मीडिया दिखा तो रही सपा-कांग्रेस गठबंधन को दौड़ में, ज़मीन पर गठबंधन है कहां!

अखिलेश यादव के बाल हठ के सामने मुलायम सिंह यादव झुक गए, टूट गए. अखिलेश ने अपने पिता और चाचा को दरकिनार करते हुए सबसे पहले तो कांग्रेस से गठबंधन किया. ये एक बहुत बड़ा blunder है.

दूसरी बड़ी गलती जो अखिलेश ने की, वो है मुख्तार अंसारी से किनारा करना. समाजवादी पार्टी को इस फैसले से बहुत भारी नुकसान हुआ है.

पूर्वांचल की रिपोर्ट फिलहाल ये है कि मुसलमान वोटर पूरी तरह साइकिल छोड़ हाथी पर चढ़ गया है. आज की जो स्थिति है उसमें पूर्वांचल में सपा परिदृश्य से गायब है और बसपा, भाजपा के साथ लड़ाई में आ गयी है.

इस बार पंजाब के चुनाव को मैंने बड़ी नज़दीक से देखा-महसूस किया.

सत्ता विरोधी लहर (Anti Incumbency) दरअसल जन भावना होती है. Anti Incumbency की भावना को सिर्फ लीपा-पोती या मरहम पट्टी से दुरुस्त नहीं किया जा सकता.

पूर्वांचल में अखिलेश यादव भयंकर Anti Incumbency से जूझ रहे हैं. यहाँ वोट बैंक के नाम पर यादव के अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा है. बाकी का सारा OBC भाजपा की झोली में चला गया है.

यदि जातीय वोट बैंक को ध्यान में रख कर विश्लेषण किया जाए तो 2014 के मुकाबले समाजवादी पार्टी और ज़्यादा कमजोर हुई है. 2014 में कम से कम मुस्लिम वोट तो उसे एक मुश्त मिला ही था.

आज वो भी खतरे में है.

2014 में हाथी ने अंडा दिया था. इस बार भी स्थिति कमोबेश निराशाजनक ही है. मायावती की समस्या ये है कि उनकी झोली में दलित के नाम पर सिर्फ चमार- जाटव बचा है. उसमें भी भाजपा ने अच्छी खासी सेंध लगायी है. शेष दलित जातियाँ ख़ास कर पासी, खटीक, वाल्मीकि, मल्लाह इत्यादि भाजपा की झोली में आ चुकी हैं.

समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी समस्या ये है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन जमीन पर सफल होता नहीं दिख रहा. कांग्रेस को 105 सीट मिली हैं गठबंधन में, पर कहीं पर भी उसका प्रत्याशी अभी तक एक नंबर पर दिखाई नहीं देता.

हर जगह त्रिकोणीय संघर्ष है और कांग्रेस का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर है. यहां तक कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी चुनिंदा सीटों पर जहां मुसलमानों का वोट कांग्रेस को मिलता रहा है, कांग्रेस की हालत वहाँ भी पतली है.

कुल मिला के बीजेपी यूपी का चुनाव sweep कर रही है.

हालांकि पेड न्यूज़ के तहत बहुत से मीडिया घराने उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन को भाजपा के साथ लड़ाई में दिखा रहे है. लेकिन जमीन पर इस गठबंधन की क्या हालत है?

अलीगढ में एक विधानसभा क्षेत्र है… कोल.

गठबंधन में ये सीट सपा को मिली है. सपा ने यहां से वर्तमान विधायक जमीरउल्लाह का टिकट काट के अज्जू इस्हाक़ को टिकट दी है.

अब जमीरउल्लाह का टिकट कटा तो वो बागी हो गए और उन ने निर्दलीय पर्चा भर दिया.

यहां से कांग्रेस के एक बड़े पुराने और धाकड़ नेता हैं… विवेक बंसल. वो यहां से MLA रहे हैं और लोकप्रिय नेता हैं.

गठबंधन के बावजूद उन्होंने कोल से पर्चा भर दिया… वो भी बाकायदा कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर. अब उनका प्रचार करने बाकायदा गुलाम नबी आज़ाद आये और राज बब्बर रोड शो कर गए… गठबंधन के बावजूद.

बसपा से राज कुमार शर्मा हैं और भाजपा से अनिल पाराशर. दोनों ब्राह्मण प्रत्याशी हैं. इसके अलावा ओवैसी की MIM से परवेज़ खान भी हैं.

गठबंधन के बावजूद जमीन पर सपा-कांग्रेस के 3 प्रत्याशी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. अज्जू इस्हाक़… जमीरउल्लाह… विवेक बंसल…

मुस्लिम वोट 3 जगह बँट रहा है. भाजपा की लहर है…

नुमाइश ग्राउंड में मोदी जी की जनसभा में जन सैलाब था और अखिलेश यादव की सभा में बमुश्किल 5000 आदमी.

Paid news वाले गठबंधन को लड़ाई में बता रहे हैं!

अगली मिसाल धामपुर विधानसभा क्षेत्र से…

सपा से वर्तमान विधायक और मंत्री मूल चंद चौहान लड़ रहे हैं. बसपा से जनाब मोहम्मद ग़ाज़ी मैदान में हैं. भाजपा से अशोक राणा हैं.

मुस्लिम बहुल क्षेत्र है… मुस्लिम वोट बँट रहा है… बड़ा हिस्सा बसपा के खाते में जा रहा है…
और Paid news वाले गठबंधन को लड़ाई में दिखा रहे है!

अब हाल सूबे की राजधानी लखनऊ की Central विधानसभा सीट का…

गठबंधन ने रवि दास मेहरोत्रा का टिकट काट के सीट कांग्रेस को दे दी जबकि मेहरोत्रा पर्चा भर चुके थे.

कांग्रेस से मारूफ खान ने पर्चा भर दिया. बसपा से भी कोई मुस्लिम प्रत्याशी ही हैं और भाजपा से बृजेश पाठक मैदान में हैं.

सपा-कांग्रेस का गठबंधन है फिर भी सपा और कांग्रेस, दोनों के ही प्रत्याशी मैदान में हैं. मुस्लिम वोट तीन जगह बँट रहा है.

भाजपा के बृजेश पाठक जीत रहे हैं और Paid news वाले गठबंधन को लड़ाई में बता रहे हैं!

जमीन पर गठबंधन कहीं दिखाई नहीं देता. अखिलेश यादव ने एक ऐसी पार्टी को, जिसकी औकात आज गठबंधन के बावजूद 5 सीट की नहीं, उसको 105 सीट दी हैं.

जानकार बता रहे हैं कि आज भी 5 सीट शंका में हैं. जमीन पर सपा का वोट कांग्रेस को ट्रांसफर नहीं हो रहा है.

कांग्रेस का कोई वोट बैंक है ही नहीं जो सपा को मिल जाए. जो थोड़ा बहुत वोट उनको मिलता है, वो पार्टी नहीं बल्कि उस उम्मीदवार को मिलता है… उसका निजी वोट.

मुझे पूरा विश्वास है कि भाजपा 300 सीट जीत के इकतरफा जीत हासिल करेगी.

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