मैं बार बार इस बात का प्रचार करना ठीक नहीं समझता कि मैं उस समुदाय का हिस्सा हूँ जिसे दलित कहा जाता है. हमेशा ऐसा कहते रहना ऐसी भावना उत्पन्न करता है कि मै दलित समाज का होने की वजह से सहानुभूति बटोरना चाहता हूँ.
लोग ये भी जानते हैं कि मैं हिंदुत्व और भाजपा का प्रबल समर्थक हूँ. चूंकि यूपी में चुनावी माहौल गर्म है इसलिये उस समाज का राजनैतिक रुख क्या है जिससे मैं ताल्लुक रखता हूँ, उसकी जमीनी हकीकत की मेरी समझ थोड़ी बेहतर है.
यहाँ कानपुर में दलित समाज की चमार, पासी, लोध, राजपूत, सोनकर, खटीक, सैनी जातियां सबसे ज्यादा हैं… और इन सभी के साथ मेरा मिलना-जुलना, उठना-बैठना, खाना-पीना, सब कुछ बराबर चलता है.
इस समाज के लोग पढ़े-लिखे कम और एकजुट ज्यादा हैं. इस समाज में व्यक्तिगत सोच के मुकाबले सामूहिक सोच ज्यादा प्रबल है.
ऐसे में जब मैं इस समाज के एक व्यक्ति, एक परिवार या चार-पांच लोगों से बात करता हूँ तो मुझे एक व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि उस समाज के 95% हिस्से की सोच को समझने, उसे स्टडी करने का अवसर मिलता है.
उत्तर प्रदेश चुनावों में दलित वोट बैंक का तात्कालिक हिसाब-किताब ऐसा है कि चमार/ जाटव को छोड़कर अन्य दलित बिरादरी मायावती की कोर वोटर नहीं रह गयी हैं. खुद को दलित राजनीति के नाम पर वोट का खिलौना मात्र बने रहने देना, आज उन्हें स्वीकार्य नहीं.
मायावती ने अपनी पार्टी जिस राजनैतिक सोच ‘दलित उत्पीड़न’ पर स्थापित की थी, उस एक ही बात से अब दलित समुदाय ऊबने लगा है.
एक सामान्य व्यक्ति की तरह दलित समाज भी अब खुद की मूलभूत आवश्यकताओं शिक्षा, रोजगार, सड़क, बिजली, पानी को अपनी प्राथमिकता बना चुका हैं.
सवर्णों को गाली देने से उसका पेट नहीं भरता, उसकी आर्थिक उन्नति नहीं होती, ये बात अब दलित समुदाय समझ-बूझ रहा है.
सोशल मीडिया पर भीम-मीम की कितनी भी ढपली पीटी जाये, हकीकत ये है कि आज भी दलित समुदाय को मुस्लिम फूटी आँख नहीं सुहाते.
सपा की यादव + मुस्लिम राजनीति से वो चिढ़ा बैठा है… जिसमें इन दोनों समुदायों को छोड़कर अन्य किसी वर्ग के लिये कुछ नहीं. समाजवादी गुंडागर्दी से ये भी प्रताड़ित हैं.
सपा + कांग्रेस ने मुस्लिम वोट छिटकने से बचाने के लिये गठबंधन कर लिया तो वहीं भाजपा इसकी काट में दलित वोट में सेंध लगा रही है. मोदी इफेक्ट से दलित समुदाय तेजी से प्रभावित होता जा रहा है.
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा पर लगा ब्राम्हण + ठाकुर वाद का ठप्पा धुंधला पड़ता रहा है. खासकर दलित युवक मोदी से बहुत प्रभावित दिख रहे हैं.
ये बातें आपको ना सोशल मीडिया पर समझ आयेंगी, ना न्यूज़ चैनल्स देखकर… दलितों का रुझान समझने के लिये उस समाज के बीच जाकर ज़मीनी हकीकत देखनी होगी. वर्तमान में दलित तेजी से भाजपा की विकासवाद की राजनीति से आकर्षित हो रहे हैं.
चुनाव के बाद परिणाम क्या होगा ये अभी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन भाजपा को मिलने वाला दलित वोट प्रतिशत तब भी ये सिद्ध कर देगा कि यहाँ लिखी एक-एक बात सच है.