यात्रा आनंद मठ की – 4 : Special Keywords To Optimize Your Search

Ma Jivan Shaifaly With Ranjit Parikh Valsad yatra Anand Math
माँ जीवन शैफाली स्वामी देवानंद भारती माँ प्रेम मीनाक्षी

कल एक लेख के लिए प्रसिद्ध लेखक नरेन्द्र कोहली जी की तस्वीर गूगल पर खोज रही थी. सर्च बार पर Narendra Kohli लिखा तो उसने जो परिणाम दिए जानते हैं उसमें कौन से चित्र थे?

परिणाम में नरेन्द्र मोदी और विराट कोहली के चित्र आए. गूगल अधिकतर वही चित्र देता है जो सबसे अधिक खोजे जाते हैं, फिर आपको अन्य सम्बंधित Keywords डालने पर अपनी पसंद के परिणाम मिलते हैं…

नरेन्द्र कोहली खोजने पर नरेन्द्र मोदी और विराट कोहली के चित्र आने पर मैं स्वयं पर अचंभित थी… मैं भी तो यही करती हूँ… जीवन में उपलब्ध और सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली चीज़ों को ध्यान में रखकर ही तो मन की खोज को रास्ता देती हूँ…

परमात्मा इतना सीमित होता तो हर किसी को आसानी से उपलब्ध हो जाता, हालांकि हम समझते यही है कि ये जो मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों या गिरजाघरों में सर्वाधिक उपलब्ध और प्रचलित है वही परमात्मा है. लेकिन भय बिन होय न प्रीति के तर्ज़ पर अनुशासित होने और कुछ यम नियम के पालन से मन को एकाग्रचित करने का माध्यम भर है ये… तभी तो बुद्ध को सारी तपस्या छोड़ देने के बाद बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ, मेहर बाबा को तो छत को एकटक निहारते हुए ही परमात्मा मिल गए थे….

तो आत्मा के सर्च बार पर कौन से विशेष की वर्ड्स डाले जाएं कि हमें अपनी खोज का सबसे सटीक परिणाम मिले…

मेरे पास अक्सर लोग यही प्रश्न लेकर आते हैं, मन विचलित है, परमात्मा को खूब याद करते हैं लेकिन वो कोई रास्ता नहीं दिखाता, आप कोई मार्ग बताइये…

तो मुझे याद आता है श्री एम का दिया हुआ स्वप्न संकेत कि –  “सवाल तो सबके मन के एक से ही होते हैं, बस उनके जवाबों की यात्रा सबकी अलग-अलग होती है

अब जब सबकी जवाबों की यात्रा अलग अलग होती हैं और उनके स्पेशल की वर्ड्स भी उनके अपने अपने होते हैं, मैं उन्हें कोई सीधा जवाब नहीं दे सकती… सीधा जवाब देने में होगा यही कि वो खोज तो रहे हैं नरेन्द्र कोहली और मैं उन्हें नरेन्द्र मोदी और विराट कोहली पकड़ा दूं… तो मैं केवल मदद कर सकती हूँ सर्च को optimize करने में…

अपनी यात्राओं के संस्मरण लिखने का मेरा उद्देश्य भी यही है, कि जिस खोज में मैं हूँ, वो तो मुझे प्राप्त हो ही साथ ही यदि मेरी यात्रा के संस्मरणों के साथ यात्रा कर रहे लोगों की खोज में थोड़ी सी मदद कर सकूं…

बस इतनी कि उन्हें दिखा सकूं एक रास्ता ये भी है, ये भी है और ये भी… आपको जिस पर चलने में सुविधा हो आप यात्रा प्रारम्भ कर लें… कम से कम कहाँ से शुरू करूं वाले पड़ाव से तो उबर ही जाएंगे… और नहीं तो मेरी तरह खुद को पूरी तरह परमात्मा के हवाले छोड़ दीजिये… फिर वो जहां ले जाए..

इसी भाव के साथ जब मैं वलसाड यात्रा पर निकली लेकिन स्वार्थी मन कहाँ मानता है, तो चुपके से मैंने अपने मन के सर्च बार पर लिखा प्रेम… तो मुझे परिणाम में जो प्रेम मिला उससे थोड़ी सी जिज्ञासा जागी, क्या वास्तव में मैं इसी प्रेम को खोज रही थी?

