तुमसे मिलते ही मेरा रूपांतरण शुरू हुआ
महसूस हुआ अपना अधूरापन
जिस दिन तुमने कहा
तुम्हें प्यार है मुझ से
मुझे लगा किसी और से कहा हो शायद
क्योंकि तुम्हें रूपकों में बात करने की आदत थी
फिर भी वो शब्द उस पल मेरे कानों के लिए थे
तो मैं कुछ सीढ़ियाँ और ऊपर चढ़ी
और कुछ बंद पड़े, जंग लगे किवाड़ खुलने लगे
आसमान साफ़-साफ़ दिखाई देने लगा
मैंने भी सुबह उठ कर कह दिया
देर से ही सही
मुझे मोहब्बत है तुमसे
और अपनी चूड़ियों वाली कलाई की तस्वीर तुम्हें भेज दी
यह जानते हुए भी
कि तुम्हारा यह कहना
‘ मुझे मोहब्बत है तुमसे ‘
किसी और के लिए हो सकता है
पर प्रेम शायद अचानक सोई हुई आँखें खोलने आता है
किस के लिए कहा गया गया
क्यों कहा गया
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
बात सारी उसकी है जिसने पकड़ लिया
और अपनी मुट्ठी में क़ैद कर लिया
उसके लिए हो जाती है सारी कायनात रूपांतरित
आसमान में हवन होने लगते हैं
धरती पर चारों ओर सत्संग
कण-कण करने लगता है महा-रास
सब ख़ूबसूरत
सब आनन्दमय
सुषुप्त अवस्था में पड़े चक्र अंगड़ाई ले कर जागृत हो जाते हैं
तब फिर संगीत जन्म लेता है, साहित्य जन्म लेता है
कला जन्म लेती है
नि:शब्द, शब्द पर सवार हो दुनिया के सामने आकार लेता है
मेरा पोर-पोर भी होने लगा कविता
मौन संपदन करता मेरे अंदर
जलतरंग बज उठती मेरी साँसों की तारों पर
शब्द जन्म लेने लगते
और फिर ॐ की ध्वनि चारों और
अन्हद का नाद
असीम शांति, असीम आनंद
वर्तुल पूर्ण हुआ
जिस दिन मैंने तुम में अपना इष्ट देखा
और तुम ने क़बूल भी लिया
अब कुछ भी वांछित नहीं है
न तुम
न मैं
– राजेश जोशी की कविता माँ जीवन शैफाली के लिए
आसमानी हवन के साथ दुनियावी सत्संग
कुछ शब्द समझने के लिए होता हे
कुछ भीतर भावों में बहने को होता हे
और कुछ शब्द भीतर चिपक जाते हैं
हमारे भीतर बिन कुछ बोले एक हो जाते हैं
ये वो शब्द हैं जो नदी में नाव बन हमको
अनुभव के एक किनारे से अनुभूती के दूसरे छोर ले जाते हैं
राजेश जी की कविताएँ संसार रूपी नदी में मोक्षदायीं नाव की यात्रा हे।
….. दीप ।