मुझे हिन्दू या मुस्लिम होना धार्मिक नहीं भावनात्मक या कहें चारित्रिक बात अधिक लगती है. जैसे हर देवता में कुछ मानवीय गुण ज़रूर होता है जिसकी वजह से उसे कभी-कभी तिरस्कृत भी होना पड़ता है, लेकिन इस वजह से उसके देवत्व को नकारा नहीं जा सकता. जैसे एक पुरुष में कुछ नारी प्रधान गुण होते हैं और एक नारी में कुछ पुरुष प्रधान गुण भी होते हैं. लेकिन जब ये अनुपात असंतुलित हो जाता है तो समस्या शुरू हो जाती है.
वैसे ही हिन्दू और मुस्लिम होना किसी हद तक मुझे भावनात्मक लगता है. जब एक मुस्लिम में हिन्दू तत्व प्रबल हो जाता है तो वो “श्री एम” की तरह मुमताज़ से मधु हो जाते हैं और नाथ परम्परा की दीक्षा लेकर अध्यात्म की उन ऊंचाइयों को छू जाते हैं, जहां तक जीवन भर हिन्दुत्व के नारे लगानेवाला, दिन रात पूजा-पाठ करने वाला एक हिन्दू नहीं पहुँच पाता.
जब यही हिन्दू तत्व फरहाना ताज़ के अन्दर प्रबल हुआ तो उसने हिन्दू सनातन धर्म का गहन अध्ययन किया और वो भी संयोग से फरहाना से “मधु” बन गयी और आज हिन्दू धर्म ग्रंथों और परम्पराओं को अपने जीवन में उतारकर उसका प्रचार-प्रसार कर रही हैं.
वैसे ही जब एक हिन्दू में इस्लाम तत्व प्रबल होता है तो वो A. S. Dileep Kumar से A R Rahman बन जाता है, और संगीत के ज़रिये अध्यात्म की उन ऊंचाइयों को छू पाता है, जहां तक एक मुस्लिम पाँचों वक़्त की नमाज़ और जीवनभर रोज़ा रखकर भी नहीं पहुँच पाता.
मैं जबलपुर के एक ऐसे MBBS मुस्लिम डॉक्टर को भी जानती हूँ जो केवल रमजान में रोज़ा ही नहीं रखते बल्कि नवरात्रि मैं नौ दिन का उपवास रखते हुए आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त कर चुके हैं, जो अब एलोपेथिक दवाई नहीं देते बल्कि उनका फूँका हुआ पानी पीकर रोगी बड़ी-बड़ी समस्याओं से निजात पा लेता है.
मैं ऐसे भी कई हिन्दुओं को जानती हूँ जो एक हाथ में शराब का ग्लास पकड़े और दूसरे हाथ से मुर्गी की टांग चबाते हुए फेसबुक पर गौ-हत्या के विरोध में पोस्ट डालते हैं और मैं ऐसे कई मुस्लिम मित्रों के भी रूबरू हो चुकी हूँ जो हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बातें तो बढ़ा चढ़ाकर करते हैं, लेकिन एक आतंकवादी (याकूब मेमन) की फांसी रुकवाने के लिए सिर्फ इसलिए पैरवी करते हैं क्योंकि वो आतंकवादी मुस्लिम है.
दादरी में एक मुस्लिम की गौहत्या के जुर्म में हत्या कर दी जाती है तो मुद्दा धार्मिक होकर खबरों में सर्वोपरि हो जाता है लेकिन उन्हीं दिनों एक मुस्लिम बेटा बकरी न काटने देने पर माँ की गर्दन काट देता है ये खबर सबसे नीचे दब जाती है. तब न मुस्लिम विरोध जागता है ना हिन्दू विरोध, तब कोई राजनेता उसके परिजनों को सहानुभूति प्रकट करने मिलने नहीं जाता.
जहां देश की बात आती है देशप्रेम सर्वोपरि होना चाहिए ना कि आपका हिन्दू या मुस्लिम होना, जहां प्रकृति की बात आती है आपका प्राकृतिक होना अधिक मायने रखता है ना कि हिंदुस्थानी, पाकीस्तानी, अमेरिकी या बोको हरामी होना.
तो आज सोशल मीडिया जो छोटी-छोटी बात पर एक आम आदमी की अभिव्यक्ति के लिए मंच बना हुआ है, जहां कोई भी कुछ भी लिखने के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र है, वहां लोगों को अपनी हर पोस्ट के नीचे ये लिखना चाहिए कि उसके अन्दर कौन-सा तत्व अधिक प्रबल है… हिन्दू तत्व, मुस्लिम तत्व, मानवीय तत्व, देवता तत्व, असुर तत्व, या किसी भी तत्व के बिना का एक पशु तत्व या सारे तत्वों को आत्मसात करता हुआ भी उससे निर्लिप्त रहने वाला योगी तत्व.