यह घटना एक परिचित के साथ घटी थी, जो उन्होंने बाद में सुनाई.
गृह प्रवेश के वक्त नए घर की ख़ुशी में उनके मित्रों ने उपहार भेंट किए थे. अगली सुबह जब उन्होंने उपहारों को खोलना शुरू किया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था!
एक-दो उपहारों को छोड़कर बाकी सभी में लाफिंग बुद्धा, फेंगशुई पिरामिड, चाइनीज़ ड्रेगन, कछुआ, चाइनीज़ फेंगशुई सिक्के, तीन टांगों वाला मेंढक, और हाथ हिलाती हुई बिल्ली जैसी अटपटी वस्तुएं दी गई थीं.
जिज्ञासावश उन्होंने इन उपहारों के साथ आए कागजों को पढ़ना शुरू किया जिसमें इन फेंगशुई के मॉडलों का मुख्य काम और उसे रखने की दिशा के बारे में बताया गया था. जैसे लाफिंग बुद्धा का काम घर में धन, दौलत, अनाज और प्रसन्नता लाना था और उसे दरवाजे की ओर मुख करके रखना पड़ता था. कछुआ पानी में डुबा कर रखने से कर्ज से मुक्ति, सिक्के वाला तीन टांगों का मेंढक रखने से धन का प्रभाव, चाइनीज ड्रैगन को कमरे में रखने से रोगों से मुक्ति, विंडचाइम लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, प्लास्टिक के पिरामिड लगाने से वास्तुदोषों से मुक्ति, चाइनीज़ सिक्के बटुए में रखने से सौभाग्य में वृद्धि होगी, ऐसा लिखा था.
यह सब पढ़ कर वह हैरान हो गया क्योंकि यह उपहार उन दोस्तों ने दिए थे जो पेशे से इंजीनियर, डॉक्टर और वकील जैसे पदों पर काम कर रहे थे. हद तो तब हो गई जब डॉक्टर मित्र ने रोग भगाने वाला और आयु बढ़ाने वाला चाइनीज ड्रैगन गिफ्ट किया! जिसमें लिखा था ‘आपके और आपके परिवार के सुखद स्वास्थ्य का अचूक उपाय’!
इन फेंगशुई उपहारों में एक प्लास्टिक की सुनहरी बिल्ली भी थी जिसमें बैटरी लगाने के बाद, उसका एक हाथ किसी को बुलाने की मुद्रा में आगे-पीछे हिलता रहता है. कमाल तो यह था कि उसके साथ आए कागज में लिखा था ‘मुबारक हो, सुनहरी बिल्ली के माध्यम से अपनी रूठी किस्मत को वापस बुलाने के लिए इसे अपने घर, कार्यालय अथवा दुकान के उत्तर-पूर्व में रखिए’!
उन्होंने इंटरनेट पर सर्च कर फेंगशुई के बारे में और पता लगाया तो कई रोचक बातें सामने आईं. जब गौर किया तो ‘चीनी आकमण’ का यह गम्भीर पहलू समझ में आया.
दुनिया के अनेक देशों में कहीं न कहीं फेंगशुई का जाल फैला हुआ है. इसकी मार्केटिंग का तंत्र इंटरनेट पर मौजूद हजारों वेबसाइट के अलावा, टीवी कार्यक्रमों, न्यूज़ पेपर्स, और पत्रिकाओं तक के माध्यम से चलता है.
मजहबी बनावट के कारण अमूमन मुस्लिम उसके शिकार नहीं होते. यानी इस हथियार का असल शिकार कौन है, आप समझ सकते हैं. चीनी इस फेंगशुई का इस्तेमाल किसी बाजार में प्रारंम्भिक घुसपैठ के लिए करते हैं.
अनुमानत: भारत में ही केवल इस का कारोबार लगभग 200 करोड रुपए से अधिक का है. उसी के सहारे धीरे-धीरे भारत के उत्पाद मार्केट पर चीनी उत्पादों ने पचास प्रतिशत तक कब्ज़ा कर लिया है.
किसी छोटे शहर की गिफ्ट शॉप से लेकर सुपर मॉल तक चीनी प्रोडक्ट्स आपको हर जगह मिल जाएंगे….वह छा गये है. उन्होंने स्थानीय उत्पादों को लगभग समाप्त कर दिया है. चाइनीज़ उत्पादों का आक्रामक माल भारत सहित दुनिया के अलग-अलग देशों में इस कदर बेचा जाता है कि दूसरों की मौलिक अर्थ-व्यवस्था तबाह हो जाती है. ‘सस्ता और बड़ी मात्रा’ उसका पैंतरा है यानी रणनीति.
