प्रश्न – पिछले दिनों दिल्ली के रामजस कॉलेज में क्या हुआ? सरल और सक्षिप्त में व्याख्या करो.
उत्तर – जेएनयू में एक कुख्यात गिरोह है. वही जो अपनी माता से, जो उसे पालपोस कर आजतक खिला पिला रही है, आजादी माँगता रहता है.
जबकि निट्ठल्ला है और तीस-तीस साल का हो गया मगर बैठ के खाता भी है पीता भी है और धुआं भी उड़ाता है और फिर भी डकार लिए बिना भारत माँ के टुकड़े टुकड़े करने का नारा लगाते रहता है, अपशब्द भी कहता है, नंगी तस्वीरें बनाता है.
अब वो चाहता है कि वो यही काम दूसरे कॉलेजों में भी करे. कुछ नालायक तो हर जगह होते हैं. तो पिछले दिनों रामजस के दो-चार कपूतों ने इस गिरोह के सरगना को अपने कॉलेज में बुलाया.
ये बात उस कॉलेज के सपूतो को अच्छी नहीं लगी. किसी भी सामान्य इंसान को नहीं लगेगी. तो इन माँ के सपूतों ने उन कपूतों का विरोध किया. वैसे भी कोई भी अपने घर-मोहल्ले में किसी अपराधी और अराजक को आने ना देने की हर संभव कोशिश तो करेगा ही.
ऐसे में कुख्यात गिरोह ने वही अपना पुराना, ‘बोलने की स्वतन्त्रता’ और ‘विरोध के अधिकार’ का राग अलापा. अब सपूत कहते हैं कि हमें अपनी माँ का अपमान बर्दाश्त नही. और कपूत कहते हैं कि हम तो खुले में करेंगे, और ऐसा करना उनका जन्म सिध्द अधिकार है.
सपूत ने बहुत रोका, मगर फिर भी कपूत नहीं माना… उलटे उकसाने लगा. बस इस चक्कर में हाथापाई हो गई. अब कपूत अपने उसी नौटंकी अंदाज में आ गया, फटे हुए कपड़े और खरोंच दिखा रहा है, मीडिया में विक्टिम-विक्टिम खेल रहा है.
इन कपूतों के बड़े भाई, अवार्ड वापसी गिरोह, मीडिया में बैठे हैं, वो इनकी बातें ऐसे दिखा रहे हैं मानो इन पर एकतरफा भयंकर अत्याचार हुआ है.
ये वही लोग हैं जो कैमरे से परे होते ही खलनायक बन कर असमाजिक काम करने लगते हैं और कैमरे के सामने भोले बन जाते हैं. और अगर कभी इनके कुकर्म गलती से रिकार्ड हो जाएँ तो टेप को ही झूठा कह कर निकल लेते हैं. जैसा ये अपने जेएनयू में अब तक करते आये हैं.
प्रश्न – मगर ये गिरोह तो खुद किसी और को जेएनयू में घुसने भी नहीं देता, बोलने की आजादी तो दूर की बात है.
उत्तर – ये तो पक्के वाले दोगले हैं. इनके अधिकार सिर्फ इनके लिए हैं, किसी और के अधिकार ये छीन लेते हैं. इस दोगलेपन की इनकी लिस्ट बहुत लंबी है. जैसे कि ये कश्मीर की पत्थरबाजी का समर्थन करेंगे मगर पैलेट गन का विरोध. ये आतंकी के साथ हैं मगर सेना के विरोधी.
ये सिर्फ 2002 को दंगा मानते हैं और गोधरा का तो नाम भी नहीं लेते. ये जब पीटते हैं तो पुलिस को अपने कॉलेज में आने नहीं देना चाहते, लेकिन जब ये पिटते हैं तो पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद करते हैं. आदि आदि.
प्रश्न – वो सब तो ठीक है मगर ये कैसी और कितनी आजादी चाहते हैं?
उत्तर – ये तो इनको भी ठीक-ठीक नहीं पता. हाँ एक बार चौराहे पर चुंबन करने की आजादी की मांग देखी थी. शायद कुछ और भी सोच रखा हो, जैसे घर के शौचालय से लेकर शयन कक्ष में किये जाने वाले हर काम को खुले में करने की आजादी. और अगर कोई इस ऊलजलूल मांगों पर आपत्ति जाहिर करे तो उसे गाली देने धमकाने और यहां तक की आंदोलन करने की आजादी चाहते हैं.
ये कश्मीर में पत्थर मारने की और बस्तर में सुरंग-बारूद लगाने की आजादी चाहते हैं. कॉलेज में दो साल का कोर्स दस-बीस साल तक करने की आजादी चाहते हैं. अपने प्रोफ़ेसर और वी सी को घेर कर रात भर तंग करने की आजादी. संक्षिप्त में कहें तो अराजकता फ़ैलाने की आजादी. और ये सब सिर्फ इनको मिलनी चाहिए.
प्रश्न – मगर कल से इनके दुखों को देख कर कई लोग सोशल मीडिया में आँसू बहा रहे हैं.
उत्तर – जिनको इनसे सहानुभूति है वो इन कपूतों को गोद लेकर अपने घर में पनाह दे सकते हैं.