हे हनुमान भक्तों! सादर प्रणाम.
14 फरवरी का शौर्य दिवस अब सन्निकट है. सभी ओर आपके पुण्य प्रताप का बोल बाला है. लोग बड़ी भयमिश्रित उत्कंठा से आपको याद कर रहे हैं. ऐसे में मैं मूढ अज्ञानी आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूं.
हे कपीश भक्तों! अपने आराध्य श्री हनुमान जी का चरित्र स्मरण करो. उनके कूटनीतिक कौशल का भान करो. उनके वाकचातुर्य की स्तुति करो कि कैसे शत्रुओं से भरी लंका से वे रामभक्त विभीषण को अपने पक्ष में ले आए.
कैसे वे शत्रुओं के वैद्यराज सुषेण को लक्ष्मण जी के उपचार के लिए तैयार कर लाये. कैसे उन्होंने संपूर्ण रामायण में अपने अद्भुत वाक्चातुर्य का प्रदर्शन किया. बल सिंधु ने अपने असीमित बल का कहीं भी दुरुपयोग नहीं किया. मात्र अपरिहार्य हो जाने पर ही बल प्रयोग किया.
तो हे भक्तों! आप भी अपने आराध्य से प्रेरित हो अपने छोटे भाइयों को, जो पथ भ्रष्ट होते से दिख रहे हैं, अपने वाक कौशल से अपने तर्कों से और अपने स्नेह से उनका पथ प्रदर्शन करो ना कि डंडे के जोर से.
यदि डंडे/ तलवार के जोर पर ही धर्म का ज्ञान करवाना है तो फिर आप में और ‘उनमें’ क्या फर्क बचता है?
धर्म का मार्ग प्रशस्त करने के लिए, क्या कभी राम/ कृष्ण ने अपनों से बलप्रयोग किया?
क्या कभी विवेकानंद ने किसी से हाथापाई की?
क्या कभी शंकराचार्य ने किसी से हाथापाई की?
क्या कभी श्रील स्वामी प्रभुपाद ने किसी से हाथापाई की?
नहीं ना!
भगवान श्री कृष्ण ने तो श्रीमद्भागवत गीता के दौरान पूर्ण रुप से समर्पण कर चुके अर्जुन को भी कोई आदेश नहीं दिये बल्कि समझाया और जो वाक्य प्रयोग किए वह ऐसे थे –
….. “कि ऐसा मेरा मत है”
….. “इसे ज्ञानी लोगों ने श्रेष्ठ माना है ”
….. “ऐसा सांख्य कहता है”
कारण स्पष्ट है धर्म का मार्ग श्रद्धा, भाव एवं बुद्धि से वरेण्य है, बलात् अपमान से नहीं.
आप से प्रताड़ित सार्वजनिक रुप से अनादर को प्राप्त आपके छोटे भाइयों के ‘शक्ति सिंह’ बन जाने की पूरी संभावना रहती है. तत्पश्चात वे दुखी मन से जाकर किसी मानसिंह / अकबर की गोद में बैठ जाते हैं.
‘एक घौंसले में लड़ते पक्षी भाइयों में से जो नीचे गिर जाता है उसके अक्सर वामी सर्पो अथवा ‘हरे’ अजगरों के द्वारा निगल जाने की संभावना प्रबल हो जाती है.’
संभव हे कि आपके द्वारा पीड़ित किए जाने वालों में कोई तुलसी के राम-जानकी जैसे हों, जो अपने अभिभावकों से आज्ञा लेकर यह प्रेम पर्व मनाने आए हों.
ऐसे में आपके द्वारा किया गया कृत्य रामदूत सम्मत नहीं हो सकता. ऐसे नव युगलों का यथायोग्य सम्मान कीजिए. कुमकुम, अक्षत, रक्षासूत्र एवं मिष्ठान्न से उनका उचित उपचार कीजिए.
नल-नील के वंशजों! हृदय से हृदय तक राम सेतु का निर्माण कीजिए, खाई का नही. कुछ ऐसा कीजिए इस बार की अगली बार ससम्मान आपका इंतजार करें लोग.
हृदय की वेदना कैसी होती है यह आप के ‘दक्षिणी कमान के सेनापति’ अच्छी तरह से जानते हैं. वे प्रसिद्द हृदय विशेषज्ञ रहे हैं.
यदि फिर भी आप नहीं माने तो आपके कृत्यों का परिणाम लांछन के रूप में सनातन के ‘प्रधान सेनापति’ को भुगतना होगा.
तो हे बलभद्रों! अपने अतुलित बल का भद्र प्रयोग करो. सिद्ध करो कि आप गदा के साथ शास्त्र एवं प्रज्ञा भी धारण करते हो. आपकी वाणी में भी वही तेज प्रवाहित होता है जो आपके रक्त में होता देखा जाता है इस दिन.
यह 14 फ़रवरी इस बार ऐतिहासिक हो और लोग कहे कि यह होता है एक बड़े भाई का दायित्व.
‘केवल बल से नहीं बल्कि दायित्व से ‘बलभद्र’ (दाऊ बलराम जी) बनें, अपने कान्हा को प्रेम से डांटे, फटकारें, खिजाएं… लेकिन इतना दूर न जाने दें कि उन्हें फिर से अपने अंक में ना भर सकें.’
“जय बजरंगबली”
“अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुज वन्कृषानुम् ज्ञानिनाम अग्रगण्यं..”
…जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्…
बहुत सही बहुत अच्छा