यहां मैं भारत-चीन सीमा संघर्ष, हमसे शत्रुता, उसके इतिहास, तिब्बत को हड़पना, पाकपरस्ती और आतंक को समर्थन,उ सकी मिसाइल पालिसी, मक्कारियां आदि नहीं लिखूंगा. जो समझदार हैं वे खुद समझ जाएंगे.
अब आते हैं उसके जादुई हथियार पर जो जेहन का शिकार करता है!!!
चीन में फेंग का अर्थ होता है ‘वायु’ और शुई का अर्थ है ‘जल’ अर्थात फेंगशुई का कोई मतलब है जलवायु. इसका आपके सौभाग्य, स्वास्थ्य और मुकदमे में हार-जीत से क्या संबंध है?
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से भी देखा जाए तो कौन सा भारतीय अपने घर में आग उगलने वाली चाइनीज़ छिपकली यानी dragon को देख कर प्रसन्नता महसूस कर सकता है?
किसी जमाने में जिस बिल्ली को अशुभ मानकर रास्ते पर लोग रुक जाया करते थे, उसी बिल्ली के सुनहरे पुतले को घर में सजाकर सौभाग्य की मिन्नतें करना महामूर्खता नहीं तो क्या है?
अब जरा सर्वाधिक लोकप्रिय फेंगशुई उपहार लाफिंग बुद्धा की बात करें- धन की टोकरी उठाए, मोटे पेट वाला गोल मटोल सुनहरे रंग का पुतला- क्या सच में महात्मा बुद्ध है? किसी तरह वह बुद्ध सा सौम्य, शांत और सुडौल दीखता है?
क्या बुद्ध ने अपने किसी प्रवचन में कहीं यह बताया था कि मेरी इस प्रकार की मूर्ति को अपने घर में रखो और मैं तुम्हें सौभाग्य और धन दूंगा? उन्होंने तो सत्य की खोज के लिए स्वयं अपना धन और राजपाट त्याग दिया था.
एक बेजान चाइनीज़ पुतले (लाफिंग बुद्धा) को हमने तुलसी के बिरवे से ज्यादा बढ़कर मान लिया और तुलसी जैसी रोग मिटाने वाली सदा प्राणवायु देने वाली और हमारी संस्कृति की याद दिलाने वाली प्रकृति के सुंदर देन को अपने घरों से निकालकर, हमने लाफिंग बुद्धा को स्थापित कर दिया और अब उससे सकारात्मकता और सौभाग्य की उम्मीद कर रहे हैं? क्या यही हमारी तरक्की है?
अब तो दुकानदार भी अपनी दुकान का शटर खोलकर सबसे पहले लाफिंग बुद्धा को नमस्कार करते हैं और कभी-कभी तो अगरबत्ती भी लगाते हैं!
फेंगसुई की दुनिया का एक और लोकप्रिय मॉडल है चीनी देवता फुक, लुक और साऊ. फुक को समृद्धि, लुक को यश-मान-प्रतिष्ठा और साउ को दीर्घायु का देवता कहा जाता है.
फेंगशुई ने बताया और हम अंधभक्तों ने अपने घरों में इन मूर्तियों को लगाना शुरु कर दिया. मैं देखा कि इंटरनेट पर मिलने वाली इन मूर्तियों की कीमत भारत में 200 से लेकर 15000 रूपए तक है. जैसी जेब, वैसी मूर्ति और उसी हिसाब से सौभाग्य का भी हिसाब-किताब सेट है.
क्या आप अपनी लोककथाओं और कहानियों में इन तीनों देवताओं का कोई उल्लेख पाते हैं? क्या भारत में फैले 33 कोटि देवी देवताओं से हमारा मन भर गया कि अब इन चाइनीज़ देवताओं को भी घर में स्थापित किया जा रहा है?
जरा सोचिए कि किसी कम्युनिस्ट चीन के बूढ़े देवता की मूर्ति घर में रखने से हमारी आयु कैसे ज्यादा हो सकती है? क्या इतना सरल तरीका विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अब तक समझ में नहीं आया था?
इसी तरह का एक और फेंगशुई प्रोडक्ट है तीन चाइनीज़ सिक्के जो लाल रिबन से बंधे होते हैं, फेंगशुई के मुताबिक रिबिन का लाल रंग इन सिक्कों की ऊर्जा को सक्रिय कर देता है और इन सिक्कों से निकली यांग (Yang) ऊर्जा आप के भाग्य को सक्रिय कर देती है. दुकानदारों का कहना है कि इन सिक्कों पर धन के चाइनीज मंत्र भी खुदे होते हैं लेकिन जब मैंने उनसे इन चाइनीज़ अक्षरों को पढ़ने के लिए कहा, तो ना वे इन्हें पढ़ सके और ना हीं इनका अर्थ समझा सके?
