‘नीच‘ – 2014, रायबरेली- प्रियंका ‘गांधी’ उवाच…
‘गधा‘ – 2017, रायबरेली- अखिलेश ‘यादव’ उवाच…
सामंती सोच सिर्फ विक्षिप्तता उवाच सकती है…
“अमिताभ बच्चन को गुजरात के ‘गधों’ का प्रचार बन्द कर देना चाहिए” – इससे बेहतर की उम्मीद किसी सेकुलर प्रजाति के सामन्तशाही चिराग से उम्मीद नहीं की जा सकती है.
यह ‘गधा’, जिसे तुम हिकारत से देखते और गाली से नवाज़ रहे हो, अब वही ‘गधा’, गरीब, दबे और कुचले वर्ग का प्रतीक बन कर उभरेगा और वह आगे के समय में ‘राष्ट्रीय धरोहर’ के रूप में सहेजा जायेगा.
अखिलेश यादव गधे की दुलत्ती का इंतज़ार करो.
गश खा गई सेक्युलर प्रजाति व उसकी पोषित मीडिया
कल फतेहपुर में हुयी जनसभा में मोदी जी ने एक ही सांस में कब्रिस्तान/ श्मशान, होली/ रमजान, दीवाली/ ईद का नाम क्या लिया… पूरे भारत के विकास की चूलें हिल गईं और सेक्युलर प्रजाति व उसकी पोषित मीडिया को गश आ गया.
जब थोड़े सन्नाटे के बाद उन्हें होश आया तो मुँह से झाग फेंकते हुए यही नारा उनकी जबान पर था, जिसे अब तक रीप्ले कर रहे है.
मोदी सांप्रदायिक है! मोदी हिन्दू आतंकवादी है!
बिना भेदभाव के शासन चलाना ‘सांप्रदायिकता’ है? बिना भेदभाव के विकास करना ‘हिन्दू आतंकवाद’ है?
मोदी जी यह यूपी है! यहां के लोगो में सेक्युलरई खून में घुसी हुयी है.
यहां सभी समाजी, नमाजी, बाबाजी, जाटजी और पप्पूजी सेक्युलर बुद्धिजीवी हैं.
आप इन लोगो को जो सेक्युलरिता का पाठ पढाने की कोशिश कर रहे हैं, वह कठिन होने के कारण, इन बुद्धिजीवियों ने पहले से ही आउट ऑफ़ कोर्स किया हुआ है.
मोदी जी, यह तो बेचारे जातिगत तन्द्रा में अंगड़ाई लेने वाले नए महाराज और महारानी है, जिनके पास गुलामियत का लुत्फ़ उठाने वाले रट्टू तोतों की फ़ौज है, जो दशकों से पुरानी परिभाषा को रट-रट के उन्हें वोट देते आ रहे हैं.
आपकी सीधी बात, इन टेढ़े तेवर और टेढ़ी नाक वालों को तो समझ में नहीं आएगी लेकिन हाँ, जनता बहुत खूब समझ रही है.
हम लोगों को उम्मीद है कि 11 मार्च 2017 के बाद हम यूपी वालों को यह बिना भेदवाद की ‘साम्प्रदायिकता’ और ‘हिन्दू आतंकवाद’, उत्तरप्रदेश के शासन और विकास में देखने को मिलेगा.