मेरे मित्र!
दु:ख समझ का वह पुष्प है
जिसमें आनंद के फल लगते हैं.
एक प्रचुर हर्ष के लिये
तुम्हारा हृदय अपनी परिपूर्णता में
दु:ख को निमंत्रित करता है.
दुःख ही लायेगा आगे शाश्वत प्रेम,
दु:ख गुम्फित जीवन को सुलझा देगा,
दुःख अकेलेपन का सामर्थ्य उत्पन्न करेगा,
दुःख तुम्हारे बंद हृदय के द्वार खोल देगा,
दुःख शाश्वत् आकाश को जीत लेगा,
हृदय अपनी परिपूर्णता में
दुःख को आमंत्रित करता है.
जिस प्रकार तेज वर्षा उपरांत
जल धारायें फूट पड़तीं हैं
और बहते पानी के झर-झर नाद में
धरा का कण-कण हर्ष से भर जाता है,
उसी प्रकार
दुःख की नदी के किनारों से संचित समझ
उस रिक्तता को भर देती है
जो भय उत्पन्न करती है.
शीतल मंद पवन पर सवार
एक सुगंध आ रही है.
सत्ता के घर में विश्राम न करें
जहाँ सुख और भय उत्पन्न किये जाते हैं.
दूर जाने के लिये
इसके बाहर निकलो
ऊँचाई पर पहुंचने के लिये
नीचे से प्रारम्भ करना होगा.
दुःख की आवाज़
परिपूर्णता का गीत है
और उससे उत्पन्न हर्ष
जीवन की परिपूर्णता है.
– जे कृष्णमूर्ति
हिन्दी अनुवाद – राजेश कुमार चौरसिया
वाराणसी १२/०२/२०१७