डिंपल जी,
मैं आप को भाभी नहीं कह सकती, क्योंकि अखिलेश जैसा मेरा भाई नहीं हो सकता.
मैं आप को बहन भी नहीं कहना चाहती, क्योंकि अगर आप होतीं तो हम बहनों का दर्द समझतीं.
आप महिला हैं, इसलिए भी नहीं लिख रही हूँ बल्कि आज इसलिए लिख रही हूँ कि आप के साथ इलाहाबाद में जो कुछ हुआ वो देखा और सुना.
आप को चिल्लाते-डांटते और फिर परेशान हो कर भीड़ से निकलते भी देखा, तो सोचा अब आप को लिखा जा सकता है. शायद अब आप हम लोगों का दर्द कुछ-कुछ समझ सकें.
आप के साथ सैकड़ों पुलिस वाले हमेशा साये की तरह रहते हैं, कल भी आपके साथ थे और वहाँ तो आप अपने ही समर्थकों के बीच थीं, तब भी आप इन हुड़दंगियों को नहीं झेल पायीं. इनकी नजर और बातें, जो आप से दसियों फीट दूर से निकल रही थीं उसको भी आप बर्दाश्त नहीं कर पायीं.
तो सोचिये जब कुछ जाने-अनजाने भेड़िये, अचानक आ कर मेरे शरीर को बिना मेरी मर्जी के नोच रहे थे और मेरे खून को चूस रहे थे, तब मुझ पर क्या बीती होगी?
मैंने कैसे उस पल को सहा होगा, सोच कर आज भी डर जाती हूँ, सहम जाती हूँ. मेरी चीख पर जब ये हैवान मजे ले रहे होंगे मैंने कैसे उन निगाहों को झेला होगा? बाद में भी मैं कैसे उस टीस को भोगती होंगी?
यूं तो मैं दुनिया के लिए उसी पल मर चुकी थी मगर मेरी आत्मा को ठेस तब लगी जब आप के ससुर ने ये कहा था कि बच्चों से गलती हो जाती है.
आप सोच रही होंगी कि अब मैं आप को क्यों लिख रही हूँ. ये मत सोचियेगा कि आप के साथ जो हुआ उसका मैं मजा लेकर बदला लेना चाहती हूँ, ना ही मुझे आप को यह अहसास दिलाना है कि आप के घर में जो बोया गया है उसे आप काट रही हैं.
नहीं, बिल्कुल नही. मैं तो एक गरीब और असहाय लड़की थी, जिसको अपनी बात कहने और लिखने का भी कभी कोई हक़ नहीं रहा. क्योंकि पुलिस स्टेशन से लेकर कोर्ट के रूम तक में मेरा कई तरह से, कई-कई बार बलात्कार हुआ.
मेरे माता पिता, भाई-बहन जीते जी मर गए. ये सब मुझसे सहा नहीं गया. इसलिए मैं तो आप का राज्य ही नहीं ये दुनिया ही बहुत पहले छोड़ चुकी हूँ. अब तो मेरी आत्मा भटक रही है न्याय के लिए. और वो मैं ले कर रहूंगी.
मैं तो आज सिर्फ इसलिए लिख रही हूँ कि क्योंकि मुझे लगा कि एक औरत का दर्द आप को छू कर निकला है तो शायद आपकी आत्मा जाग गयी होगी.
और अगर वो वास्तव में जाग गई है तो आप सिर्फ इतना करना कि रात के अँधेरे में जब आपके पति आपके नजदीक आयें तो एक बार पूछना जरूर कि आपका शरीर उनके प्रेम के लिए है या उपभोग के लिए?
वो तो प्रेम ही कहेंगे, तो मेरी तरफ से सिर्फ इतना भर कहना कि दुनिया की बाकी औरतों का शरीर भी प्रेम के लिए ही है, जिसे सुरक्षा देने में वो नाकाम रहे हैं.
और हाँ यह भी कहना कि उनका काम नहीं बोल रहा बल्कि कारनामे गली-गली में बोल रहे हैं. और अंत में कहना कि उनके विकास का मॉडल पांच साल में तेजी से बड़ा होकर समाजवाद से असमाजवाद बन कर अब तो भस्मासुर बन चुका है.
जैसे ही आप ये सब कहेंगी, मेरी भटकती हुई आत्मा को थोड़ी शांति मिल जाएगी. बाकी फिर वो आप की बात मानें या ना मानें, कोई प्रतिक्रिया दें या ना दें, उसके लिए आप परेशान मत होना, हम भूत लोगों का अपना तरीका है मनवाने का.
चुनाव के समय आपका कीमती वक्त लिया क्षमा चाहती हूँ, मगर अपना ध्यान रखा करें, क्योंकि आप के ससुर के छोटे-छोटे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं और खुले में बड़ी-बड़ी बदमाशी करने लगे हैं.
सादर,
आप की रियासत की एक पीड़ित भटकती ‘महिला’ आत्मा