बच्चे के लिए जब गर्भवती महिला ने उफनती नदी में लगाई थी छलांग

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आपको शायद बचपन की यह कहानी याद हो एक औरत अपने दूध मुंहे बच्चे को घर में अकेला छोड़ कर दुर्गम पहाड़ी पर बने रास्ते से चढ़कर ऊपर बने राजा के किले में दूध देने जाया करती थी.

शाम को निश्चित समय के बाद कीले का दरवाज़ा बंद हो जाया करता था. उसके पहले उसे दूध देकर वापस नीचे अपने बच्चे के पास लौटना होता था.

एक दिन उसे किले के दरवाजे तक पहुंचने में देर हो जाती है और किले का दरवाज़ा बंद हो जाता है. बहुत मिन्नतों के बाद भी जब दरबान दरवाज़ा नहीं खोलता तो घर में अकेले पड़े बच्चे की रोने की आवाज़ उसके कानों में गूंजने लगती है.

वो बिना कुछ सोचे समझे किले की ऊंची दीवारों को लांघकर जंगलों के रास्ते नीचे पहाड़ी उतर जाती है. और अपने बच्चे को सीने से लगा लेती है.

पता नहीं कैसे लेकिन उन दरबानों को इस बात का पता चल जाता है और वो उसे बच्चे सहित पकड़कर राजा के सामने हाजिर कर देते हैं और सज़ा देने को कहते हैं.

राजा को बड़ा आश्चर्य होता है कि इतनी ऊंची दीवारें और इतनी ऊंची पहाड़ी कोई जंगल के रास्ते कैसे पार कर सकता है.

राजा उसे सज़ा के तौर पर यही आदेश देते हैं कि वो उनके सामने इतनी ऊंची दीवारें लांघकर उसी रास्ते से फिर से पहाड़ी से उतरकर बताना होगा.

जब वह औरत उस दिवारों से पहाड़ी की ओर झांकती है तो खुद ही डर जाती है और राजा से कहती है पता नहीं कल ये पहाड़ी इतनी ऊंची और डरावनी नहीं थी, आज मुझे बहुत डर लग रहा है मैं ये पहाड़ी पार नहीं कर सकती.

राजा और दरबान समझ जाते हैं कि कल उसकी ममता उस पहाड़ी से ज्यादा ऊंची थी इसलिए वो उतर कर अपने बच्चे के पास जा सकी. राजा उसे माफ कर देते हैं. उस महिला को हिरकणी पुरस्कार से राजा ने सन्मानित किया. और वह राजा महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी राजे भोंसले थे.

दो तीन साल पहले एक ऐसा ही किस्सा कर्नाटक के एक गांव में हुआ था. 9 महीने की गर्भवती महिला ने अपने बच्चे के सुरक्षित जन्म के लिए उफनती नदी में छलांग लगा दी और सकुशल इस नदी को पार भी कर लिया. सबसे बड़ी बात महिला को तैरना नहीं आता था. बावजूद इसके यह 22 वर्षीय महिला 90 मिनट तक नदी में तैरती रहीं.

दरअसल उत्तरी कर्नाटक के इस गांव में बहने वाली नदी में पानी का स्तर बढ़ता ही जा रहा था और बच्चे का जन्म कभी भी हो सकता था. आसपास कोई ठीक-ठाक हॉस्पिटल भी नहीं था और महिला को चार किलोमीटर दूर के हॉस्पिटल ले जाने के लिए कोई नाविक तैयार नहीं था.

येल्लावा का यह पहला बच्चा था और वह गांव में बच्चा पैदा करवाने के लिए मिल रही सुविधा से संतुष्ट नहीं थी और हॉस्पिटल में समय से पहुंचने के लिए उसने इतना बड़ा रिस्क लिया कि जिसने सुना वही उस मां की ममता के आगे नतमस्तक हो गया.

मॉनसून के दौरान नदी का पानी 12 से 15 फुट ऊपर उठ आता है. ऐसे में यादगीर जिले के इस गांव से कोई भी नदी में घुसने की हिम्मत नहीं करता. लेकिन येल्लावा के पास कोई विकल्प नहीं था.

मॉनसून के दौरान जो हालात हर साल इस इलाके के होते हैं, उसे जानते हुए वह काफी समय से अपने परिवार से दूसरे गांव शिफ्ट होने के लिए कह रही थी लेकिन गरीब परिवार रोजी रोटी जुटाने में लगा रहा और समय रहते उसे दूसरे गांव नहीं ले जा पाया.

फिर एक दिन बसावा सागर कुंड से पानी छोड़ दिया गया और कृष्णा नदी में उफान आ गया.

येल्लावा गांव के एक मजदूर की दूसरी पत्नी है. पति उसे नापसंद करता है और ऐसे में येल्लावा के गर्भवती होने के बाद उसकी ऐसी हालत में देखभाल करने के लिए उसके परिवार के अलावा और कोई नहीं था.

हालात बिगड़ने पर येल्लावा के पिता ने उसे कहा कि उसे नदी में कूदना ही होगा. उसने बताया, मैं नहीं जानती कि तैरा कैसे जाता है. हम बस नदी पर कपड़े धोने जाते. मैं नदी में कूद गई.. सुबह के 10 बज रहे थे लेकिन पानी बहुत ही ठंडा था.. मेरा दम घुटने लगा था… फिर मेरे भाई ने सूखे हुए सीताफल और लौकी को मेरे शरीर के आसपास सटा दिया ताकि कुछ हल्कापन लगे.

पूरी तरह से थक चुकने के बाद भी इन दोनों चीजों की वजह से येल्लावा सतह पर तैरती रहीं. भाई येल्लावा के सामने और पिता पीछे पीछे तैरते रहे. उसने बताया, पानी ने उसके चेहरे को पीछे की धकेलना शुरू कर दिया … मैं सांस भी नहीं ले पा रही थी.. शुरू में पानी के तेज बहाव के चलते मैं पलट भी गई. लेकिन फिर मेरे पिता ने कहा कि मैं पेट के बल आ जाऊं….

आधे घंटे की तैराकी के बाद वे लोग नदी के बीचोबीच आ चुके थे और पानी का गहराता जा रहा था. येल्लावा ने बताया कि थकावट के मारे उसने पानी मुंह में लेना शुरू कर दिया जिससे हालत और खऱाब हो गई और डूबने लगी.

वह बताती है कि यह सबुकछ काफी डरावना था लेकिन भाई और पिता ने उसे पूरा पूरा सहयोग दिया. 45 मिनट और तैरने के बाद वे लोग नदी के उस पार पहुंच गए.

आमतौर पर 20 से 25 मिनट में पार हो जाने वाली नदी को इस समय पार करने में उन्हें दो घंटे से ज्यादा का समय लगा.

नदी पर पहुंचकर लोगों ने उसके पिता को इतने बड़ा जोखिम लेने के लिए डांटा तो जरूर लेकिन येल्लावा का कहना है कि उसकी जो हालत थी, उसमें यह रिस्क लेना बेहद जरूरी था.

दो साल पहले जब यह किस्सा लिओखा था तब तक उसे बच्चा पैदा हुआ नहीं था लेकिन डॉक्टर्स का कहना था कि दोनों स्वस्थ हैं.

मैं नहीं जानती येल्लावा और उसका बच्चा कैसा है लेकिन आज दोबारा इस खबर को पढ़कर उस माँ के लिए प्रार्थना के लिए हाथ उठ गए…

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