पाठक साहब हमारे लिए महज एक लेखक ही नहीं सबसे बड़े गुरु भी हैं. आज मैं जो कुछ भी हूँ, मेरे व्यक्तित्व को बनाने में उनका एक बड़ा योगदान है. मेरे किसी भी शिक्षक से ज्यादा.
ये सच है कि सुरेंद्र मोहन पाठक लुगदी साहित्य लिखते हैं, या यूँ कहूँ कि उनका लिखा लुगदी कहलाता है. लेकिन उनका पाठक वर्ग सिर्फ लुगदी साहित्य पढ़ने वालों तक सीमित नहीं है. उन्हें पढ़ने वालों में संघी, कम्युनिस्ट, आपिये, कांग्रेसी भी हैं तो आम जनता, छोटे बड़े पत्रकार, बड़े सरकारी अधिकारी, प्रोफ़ेसर, इंजीनियर, डॉक्टर लगभग जनता का हर वर्ग शामिल है.
इनके अलावा वो लोग भी हैं जो तथाकथित हिंदी साहित्य के महंत हैं, पिलर हैं लेकिन चोरी छुपे पाठक साहब को पढ़ते हैं. कहते हैं कि एक बड़े लेखक और प्रोफेसर ने अपनी एक अलमारी में पाठक साहब के सारे उपन्यास छुपा रखे हैं लेकिन सार्वजानिक तौर पर कभी कबूल नहीं करते. बड़े सम्पादक पाठक साहब को पढ़ने वालों में शामिल रहे हैं.
और ये इतना बड़ा विस्तृत पाठक वर्ग इसलिए अर्जित नहीं हुआ है कि पाठक साहब लुगदी साहित्य लिखते हैं. या उनके उपन्यास मात्र मनोरंजन उपलब्ध कराते हैं, या उनके उपन्यास का रोमांच दिमाग के तारों को झनझना देता है.
नहीं पाठक साहब के उपन्यासों की समालोचना इन आधार पर नहीं होती.
तथाकथित हिंदी साहित्य जनसरोकार से परिभाषित होता है, जो गरीब, दबे कुचले वर्ग को सामने लाता है. समाज को उसके सरोकारों से रूबरू कराता है.
ये साहित्य जनसमस्या तो बताता है, लेकिन प्रेरित नहीं करता. इसीलिए ये एक उबाऊ बनकर रह गया है, जिसमें अब सिर्फ फार्मूला बेस्ड लेखन होता है. जो आज भी आज से 40 साल पहले के जमाने में जी रहा है. जिसमे बीस साल से ऊपर हो गए कोई कालजयी रचना नहीं लिखी गयी.
जिसके पुरस्कार विजेता लेखको के नाम सिर्फ और सिर्फ उन्ही की कटेगरी के लेखक ही जानते हैं. वही लेखक हैं, वही आलोचक भी हैं और वही पाठक भी. वही पुरस्कार देते हैं और वही लेते भी हैं.
पाठक साहब की रचनाएँ मात्र मनोरंजन नहीं. एक प्रेरणा है, जीने का संबल है, लगातार लड़ते रहने का, एक कभी न टूटने वाली जिजीविषा का नाम हैं.
पाठक साहब जिन चरित्रों को गढ़ते हैं वो नायक या हीरो नहीं होते आम हालात में आम इंसान होते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में असाधारण चरित्र का प्रदर्शन करते हैं. जो कहानी के अंत में जाकर एक हीरो के रूप में स्थापित होते हैं और पाठको को एक नयी ऊर्जा एक प्रेरणा दे जाते हैं.
पाठक साहब को पढ़ने वाले किसी थ्रिल, किसी मर्डर मिस्ट्री के हल के लिए उन्हें नहीं पढ़ते, बल्कि अपने चरित्र को और सुदृढ़ करने, जीवन के मूल्यों को हासिल करने उन्हें समझने के लिए पढ़ते हैं.
ऐसा लिखने वाला हिंदी या अंग्रेजी में मेरी नजर में कोई नहीं है.
अगले साल पाठक साहब का नाम पद्म श्री के लिए प्रस्तावित करूंगा एक अभियान चलाऊंगा, उम्मीद है मुझे पूरा समर्थन मिलेगा.
आज पाठक साहब का जन्मदिन है, उन्हें ढेरो बधाई, शुभ कामनायें.
जब तक जीते रहे उन्हें पढ़ते रहें,
जब तक उन्हें पढ़ते रहे, जीते रहें