मस्ती चैनल देखते होंगे आप, बेहतरीन गाने आते हैं, पुराने 50 से लेकर 80 और 90 के दशक तक के.
अन्नू कपूर भारतीय फ़िल्म उद्योग के उन चंद कलाकारों में हैं जो अंदर और बाहर दोनों जगह से एक हैं. मतलब उनका स्नेह केवल सिनेमाई नहीं है, जो आदर सत्कार वे भारतीय कलाकारों, लेखकों, महापुरुषों या आम इंसान को देते हैं वो वास्तविक होता है ना कि दिखावटी जैसा इंडस्ट्री के बाकी अभिनेता और अभिनेत्री दिखाते हैं, ख़ैर.
अभी उन्हें देख रहा था, किसी का ख़त आया कि मुझे ‘मेरे घर आई एक नन्हीं परी’ सुनवा दीजिये, उसके पीछे उन्होंने जो कारण लिखा वो झकझोर गया ना सिर्फ मुझे बल्कि अन्नू कपूर साब को भी, हम दोनों की आँखें भीगी हुईं थीं ना केवल दुःख से बल्कि गुस्सा भी था.
अशोक कुमार गुप्ता जी ने लिखा कि मेरा एक बेटा था, जिससे मुझे 2 पोतियाँ हुईं, पोतियाँ मेरी जान थीं(हैं), मगर बेटे की अकाल मृत्यु के पश्चात बहू से अनबन रहने लगी, शायद वो अब ससुराल में नहीं रहना चाहती थी, बेटे के जाने के बाद आये उसके स्वभाव में अचानक बदलाव ने हमें चकित कर दिया, बेटे के रहते जो स्नेह, सम्मान और प्रेम वो देती थी, बेटे के जाने के बाद अचानक से सब बदल गया….बात बात पे झगड़ने लगी, और एक दिन गुस्से में घर छोड़ कर मायके चली गई….. मैं अपनी पोतियों को बहुत चाहता हूँ, पर मुझे पोतियों का चेहरा तक ना दिखाया उसनें जाते वक़्त, कुछ दिनों तक मैं बहू से मिलने, उसे समझाने की कोशिश करता रहा पर ना वो मिली ना उसके माता-पिता, एक रोज़ ख़बर आई कि बहू ने दूसरी शादी कर ली है….
मैं आज बेहद उदास हूँ, मुझे नहीं पता कि मेरी पोतियाँ कैसी हैं, क्या हाल है उनका….पर बेहद याद आतीं हैं, मैं और मेरी पत्नि उनमें अपने बेटे का अक्स देखते थे आज लगभग 1 साल होने को आया है मैंने उनकी शक्ल तक नहीं देखी, ना मालूम ही है कि वे किस हाल में हैं…..
अन्नू जी आपसे गुज़ारिश है कि मुझे ये वाला गाना सुनवा दीजिये…. बड़ी मेहरबानी होगी आपकी.
‘मेरे घर आई एक नन्हीं परी’ वैसे तो ये गाना कई दफ़े सुना पर आज कुछ ख़ास लगा….आप सोचिये दुनिया में कितना दुःख बगरा पड़ा है, जहाँ टटोलिये इंसान कहीं ना कहीं परेशान है, किसी को कम दुःख है तो किसी को ज़्यादा….पर सोचता हूँ कि अगर इस दुनिया में गीत-संगीत ना होता तो क्या होता? आज तो फिर भी इंसान अपना दर्द इनके सहारे काट लेता है अगर ये ना होता तो? क्या हम इंसान रह पाते? संवेदनशील हो पाते? हममें दूसरों की भावनाएँ उनका दुःख समझने की समझ आ पाती….शायद नहीं, संगीत ने अपने आप में बहुत कुछ सम्भाल रखा है यकीनन वरना इंसान और भी निष्ठुर होता.
मन द्रवित हो गया उसकी पाती को सुनकर….