मेरा पूछना है कि क्या चीन में गरीब लोग नहीं रहते? क्यों चीनी कम्युनिस्ट खुद हर नागरिक के बटुवे में यह सिक्के रखवा कर अपनी गरीबी दूर नहीं कर लेते? हमारे देश के रुपयों से हम इन बेकार के चाइनीज़ सिक्के खरीद कर न सिर्फ अपना और अपने देश का पैसा हमारे शत्रु मुल्क को भेज रहे हैं बल्कि अपने कमजोर और गिरे हुए आत्मविश्वास का भी परिचय दे रहे हैं.
फेंगशुई के बाजार में एक और गजब का प्रोडक्ट है तीन टांगों वाला मेंढक, जिसके मुंह में एक चीनी सिक्का होता है. फेंगशुई के मुताबिक उसे अपने घर में धन को आकर्षित करने के लिए रखना अत्यंत शुभ होता है. जब मैंने इस मेंढक को पहली बार देखा तो सोचा कि जो देखने में इतना भद्दा लग रहा है वह मेरे घर में सौभाग्य कैसे लाएगा?
मेंढक का चौथा पैर काट कर उसे तीन टांग वाला बनाकर शुभ मानना किस सिरफिरे की कल्पना है? क्या किसी मेंढक के मुंह में सिक्का रखकर घर में धन की बारिश हो सकती है? संसार के किसी भी जीव विज्ञान के शास्त्र में ऐसे तीन टांग वाले और सिक्का खाने वाले मेंढक का उल्लेख क्यों नहीं है?
कम्युनिष्ट चाइना ने इसी तरह की आक्रामक रणनीति के सहारे धीरे-धीरे भारतीय अर्थ-व्यवस्था को लगभग कब्जिया लिया है. उनके इस हथियार से देश के हजारों छोटे कारीगर, लघु उद्यमी, स्थानीय व्यापार, छोटे-कल कारखाने नष्ट हो चुके हैं.
सब वस्तुएं चीन से बन कर आ रही हैं. वह वस्तुएं भी जिन्हें बनाने में हजारों सालों से हमारे कारीगर निपुण थे. केवल कुम्हार, बढ़ई, लुहार, कर्मकार आदि-आदि 2 करोड़ से अधिक जनसँख्या वाली जातियां थे. वे बेकारी के शिकार हो रहे हैं.
आप लिस्टिंग करें. ऐसे हजारों काम-व्यापार दिखेगा जिसे चीन ने अपने छोटे-सस्ते उत्पादों को पाट कर नष्ट करके कब्जिया लिया. हम केवल एक बिचौलिए विक्रेता की भूमिका में ही रह गये हैं.
बहुत दिमाग लगाकर समझिये अब युद्ध के हथियार वह नहीं होते हैं जो पारपंरिक थे. अब पूरी योजना से शत्रु के पास जाकर उसके दिमाग को ग्रिप में लेना पड़ता है. यह फेंगशुई भी उसी दिमागी खेल का हिस्सा है, जो हमारे हजारों साल के आध्यात्मिक ज्ञान को कमजोर करने के लिए भेजा गया है. कम्युनिस्टों ने उसे गोरिल्ला रणनीति की तरह अपनाया है.
अपनी वैज्ञानिक सोच को जागृत करना और इनसे पीछा छुड़ाना अत्यंत आवश्यक है. आप भी अपने आसपास गौर कीजिए आपको कहीं ना कहीं इस फेंगशुई की जहरीली और अंधविश्वास को बढ़ावा देती चीजें अवश्य ही मिल जाएगी.
समय रहते स्वयं को अपने परिवार को और अपने मित्रों को इस अंधे कुएं से निकाल कर अपने देश की मूल्यवान मुद्रा को कम्युनिस्ट चाइना के फैलाए षड्यंत्र की बलि चढ़ने से बचाइए.
अब जरा इस पर गौर फरमाएं!
आपने किसी प्रगतिशीलतावादी कम्युनिस्ट को इनकी बुराई करते देखा है?
दिन भर टीवी पर हिन्दू विश्वासों का ‘मखौल’ उड़ाने वालो सो-कॉल्ड को आपने कभी इस चाइनीज कम्युनिस्ट अंध-विश्वास के खिलाफ बोलते सुना है?
मस्तिष्क का इस्तेमाल बढाइये… हथियार पहचानिए.
क्रमशः 3