तो इसलिए अरविन्द केजरीवाल ने मना किया भगवद गीता लेने से!

भगवद गीता के विषय में विख्यात अमरीकी भौतिकशास्त्री रोबर्ट ओपेन्हाईमर ने कहा था,“ गीता उन महानतम ग्रंथों में से एक है जिसने मेरे जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है.”

विख्यात ऑस्ट्रिअन दार्शनिक रुडोल्फ स्टेनर ने गीता को अद्भुत प्रेरणादायी ग्रन्थ बताते हुए कहा था कि इसे समझने के लिए ये आवश्यक है कि हम अपने अंतर्मन को उसके लिए लयबद्ध करें.

तुर्की के तत्कालीन प्रधानमंत्री ब्युलेंत एसेवित ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में भगवद गीता को अपनी शक्ति और समझ का स्त्रोत बताया था.

अमरीकी कवि और दार्शनिक हेनरी डेविड थोर भी ने कहा था, “सुबह-सुबह मैं अपनी बुद्धिमत्ता को गीता के विलक्षण और ब्रम्हांड-उत्त्पत्तीय दर्शन से सींचता हूँ, जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और आधुनिक साहित्य अदना और नगण्य प्रतीत होता है.”

प्रशियन दार्शनिक-विद्वान विल्हेम हम्बोल्ट ने गीता को विश्व का सबसे दार्शनिक और दुनिया को बताने लायक सबसे गहरा ज्ञान कहा था.

उर्दू के विख्यात दार्शनिक शायर इकबाल ने भी कहा था, “मानव-बौद्धिकता के इतिहास में श्री कृष्ण का नाम हमेशा ही महान श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाएगा.”

विश्व की कई और विभूतियों समेत गांधी, विनोबा भावे, अरबिंदो, सुनीता विलिअम्स आदि अन्य प्रख्यात व्यक्तियों ने भगवद गीता की महानता पर भूतकाल में अपने उदगार व्यक्त किये हैं.

पर वर्तमान में – खबरों के अनुसार – अरविन्द केजरीवाल ने भगवद गीता ग्रहण करने से कल अस्वीकार कर दिया. केजरीवाल से नाराज नहीं होइए, भगवद गीता ग्रहण करने के लिए उनकी अपनी सु-योग्यता या अ-योग्यता और इच्छा या अनिच्छा को तय करने का अधिकार तो आखिर उन्ही का है न?

(सन्दर्भ : (१) जेम्स हीजिया की ‘The Gita of Robert Openheimer”, (2) रुडोल्फ स्टेनर के आख्यान ‘ Gita and the west’ (4 जून 1913 हेलसिंकी में) ,(3) ब्युलेंत एसेवित के इंटरव्यू पर आलेख The Telegraph (14 नवम्बर 2002) में, (4) रुदोल्प्फ़ स्टेनर की “The Bhagavad Gita and the West: The Esoteric Significance of the Bhagavad Gita”, (5) जोर्ज अनासटाप्लो की “ But Not Philosophy: Seven Introductions to Non-Western Thought” ,(6) इकबाल, अपनी पुस्तक “असरार-ए-खुदी” के प्राकथन में )

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