‘रईस’ फिल्म को पाकिस्तान अपने धर्म-सम्प्रदाय की बिगड़ती छवि के नाम पर ‘बैन’ कर देता है; लेकिन हमारे यहाँ हमारा ‘सेक्युलर-गैंग’ पद्मावती-सरस्वती-दुर्गा के अपमानजनक चित्रण को अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता के नाम पर जायज ठहरा देता है, हम बर्दाश्त कर जाते हैं.
इस्लामी-कुवैत अपने यहाँ आतंकी-हमले से सिर्फ एहतियात के लिए अपने यहाँ पाकिस्तानियों का आना ‘बैन’ कर देता है; पर हमारा ‘सेक्युलर-गैंग’ हम पर आतंकी हमले में पकड़े गए इन्ही आतंकवादियों का – हमारी ही ज़मीन पर – जय जयकार करता है, हम बर्दाश्त कर जाते हैं.
दशकों पहले बर्मा में हुए अत्याचार के कारण बांग्लादेश में शरण लिए बर्मा के दो लाख ‘मुस्लिमों’ को इस्लामी-बंगलादेश उन्हें बर्मा वापस भेज देता है; पर हमारे यहाँ लाखों अवैध बंगलादेशी-घुसपैठियों को वापस भेजने की कवायद पर हमार ‘सेक्युलर-गैंग प्रश्न खड़े कर देता है, हम बर्दाश्त कर जाते हैं.
अमरीका अपने राष्ट्रपति द्वारा एक न्यायाधीश की नियुक्ति सिर्फ इसलिए रोक देता है कि उनकी नौकरानी अवैध रूप से अमरीकी धरती पर रह रही थी; हमारे यहाँ “सेक्युलर-गैंग” की आँखों के सामने इन अवैध-घुसपैठियों को वोटर-लिस्ट में जगह दे दी जाती है, हम बर्दाश्त कर जाते हैं.
दुनिया के किसी भी देश को देख लीजिये, सभी देश अपनी संस्कृति और भौगोलिक-सीमाओं की सुरक्षा को ही केंद्र में रख अपने नियम और नीतियाँ बनाते हैं; लेकिन हमारे यहाँ?
हमारे यहाँ सत्तर सालों से “कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के विशाल ऊंचे मापदंड बनाए गए और हमने मूकदर्शक बन अति-सहनशीलता के ‘विश्व कीर्तिमान’ बनाए.
आज दशकों में पहली बार जब इन तमाम गलतियों को पलटने की कोशिशें हो रही हैं तो यही मुट्ठी भर का ‘सेक्युलर-गैंग’ फिर से ‘अभिव्यक्ति-कला-बौद्धिकता’ के नाम पर अड़ंगे लगा रहा है.
आज क्या हम फिर से बर्दाश्त कर जाएंगे?