रंजीत भाई मुझे लिफ्ट से चौथे माले पर ले गए, घर में उनकी पत्नी से मिलवाया, कुछ औपचारिक बातों के बाद उन्होंने मुझसे कहा शैफाली हाथ धो लो.
मुझे समझ नहीं आया वो मुझे हाथ धोने को क्यों कह रहे हैं, फिर भी मैंने हाथ धोये. तब उन्होंने इशारे से एक ऊंची जगह पर एक बक्सा रखा दिखाया, जिस पर बब्बा (ओशो) की तस्वीर थी. उन्होंने तस्वीर हटाई और मुझे कहा बक्सा खोलो.
मैंने बक्सा खोला तो उसमें चरण पादुकाएं और ओशो की दो मालाएं रखी थीं. उन्होंने कहा ये ओशो की चरण पादुकाएं हैं, इन्हें छूकर आशीर्वाद लो.
मैं अचंभित सी उनके आदेशों का पालन करती जा रही थी. मैंने उन चरण पादुकाओं को ऐसे स्पर्श किया जैसे बब्बा के चरण हो. उन्होंने दोनों मालाएं उठा ली और दोनों पति पत्नी ने अपने गले में डाल ली.
फिर वो दोनों मुझे अन्दर अपने कमरे में ले गए… लोहे की अलमारी के सबसे आख़िरी हिस्से का ताला बड़ी मशक्कत के बाद खोला, शायद बहुत बरसों से खोला नहीं गया था… मैं ऐसे देख रही थी जैसे अलमारी का वो हिस्सा खुलते ही किसी खजाने के दर्शन होने वाले हैं.. और मेरी आँखें उसकी चमक से चौंधिया जाएँगी…
मेरा अंदाजा गलत नहीं था, उन्होंने अलमारी खोली और एक एक करके मेरे सामने खज़ाना बिखेर कर रख दिया… अपने संन्यास का सर्टिफिकेट जिस पर बब्बा की फोटो और उनके हस्ताक्षर थे, और रंजीत भाई का संन्यास नाम स्वामी देवानंद भारती लिखा था, कुछ नोट और कुछ लकड़ी की पट्टियां जिन पर ओशो ने हस्ताक्षर किये हुए थे. उनके हाथ के लिखे कुछ पत्र भी…
एक एक करके उन्होंने मुझे उससे जुड़े सारे किस्से सुनाएं… कुछ किस्से मैंने उनसे ऑडियो से बाद में मंगवाए, जिनमें चरण पादुका और उस अलमारी का ज़िक्र था जिनमें वो पत्र रखे थे… इन ऑडियो को सुनने से पहले ही मैं इनसे जुड़े किस्से लिख चुकी थी… लगा जैसा मैंने उस अलमारी को खुलते समय जो अनुभव किया था, वैसा ही वो भी अनुभव कर रहे थे…
ऑडियो में उन्होंने ने बताया कि वो कैसे ओशो की इन सामग्री को अलमारी के छुपे हुए हिस्से में ताला लगाकर रखते हैं… उन्होंने बताया वो पत्र उन्हें खुद संकेत देते हैं कि किसे इन्हें छूने दिया जाए… उन्हें याद नहीं आख़िरी बार उन्होंने वो अलमारी कब खोली लेकिन मेरे आने पर उन्होंने एक एक चीज़ मेरे हाथ में रख दी…
चरण पादुका का किस्सा सुनाते हुए वो बताते हैं अपने विवाह से पहले कैसे वो चरण पादुका लाल कपड़े में लपेटकर पूना में बब्बा के सामने बैठे थे… और आँखों से अश्रुधारा बह रही थी…
बब्बा ने उनको पास बुलाया और पूछा क्या है हाथ में… रंजीत भाई ने चरण पादुकाएं दिखाई… पादुकाएं रंजीत भाई के हाथ में ही थी और बब्बा ने अपने पाँव चरण पादुका में डाल वापस निकाले और उनसे कहा इन्हें संभालकर रखना….
और किस्सा सुनते हुए मुझे लगा… जैसे बब्बा कह रहे हो इसे संभालकर रखना शैफाली आएगी उसे स्पर्श करवाना….
वलसाड यात्रा के दूसरे दिन मिलने वाले सरप्राइज की प्रतीक्षा में आधा घंटा रंजीत भाई के घर बिताकर समय व्यतीत करने की मेरी योजना में मैं कहाँ हूँ… कहीं नहीं.. मेरी अपनी योजना में ही मैं कहीं नहीं थी…. ये सारी योजना मेरे लिए ही बन रही थी.. मेरे लिए सरप्राइज तैयार हो रहा था. आधे घंटे का सोचा था कब दो घंटे निकल गए पता ही नहीं चला… हम तीनों अनुभव कर रहे थे कि एक विशेष ऊर्जा हम तीनों के बीच प्रवाहित हो रही है..
