पिछले सितम्बर 2016 को, हिंदुओं की लड़कियों से छेड़खानी को लेकर बिजनौर के नया गांव व पेंदा गांव में हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए थे.
मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों को परेशान करने से रोकने पर शुरू हुई यह कहा-सुनी दंगे में बदल गयी थी.
पिछले कुछ महीने से शांत बिजनौर में कल फिर उबाल आ गया है. जो कहानी सितम्बर में शुरू हुई थी उसका अगला खूनी अध्याय कल लिखा गया है.
खबर आयी है कि पेंदा गांव के एक हिन्दू पिता-पुत्र पर कल, मुस्लिम सरपंच की शह पर जानलेवा आक्रमण हुआ है जिसमें पुत्र की तत्काल मृत्यु हो गयी है और पिता गम्भीर हालत में है.
कल की यह हत्या हमें आने वाला भविष्य दिखा रहा है. इस घटना में मुस्लिम समुदाय की भूमिका को भारत के राजनैतिक दलों ने बल दिया है.
इस चुनावी दौर में जिस तरह से सपा, बसपा, कांग्रेस, लोकदल जैसे भारतीय राजनैतिक दलों ने अपनी-अपनी अस्मिता मुस्लिम समुदाय को बेच दी है, उसमें इस तरह की घटनाएं आम होंगी.
कल प्रधानमंत्री का बिजनौर में भाषण था और वहां पूरे शहर में सुरक्षा और पुलिस की पेट्रोलिंग भी खूब रही होगी लेकिन इस सबको धता बताकर, जिस निडरता से यह हत्या की गयी है, वह जहां ‘उनके’ आत्मविश्वास को बताता है, वहीं सेक्युलर राजनैतिक दलों का ‘उनके’ समुदाय के प्रति नपुंसकत्व पर भी पूरा भरोसा होना दिखाता है.
आज मतदान का पहला दिन है और यदि आज हिन्दू जात-पांत के भँवर में फंस कर क्षणिक स्वार्थ और व्यर्थ के दम्भ में सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद को वोट देने की भयंकर विनाशकारी भूल करता है तो कल हर गाँव पेंदा गांव बनेगा.
हम को अपनी पीढ़ियों को गुलामी से बचाना है तो हमें गज़वा ए हिन्द के हथियार बन चुके इस हाथी, साईकिल, पंजे को नकार कर, मोदी जी के कमल को वोट देना है.
आपका यह वोट कोई राजनीति नहीं, बल्कि यह हिंदुत्व की निरंतरता की नियति का निर्धारण काल है.