कल टी.वी. पर मतदान की तस्बीरें देखकर, यह कविता रात के एक बजे फूट पड़ी –
वोट कतारें देख रहा हूँ, गायब भगवा कुर्ता है|
गायब दिखता तिलक यहाँ तो, दिखता काला बुर्का है||
ये ख़ामोशी ये काहिलपन, सर्वस्व तुम्हारा लूटेगा|
काश्मीर तो टूट चुका, हर हिन्दू का घर टूटेगा||
कड़ा, कलावा, कुमकुम, केशर, काली आज कराह रही|
हिन्दुस्तान सिकुड़ता पल-पल, दिखती कोई राह नहीं||
जो पश्चिम यूपी दुनिया में, गन्नों से जाना जाता है|
आज वही गंदे जेहादी, पन्नों से जाना जाता है||
देखो हिन्दू कैराना में, कितने घर अब खाली हैं|
घायल शाम बनारस वाली, राम लला तिरपाली हैं||
जब बस्ती में आग लगी हो, सबकी बारी आती है|
उसे बुझाने की हम सब पर, जिम्मेदारी आती है||
अग्नि ज्वाल को बढ़कर पलटे, वह ही खुद्दारी होगी|
मुँह मोड़ा जलती बस्ती से, खुद से गद्दारी होगी||
आज जेहादी आग लगी है, भारत के हर सूबे में|
हिन्दू बन कर जीत मिलेगी, हार अहीर औ दूबे में||
बाभन, बनिया, जाटव, ठाकुर, अहीर बता कर बांटेगा|
जाति बता कर अलग करेगा, हिन्दू कह कर काटेगा||
अभी समय है घर से निकलो, कर्तव्यों को याद करो|
गुण्डे, चोर, जिहादी जितने, उन सबकी फ़रियाद करो||
अखिलेश, मुलायम पापों का, एक बार संताप करो|
लोकतंत्र में वोट मंत्र है, उसी मंत्र का जाप करो||
राम नाम जयघोष लगाकर, जोरदार जयकार करो|
कमल बटन पर वोट दबाकर, यूपी का उद्धार करो ||