लोग अक्सर हँसते हैं जब मैं कहती हूँ मेरी यात्राएं और मुलाकातें ऊपरवाला तय करता है… लोग कहते हैं, यात्रा पर आपको निकलना है, टिकट आप कटवा रहे हो, ट्रेन में सफ़र आप कर रहे हो, सफ़र में लोगों से मुलाकातें आप कर रहे हो… फिर ये ऊपरवाला कैसे आ गया बीच में…
इस यात्रा के दौरान मिले लोगों से मुलाकातों के बाद तो मेरा ये विश्वास और पुख्ता हो गया कि मेरी मुलाकातें मैं तय नहीं करती… क्योंकि मिलने तो मैं अपनी माँ से निकली थी लेकिन माँ के गाँव में पिता स्वरूप रंजीत भाई से मुलाक़ात हो गयी…
मिलने तो मैं और भी कई लोगों से निकली थीं… लेकिन न जाने क्यों उनसे मिलना टलता रहा और मैं पहुँच गयी सीधे रंजीत भाई के घर. गुजरात में और भी कई करीबी मित्र रहते हैं, उनका किसी का नंबर न लेकर मैंने रंजीत भाई का फोन नंबर ही लिया जिनसे कोई ख़ास संवाद भी नहीं हुआ था… ऐसा कोई दिल से तार भी नहीं जुड़ा था… लेकिन जो तार वो ऊपर बैठा जोड़ रहा था… उसे तो सिर्फ साक्षी भाव के साथ ही देखा जा सकता है… एक एक घटना ऐसे दिखाई दे रही थी जैसे सिनेमा के परदे पर एक के बाद एक सीन…
मैंने सोचा भी नहीं था मेरी इस बार की यात्रा में इस दढ़ियल बब्बा का हाथ है… स्वामी ध्यान विनय कहते हैं…
ऐसा कहकर आप ब्रह्माण्ड की योजना को ओशो की खूंटी पर टांग देती हैं… ना तो वो अब इस देह में उपस्थित हैं, ना ही उनकी आत्मा कहीं भटक रही होगी… वो तो ब्रह्माण्ड की ऊर्जा में विलीन हो गए हैं.. तो जो शक्ति आपको काम करते हुए दिखाई दे रही है वो आपके सामने उस रूप में प्रकट होती है जिस रूप में आप देखना चाहते हैं….
आप ओशो के रूप में उस ऊर्जा के दर्शन कर रही थीं तो ओशो से सम्बंधित घटनाओं के रूप में आप पर आशीर्वाद बरस रहा था… इसलिए कहता हूँ जादू कहीं नहीं हैं, जादू आप स्वयं हैं… आप जादू चाहती हैं तो जादू आपके सामने प्रकट होता है… यूं तो हर व्यक्ति ब्रह्माण्ड के इस कल्पवृक्ष के नीचे ही खड़ा है. जो भी सरल, निर्मल, निश्छल भाव से प्रार्थना करेगा उसकी प्रार्थना अवश्य पूरी होगी.
इस बीच रंजीत भाई का सन्देश आया… शैफाली तुम मेरा नाम गलत लिखती हो, रंजित का अर्थ होता है जो रंज में हों, दुखी हो, क्या मैं तुम्हें दुखी दिखाई देता हूँ? मेरा नाम रणजीत है, रण को जीतकर आने वाला…
हाँ रणजीत भाई, आप सच में जीवन रूपी रण के विजेता है… तभी तो आप जैसे ओशो संन्यासी को संन्यास से दूर करने के लिए आपके विवाह का षडयंत्र हुआ तो आपकी पत्नी आपका संन्यास तो नहीं छीन सकी लेकिन खुद ही ओशो से दीक्षा लेकर संन्यासीनी हो गयी…
आपका मेरा जीवन उदाहरण है, हमारे सनातनी संन्यास की परिभाषा का कि संन्यास जंगल या पहाड़ों पर नहीं मिलता, आप जहां हो, जैसे हो वहां पूरे पूरे हो जाओ तो संन्यास आप पर अवतरित होता है… आप तो बस साक्षी होते हैं अपने होने के…
ओशो की चरण पादुकाओं को एक बार फिर माथे लगाया, उनके हाथ का लिखा पत्र एक बार फिर पढ़ा… मुझसे कह रहे थे-
प्रेम/साधना- संयोग बड़ी दुर्लभ घटना है.
कभी यात्री होता है तो नाव नहीं होती.
कभी नाव और यात्री भी होता है तो नदी नहीं होती.
कभी यात्रा, नाव, नदी सभी होते हैं, पर माझी नहीं होता.
और कभी यात्री, नाव, नदी और माझी भी होता है और फिर भी यात्रा नहीं होती.
तू आख़िरी स्थिति में ही है.
और देर न कर, क्योंकि संयोग के बिखर जाने में देर नहीं लगती.
मैंने अपनी वलसाड यात्रा सहित जितनी भी यात्राएं की है, उनके अलावा अपनी जीवन यात्रा और आध्यात्मिक यात्रा के लिए बब्बा और अस्तित्व को प्रणाम किया. फिर कृतज्ञता के भाव के साथ रणजीत भाई से विदा ली… दिन के अगले सरप्राइज के लिए…

(यात्रा जारी है)
पहले भाग यहाँ पढ़ें –
यात्रा आनंद मठ की – 1 : पांच का सिक्का और आधा दीनार
यात्रा आनंद मठ की – 2 : जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
यात्रा आनंद मठ की – 3 : यात्रा जारी है
यात्रा आनंद मठ की – 4 : Special Keywords To Optimize Your Search