चाहिए कि हम बचे हुए लोगों के समर्थन की मिट्टी के सहारे ही हमारा मेहनती गर्दभ उस गड्ढे से बाहर आकर फिर से अपनी जीत का झंडा लहरा सकता है…
धोबी फिर भी निराश हो जाता है, लेकिन वो गर्दभ अभी निराश नहीं हुआ, उसकी जिजीविषा को सलाम है, उसकी मेहनत को सलाम है… सलाम है उसकी भक्ति को, उसकी लगन को…
मुझे याद है बहराइच में मोदी जी ने कहा था कि गधे चूने और चीनी में फर्क नहीं करते, वो इसलिए तेज़ नहीं चलते क्योंकि उनकी पीठ पर चीनी है, और इसलिए काम करने से इनकार नहीं करते क्योंकि उनकी पीठ पर चूना है, क्योंकि काम करने में गधे भेदभाव नहीं करते.
वो लोग कोई और होंगे जो टेबल पर रखे नोट के रंग को देखकर काम करते हैं.
तो अब भी समय है उस गर्दभ की तरकीब को पहचानिए, उस दयालु धोबी की तरह बनिए, भारत माँ की मिट्टी को इस संकल्प से हाथ में लेकर उस गड्ढे में डालिए… कि हम इस स्वच्छता अभियान को सफल बनाने वाले धोबी बनेंगे… राम और सीता के बीच अलगाव पैदा करनेवाला कुंठित धोबी नहीं.