जब लक्ष्मण रेखा ने बचाई इस जानकी की जान

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पिछले साल की बात है, ऑफिस के काम से ज़रा छुट्टी मिली थी… और सुबह से लाइट नहीं थी तो फेसबुक से भी…

तो सोचा मन के साथ साथ कभी घर की साफ़ सफाई भी कर लेनी चाहिए…

सफाई के सारे काम निपटाकर जब आखिर में wash basin साफ़ करने लगी तो हाथ में कुछ रेंगता सा महसूस हुआ… देखा तो ठीक उसी तरह 100 पैर वाला centipede यूं निकल आया था जैसे मन की सफाई करते हुए सौ मुंह वाला नफ़रत का कीड़ा निकल आता है…

मुंह से चीख निकल गई… अपन ने उठाई चप्पल और wash basin में ही बेचारे का ओम स्वाहा हो गया … नल चलाकर बहा दिया तब याद आया अरे बेचारे को मेरी एक कहानी के लिए अपनी जान गंवाना पड़ी… यहाँ तो बेचारे उसी की जान का दांव लग गया जो खुद कहानी का संदेशा लेकर आया था… किसी ने सच ही कहा है कि सृजन से पहले पीड़ा से गुज़रना पड़ता है … यहाँ तो बेचारा चप्पल खाकर पीड़ा से गुज़रते गुज़रते खुद ही गुज़र गया…

तो जिस कहानी के लिए उसे अपनी जान गंवाना पड़ी वो कहानी तो सुन लीजिए… बात उन दिनों की है जब शरीर पर पहने कपड़ों के अलावा दूसरी जोड़ी कपड़े नहीं थे और जेब में केवल पांच हज़ार रुपये और अपनी वर्तमान दुनिया को अतीत का जामा पहना कर भविष्य की सुनहरी चुनरिया ओढ़ने सबकुछ छोड़कर जबलपुर आ गयी थी…. एक कमरा किराए पर लेकर रहती थी …. अब उन दिनों सोफा, कुर्सी या पलंग की luxury तो थी नहीं तो ज़मीन पर बिस्तर डालकर सोया करती थी….

वो एक कमरा ही मेरा ड्राइंग रूम था, वही बेडरूम और वहीं पांच कदम की दूरी पर किचन…. इतना पास कि बेडरूम से बैठे बैठे हाथ बढ़ाकर किचन से चाय का कप उठा सकती थी…

अब ऐसे में जब गर्मियों के दिन आए तो पंखा तो था नहीं तो दरवाज़ा खुला छोड़ रखा था ताकि थोड़ी बहुत हवा आ सके… अब हवा के साथ साथ “वो” कब अन्दर आ गया पता ही नहीं चला…

इधर किचन में नज़र गयी तो देखा चींटियों की लाइन मस्त खा पीकर निकल कर आ रही है और ज़मीन पर बिछे मेरे बिस्तर पर आराम फरमा रही है…

अपन ने भी बेचारियों के आराम में दखल नहीं दिया और Ant killing chalk (जो हमारे यहाँ लक्ष्मण रेखा नाम से बिकती है) अपने बिस्तर के चारों ओर खेंच दी…

रात होने लगी थी तो दरवाज़ा बंद कर दिया… बिस्तर झटकाकर अपन सो गए और गलती से (मेरे द्वारा गलती से लेकिन मेरी रक्षक प्रकृति द्वारा जानबूझकर) लक्ष्मण रेखा बिस्तर के सिरहाने रह गयी…

सुबह आँख खुली तो “वो” जो हवा के साथ छुपकर अन्दर आ गया था वो था सौ पैर वाले centipede का बड़ा भाई … मेरे द्वारा छोडी गयी लक्ष्मण रेखा Ant killing chalk में मुंह घुसाए बेहोश पड़ा था…

यानी मेरे बिस्तर के सिरहाने यदि वो लक्ष्मण रेखा की चॉक न पड़ी होती तो मेरा तो राम नाम सत्य हो जाता … लेकिन पिछली बार सीता ने लक्ष्मण रेखा पार करके जो गलती की थी वो इस सीता ने नहीं दोहराई.. लक्ष्मण रेखा के भीतर ही रात भर सोई रही और साथ में लक्ष्मण रेखा चॉक भी सिरहाने रखी रही तो वो centipede रावण मुझे उठाकर ले जा न सका और लक्ष्मण रेखा ने इस जानकी की जान बचा ली…

तो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि Ant killing chalk को बच्चों की पहुँच से दूर रखना चाहिए, अब ये बात अलहदा है कि मिलावट भरी इस दुनिया में अब उस इस चाक से चींटियाँ भी नहीं मरती.

दूसरा उस दिन इस यकीन को और बल मिला कि जाको राखे साइयां (मेरे केस में सैंया भी उतना ही मुफीद), मार सके ना कोई..

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