ये घटना 20 जनवरी की रात की है. C-60 कमांडो फ़ोर्स महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गठित एक स्पेशल फ़ोर्स है जो नक्सल संगठनों के खिलाफ कार्यरत है.
20 जनवरी की रात C-60 कमांडो फ़ोर्स का एक दल महाराष्ट्र के गढ़चिरोली कस्बे के जंगलों में गश्त पर था, जब नक्सलियों से उनकी मुठभेड़ हुई.
गोलीबारी के उपरांत नक्सल भाग निकले, लेकिन उस जगह से पुलिस फ़ोर्स को दो आदिवासी लड़कियां मिली.
रात का समय, घना जंगल. कमांडो फ़ोर्स के अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से उन लड़कियों को अपने संग रखा और सवेरे सभी जंगल से बाहर आये. उसके उपरांत उन लड़कियों को छत्तीसगढ़ में उनके परिवार वालों के हवाले कर दिया गया.
छत्तीसगढ़ जहाँ बहुत से सो कॉल्ड मानव अधिकार वाले एक्टिविस्ट रहते हैं, आदिवासियों पर पुलिस दमन के खिलाफ प्रदर्शन करना, लिखना जिनका रोजगार है. उन्हें इस घटना के बारे में पता चला.
दो जवान लड़कियां, अँधेरी रात, जंगल, पुलिस. आदिवासी लड़कियां पुलिस अधिकारी. जंगल, रात.
अगले दिन गांव-गांव प्रदर्शन शुरू किये गए. सोशल मीडिया पर लगातार प्रचार चलना शुरू हुआ.
कमांडो पुलिस के अधिकारियों ने रात में घने जंगल में दो आदिवासी लड़कियों से बलात्कार किया.
कथित मानव अधिकार कार्यकर्त्ता साइनु गोटा, उनकी पत्नी शीला गोटा और भी कई एक्टिविस्ट लोगों ने पुलिस थाने पर प्रदर्शन किये.
बड़ा आरोप था. सरकार ने तुरंत एक्शन लिया. मामला दर्ज हुआ. उन लड़कियों को मेडिकल एक्जामिनेशन के लिए हास्पिटल ले जाया गया. जहाँ डॉक्टरों ने किसी भी तरह के रेप या मोलेस्टेशन से इंकार कर दिया.
और इसके तुरंत बाद ही दोनों लड़कियां गायब हो गईं.
बड़ा मसाला.
बड़ा प्रदर्शन, गांव में, सोशल मीडिया में भी. लगातार पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन, प्रचार.
इसके बाद ये एक्टिविस्ट बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच पहुंचे, जहाँ उन्होंने नागपुर चैप्टर ऑफ़ ह्यूमन राइट्स नेटवर्क के डायरेक्टर निहाल सिंह राठौड़ के जरिये पेटिशन फाइल की. पुलिस ने बलात्कार किया, फिर धमकाया और अब गायब कर दिया.
अदालत ने संज्ञान लिया. आवश्यक निर्देश जारी किये.
दो दिनों के बाद बड़े ही नाटकीय तरीके से पुलिस ने निहाल सिंह राठौड़ के दफ्तर पर छापा मारा और दोनों लड़कियों को वहां से बरामद किया.
दोनों लड़कियों को पुलिस ने अपने सरंक्षण में ले लिया.
राठौड़ साहब ने एक अर्जेंट याचिका अदालत में लगाई कि उन लड़कियों को डराया धमकाया जा रहा है और ऑफ़कोर्स ह्यूमन राइट एक्टिविस्टों को भी. सभी की जान खतरे में है. अब अदालत ही एकमात्र सहारा है. पुलिस के डर से लड़कियां सच नहीं बोल रही हैं.
हाई कोर्ट के जजों, भूषण गवई और इंदिरा जैन जी ने इस मामले की सुनवाई खुली अदालत में करने की जगह अपने चैंबर में की.
उस चैंबर में दोनों लड़कियां, राठौड़ साहब, सरकारी वकील, लड़कियों के परिवार वाले मौजूद थे.
दोनों लड़कियों ने किसी भी तरह के रेप, मोलेस्टेशन से पूरी तरह इंकार किया. और जजों को बताया की उनका अपहरण इन्ही एक्टिविस्टों ने किया है.
इसके बाद माननीय जजो ने दोनों लड़कियों को सुधार गृह भेजा. एक्टिविस्टों को गिरफ्तार कर लिया गया.
साफ़ था कि ये पुलिस और सरकार को बदनाम करने की बड़ी साजिश थी.
और कितनी बड़ी हिम्मत की बात थी. इतना सफ़ेद झूठ.
आखिर कैसे हिम्मत पड़ी?
क्योंकि आप और मैं, आम जनता जो है वो सीटिया है. उन्हें इस तरह के आरोपो से फर्क नहीं पड़ता.
सरकार और पुलिस, जनता की दुश्मन है. सरकार सेठों की है, उद्योगपतियों की है.
ये भावना लगातार फैलाई जा रही है. और हम या तो इग्नोर कर देते हैं या गरीब, निर्धन, किसान, मजदूर, आदिवासी के नाम पर अपना मौन समर्थन इन्हें देते हैं.
इसी का नतीजा है कि आज भी प्रचार चल रहा है कि 6 ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट और उनके वकील सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए हैं क्योंकि वो आदिवासियों की जमीन टाटा, लायड स्टील, जिंदल को दिए जाने के खिलाफ आवाज उठा रहे थे.
प्रदर्शन और प्रचार जारी है. आज भी.
मैंने ये घटना 29 जनवरी को पढ़ी थी. फिर मैंने कान में तेल डाल लिया. कहाँ किसी को कोई फर्क पड़ता है.
फिर देखा कि कुछ लोगों ने आवाज उठाई. कश्मीर में सेनाध्यक्ष रावत जी के सपोर्ट में.
यही समर्थन सेना के साथ सरकार और हमारी पुलिस को भी तो चाहिए.
या नहीं?