यह वो दौर था जब अंग्रेज़ लोग हिंदुस्तान की भोली भाली जनता को भरमाने के लिए ताज तो हिंदुस्तानी राजा के सिर पर रखते थे लेकिन सलाहकार की आड़ में हुकूमत ख़ुद करते थे… पेज 10, उपन्यास-फ़िरंगी, वेदप्रकाश शर्मा
इस इंदौर यात्रा के दौरान पिताजी की किताबों के संग्रह, जिसमें वेदों से लेकर विज्ञान तक की तमाम किताबें हैं, में फ़िरंगी उपन्यास भी दिखा.
मैंने पूछा ये क्या पढ़ते हो आप. उन्होंने इस उपन्यास के घर आने की कहानी बताई. एक वरिष्ठ विचारक और साहित्यकार अंकल के घर जबलपुर पिताजी का जाना हुआ.
पिताजी उन्हें पूज्य बड़े भाई की तरह मानते थे. इस पुस्तक को उनके संग्रह में देखकर पिताजी ने अनायास ही कह दिया क्या गटर साहित्य पढ़ते हैं आप. अंकल ने कहा तूने कभी इनका कोई उपन्यास पढ़ा है. पिताजी ने ना में जवाब दिया. चल एक काम कर 4 पन्ने पढ़ और फिर पूरा पढ़े बिना रुक गया तो इसे अपने संकलन से हटा दूँगा.
चार पन्ने पढ़ने के बाद उत्सुकता ये थी कि किताब जबलपुर से इंदौर आई और फिर पिताजी ने मुझे भी कुछ दिन पहले पूछे गए मेरे प्रश्न पर भी यही चैलेंज दिया.
विश्वास कीजिए शुरूआती चार पन्ने पढ़ने के बाद मैं इस किताब को लगातार पढ़ रहा हूँ. आधा उपन्यास होते होते ख़्याल आया वेद जी तो अभी होंगे क्यूँ न उनके दर्शन कर लिए जाएँ.
मैंने बहुत देर कर दी उनके साहित्य को पढ़ने में और उनसे मिलने का ख़याल दिल में लाने में. श्रद्धांजलि वेद साहब. आप अमर रहेंगे.