लेकिन वो ऊपर बैठा है उसे तो पता है ना मैं आखिर खोज क्या रही हूँ… तो वो मुझे प्रेम के एक अलग ही रूप से मिलवाता है… लेकिन बस फर्क इतना होता है वो जो Special Key Words होते हैं ना वो हमारे अवचेतन मन में कहीं छुपे होते हैं जिनका हमें भी पता नहीं होता…

ऐसे में वो उन स्पेशल की वर्ड्स के माध्यम से मुझे प्रेम के जिस रूप से मिलवाता है वो साक्षात परमात्मा को पा लेने जैसा अनुभव होता है… यहाँ पर “पा लेने जैसा” कहना भी उसे पा लेना नहीं है… बस यदि उसे पा लिया तो कैसा अनुभव होगा उसकी झलक मात्र है…

लेकिन इस अवस्था को देख पाना भी बहुत आसान नहीं होता… आपकी जिज्ञासा जब तक मुमुक्षा नहीं बन जाती, आपकी आँखों को वो देख पाने की दृष्टि प्राप्त नहीं हो पाती… आँखें देख भी ले तो अनुभव तो गूंगे का गुड़ ही है..
तो दिन भर अपनी बचपन की यादों को ताज़ा करने के बाद दूसरे दिन के लिए तैयार हो रहे सरप्राइज को देखने के लिए मैं उत्सुक थी…

जबलपुर से निकलने से पहले मैंने वलसाड में रह रहे एक पुराने फेसबुक मित्र का नम्बर लिख लिया था. पिछले दो साल से फेसबुक से जुड़े हुए हैं मुझसे, पति पत्नी दोनों ओशो संन्यासी हैं, अक्सर घर में बनने वाली गुजराती डिश के फोटो मुझे भेजा करते थे… और मैं ये सोचकर उनको जवाब दे दिया करती थी कि मेरा गुजराती होना और मेरी माँ का वलसाड से होना ही उनको इतनी प्रसन्नता दे जाता है तो मैं कम कम इतना तो कर ही सकती हूँ…

दूसरे दिन सुबह करने को कुछ ख़ास था नहीं, अब आज कहाँ जाना है ये भी नहीं पता था तो सोचा सुबह सुबह उनसे मिल लेती हूँ तो लंच तक का समय व्यतीत हो जाएगा…

मैंने उनको फोन लगाया और बताया कि सिर्फ दो दिन के लिए वलसाड आई हूँ, आधे घंटे का समय है मेरे पास, आप बताएं कहाँ मिल सकते हैं…
उनकी प्रसन्नता मैं फोन पर भी अनुभव कर पा रही थी… उन्होंने मेरा पता लिया और कहा ये तो मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं मैं आधे घंटे में ऑटो लेकर पहुंचता हूँ…

मैंने सोचा चलो ठीक है यात्रा पर निकलूँ और किसी फेस्बुकिया मित्रों से ना मिलूं ऐसा भला हो सकता है… तभी मेरा मासी का लड़का अपने काम से निकल रहा था मैंने यूं ही पूछ लिया – फलाने मित्र फलानी जगह रहते हैं कितनी दूर है यहाँ से … उसने कहा अरे पास ही है.. चलिए मैं छोड़ देता हूँ…

मुझे ये आईडिया ज्यादा सही लगा, वो ऑटो से आते, फिर हम ऑटो से उनके घर जाते, इससे बेहतर है भाई ही वहां तक छोड़ आये…

मैंने उनको फोन लगाया आप कष्ट ना करे मैं ही आ रही हूँ..

उन्होंने कहा ठीक है मैं अपनी बिल्डिंग के नीचे खडा रहता हूँ आप आ जाइये…

भाई की कार से नीचे उतरी और सामने की सड़क पर नज़र गयी तो वो फेसबुक मित्र हमारे आने के विपरीत दिशा में मुंह किये मेरा इंतज़ार कर रहे थे…

मैंने रास्ता पार किया और उनके पीछे खड़े होकर धीरे से कहा- रंजीत भाई…

उन्होंने पलटकर देखा और मुझे गले लगा लिया….

मुझे चौथे माले पर बने अपने फ्लेट में ले जाने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया…

मैंने देखा वो धीरे धीरे एक एक कदम लगभग घसीटते हुए चल रहे थे…

मेरे पूछने पर उन्होंने बताया उनके घुटने का ऑपरेशन हुआ है.. दो दिन पहले ही अस्पताल से घर आए हैं…

मैंने महसूस किया मेरे हाथ में एक विशेष प्रेम और ऊर्जा की गर्माहट फ़ैल रही है… मैंने भरे ह्रदय से कहा और ऐसे में आप मुझे ऑटो से लेने आने वाले थे?

उन्होंने कहा तो क्या हुआ – Anything for Ma Jivan Shaifaly….

मुझे लगा मैं बहुत छोटी हो गयी हूँ और उनका व्यक्तित्व बहुत बड़ा…

जिसे मैं आधे घंटे का समय व्यतीत करने का ज़रिया समझ रही थी, वहां तक मुझे कौन लेकर आया है ये ऊपर उनके घर पर जाने पर आप सबको भी पता चलेगा…

(यात्रा जारी है)

पहले भाग यहाँ पढ़ें – 

यात्रा आनंद मठ की – 1 : पांच का सिक्का और आधा दीनार

यात्रा आनंद मठ की – 2 : जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

यात्रा आनंद मठ की – 3 : यात्रा जारी है

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